शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

कवर स्टोरी - ' दौरे का दौर '

माया की दौड़ से अफसरशाही को दौरा
मुख्य संवाददाता

इस बार पहले से ही यह माहौल बन गया है कि यह दौरे चुनाव के मद्दे नजर किये जा रहे है। चार साल तक बहज जी क्या करती रहीं? यह प्रश्न हर चार लोगों के बीच हर चौराहे और चाय की दुकान पर चर्चा का विषय बना है। रही सही कसर शशांक शेखर, फतेहबहादुर और नेतराम की तिकड़ी पूरी किये दे रही है।

उडऩ खटोले पर सवार बहन जी जब कानपुर से उड़ गयी तो चर्चा में केवल एक बात की थी कि 'सारे घर में बदल डालूंगी लेकिन छह घंटे बाद जब फैक्स आये तो पता चला कि बहन जी के देखने-कहने,अधिकारी के नोट करने और फिर लखनऊ से उसका आदेश बनने के बीच और भी बहुत कुछ हो जाता है। मतलब हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और।
एक फरवरी से बहज जी के बहुप्रचारित दौरे का आठ फरवरी तक कानपुर में पहला चरण पूरा हो गया। बहन जी के इस बार यह दौरे वह धमक बनाने में कायमाब नहीं हो रहे हैं  जिसके लिए वे जाने जाते थे।  पूर्व निर्धारित इन दौरों को औचक निरीक्षण का नाम देकर निलम्बन बर्खास्तगी और स्थानान्तरण की चाबुक चला कर जहां वह ब्यूरोक्रेसी  को और ज्यादा दुम हिलाऊ बना लेती थीं। वहीं इस बार पहले से ही यह माहौल बन गया है कि यह दौरे चुनाव के मद्दे नजर किये जा रहे है। चार साल तक बहज जी क्या करती रहीं? यह प्रश्न हर चार लोगों के बीच हर चौराहे और चाय की दुकान पर चर्चा का विषय बना है। रही सही कसर शशांक शेखर, फतेहबहादुर और
नेतराम की तिकड़ी पूरी किये दे रही है। दौरे के वास्ते दिखने और दौरे के बाद गाज गिरने वालों की सूची में फेरबदल का ऐसा जाल तैयार होता है जिसमें सब कुछ प्रायोजित और पहले से तय का माहौल बन रहा है। मुकेश मेश्राम, पी.वी. सिंह, ओ.एन.सिंह, प्रहलाद सिंह, मुत्तू स्वामी, रामस्वरूप.... जैसे कुछ नामों को बहन जी की कार्यशैली पर कसकर देख लिया जाये तो शायद आगे चलकर यह दौरे विवादों के जनक, भ्रष्टाचार के कारण पूर्वाग्रह से ग्रसित और जातिवादी  शतरंज पर मोहरों की उठापटक से ज्यादा कुछ नहीं माने जायेंगे। जो मुलायम सिंह आज यह कह रहे हैं कि 'बहन जी दिन भर टी वी देखती हैं और रुपये गिनती है  उन्हें शायद कल और भी मसाला मिल जाये। कानपुर में अगर कुछ गड़बड़ था विकास कार्य अधूरे थे सी एम की सिक्योर्टी टाइट नहीं थी, क्राइम कन्ट्रोल नहीं है, या अधिकारियों का पर्यवेक्षण शिथिल है इसलिए कमिश्नर अमित घोष दोषी  है, लेकिन डी एम मुकेश मेश्राम क्यों नहीं? कानपुर में पिछले एक सालों में बढ़े क्राइम को अगर पैमाना बनाया जाये और आई जी विजय कुमार से लेकर डी आई जी अशोक मुत्था जैन जिम्मेदार हंै, और इनका स्थानान्तरण कर दिया जाये तो पी.पी.सिंह का क्या होना चाहिए, जिन्होने दिव्या काण्ड में खुले आम सच्चाई को दबाकर निर्दाेषों को झूठ बन्दकर फर्जी गुडवर्क दिखाकर  मीडिया को अपनी हनक का शिकार बनाकर पूरी सरकार की छवि को धक्का पहुंचा दिया। नीलम काण्ड से लगाकर दर्जनों घटनाओं में उन्होंने न केवल अपने वरिष्ठ अधिकारी के नाते मिले वैधानिक अधिकारों का दुरूपयोग किया बल्कि घटिया जातिवादी टिप्पणियां खूले आम कर माया सरकार को बदनाम किया। मुत्तुस्वामी जहां जायेगा जिला बर्बाद कर देगा तो पी.पी. सिंह जहां जायेगा क्या करेगा?
सजारी गांव के  फ्लैट सही नहीं बने थे, ऊपरी मंजिल पर पानी नहीं पहुंच रहा है या केडीए ने कानपुर को बर्बाद कर दिया है तो वो ओ.एन.सिंह जो मात्र १५ दिन पूर्व आये थे जिम्मेदार हैं तो उन रामस्वरूप का क्या किया जाये जो ढाई साल तक केडीए को लूटते रहे?
मुस्तफा की लगाई एक-एक सील खोलकर नगर के नियोजित विकास का अन्तिम संस्कार कर गये। जानकारों और प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो बहन जी के सामने नाम रामस्वरूप का नोट करने को कहा गया लेकिन फैक्स ओ.एन.सिंह का आ गया।
भग्गीनिवादा में रातोंरात बनी सी.सी.रोड नाली, शौचालय कुछ भी बहन जी की नजरों से नहीं बचा उनकी मुखमुद्रा और नाराजगी की गाज एस.डी.एम. प्रहलाद सिंह पर गिरनी तय मानी जा रही थी। फैक्स आया तो वे पाक साफ थे। अगर मान भी लिया जाये कि अपनी ऊंची पहुंच सीधी पहचान के बल पर स्वयं के तहसील मुख्यालय पर निवास करने छापा निरीक्षण जांच नियमित करने आदि के चलते बच गये तो फिर बीडीओ को क्यों छोड़ा गया?
सीडीओ को दौरे के चौबीस घंटे बाद केवल नगर देहात में इन्टरचेंज का क्या मतलब? वास्तविकता तो यह है कि अगर कानपुर नगर के एक दर्जन अम्बेडकर गांवों को देख लिया जाये तो चन्डाली, चीतामऊ (बिल्हौर) कुरौली (ककवन) गोविन्दपुर (शिवराजपुर) हृदयपुर  (चौबेपुर) घाटमपुर को छोड़ दिया जाये तो शेष गांवों में बगैर नाक बन्द करे नहीं खड़ा हुआ जा सकता है। इन गांवों में भी हैलीपैड से लगाकर थोड़े से हिस्से को चमाचम कर दिया गया था। ठीक वैसे ही जैसे टीवी के मरीज को लिपिस्टिक पावडर लगाकर टनाटन दिखा दिया जाये। अम्बेदकर गांवों के अलावा तो किसी गांव में प्रशासन के पास झाकनें का भी वक्त नहीं है।
यह असलियत तब देखने को मिल रही है, जब छह माह पहले ही फरवरी में उनका कार्यक्रम तय हो गया था। पिछले छह माह से प्रशासन को अम्बेदकर गांवों के अलावा कुछ याद नहीं है। एक पैर से खड़ा होकर वह गांवों को चमचमाने में लगा है। तहसील अस्पताल ब्लाक स्कूल तो उसी हफ्ते ठीक कराये गये। रंगरोगन, फाइलें कबाड़ हटाना....। शायद इसलिये क्योंकि इससे ज्यादा समय तक इन्हे ठीक रखा ही नहीं जा सकता था।
लेकिन मुख्यमंत्री की अगुवानी में आला अफसरानों ने जो भी फौरी व्यवस्थायें करीं वो महज सरकारी धन की बर्बादी ही तो थीं। अम्बेडकर ग्राम सम्र्पक मार्ग के लिये आनन-फानन में बनायी गयी सड़क ने तो मुख्यमंत्री के गांव से पलटते ही दम तोड़ दिया।अगर उनका काफिला एक बार फिर इसी सड़क से गुजर जाता तो इस सड़क में जबरन भरे गये गड्ढों से वो भी रू-ब-रू हो जातीं।
इससे पहले बस्ती मण्डल के दौरे में आयुक्त अनिल कुमार को केवल इसलिये निलम्बित कर दिया गया क्योंकि अंतिम समय तक सीएम का कार्यक्रम डिस्क्लोज नहीं किया गया था कि वे मुख्यालय पर उतरेंगी या चालीस किलोमीटर दूर गांव में जब वे गांव में उतरी तो अनिल कुमार अगवानी के लिए मौजूद नहीं थे। बस फिर क्या था उनकी ईमानदारी, जनसामान्य के लिए हर समय सहज-सुलभता सब कुछ खाक हो गयी, और वे प्रतीक्षा सूची में डाल दिये गये।1

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