शुक्रवार, 5 मार्च 2010



रंगे
लोग
बुरा

नहीं
मानते





अनुराग अवस्थी
‘मार्शल’


यह होली का ही तो रंग है कि अब हम किसी बात का बुरा नहीं मानते. ऐसा लगता है कि बुरा मानना हम जानते ही नहीं. चाहे जिसको जो कह दीजिये कुछ भी. इसीलिए छियासी साल की उम्र में राजधर्म का पालन करते-करते के लिए राजभवन में हम कृष्ण लीला करने लगते हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के देश में कपड़ों की तरह पत्नी बदलते हैं, और फिर पद्म श्री भी पा जाते हैं. थाली से दाल गायब हो जाये, प्याली से चीनी, या ओठ से लाली, किसी को कुछ बुरा नहीं लगता. इसीलिए पूरे शरद पवार पूरी शरद ऋतु में किरकिट के चक्कर में पड़े रहते हैं. सरदार मनमोहन सिंह भी इस को बुरा नहीं मानते. अपोजीशन वाले कीचड़ उछालते रहें तो कौन सा बदरंग हो जायेंगे, उनका तो काम ही है. और महंगाई भी हमारे लिए कीचड़ उछाल का हिस्सा है, इसीलिए दिल्ली में बैठक हो तो कभी माया मेम साहब नहीं जातीं. तो कभी गुरु जी. वर मरे या कन्या हमें तो दक्षिणा से मतलब है चाहे दिल्ली में २६/११ हो या पुणे में हाहाकार हमारा काम तत्काल कीचड़ की चाक चौबंद व्यवस्था करना है. वह भी ऐसा कीचड़ उछलता है लेकिन फिर भी हम बदरंग नहीे करता. इसीलिए अब कीचड़ हमें बुरा भी नहीं लगता है. बुरा लगता तो नेता जी पिछड़ावाद से यादववाद और फिर परिवार वाद के सहारे समाजवाद न लाते. मूर्ति पूजा और मनुवाद की धज्जियां उड़ाते-उड़ाते माया मेम साहब अपनी मूर्तियां न लगवाती. सौ दिन में महंगाई कम करने की बात करने वाली कांग्रेस गांधी जी के बंदरों की तरह आंख, कान, मुंह बंद कर हाथ नहीं बांधती. त्यागी होने का माला जपने वाले भाजपाई पद से न चिपके रहते.बुरा लगता तो संविधान की शपथ लेने के बाद डीजीपी और चीफ सेके्रट्री सुरती न मलते और सुरमा लगाने की तारीफ अपनी ड्यूटी न समझते. तो संसदीय और विधायक निधि से खुले आम कमीशन बाजी बंद हो जाती तो गंगा जी गंदा नाला न बन जाती. रंग, अबीर से आंटे, दाल और सीमेंट से दवाई तक हम मिलावट के महारथी न बन जाते. चोर-चोर मौसेरे भाई. तुम भी करो चोरी, हम भी करें चोरी.यह बुरा न मानने का ही नतीजा है कि दो अक्टूबर को खादी पर विशेष छूट देते हैं और रजाइयों पर वैट भी वसूलते हैं. पहले मेडिकल कॉलेज खोल देते हैं फिर विशेषज्ञ डॉक्टरों की तलाश शुरू करते हैं. स्लॉटर हाउस बगैर लाइसेंस के चलवा देते हैं और दुधारू पशुओं के मांस का निर्यात करते हैं, फिर नकली खोया पकडऩे के लिए छापा भी मारते हैं. गाय, भैंस त्यौहार देखकर दूध नहीं बढ़ा सकती. वह सरकारी इंसान नहीं है कि समीक्षा बैठक के पहले विकास और अपराध के आंकड़े कम ज्यादा कर ले.बुरे को बुरा कहने से अगर बुरा लगा होता तो आज कानपुर गंदगी और प्रदूषण को लेकर देश-विदेश में अपना डंका न पीट रहा होता. अखबार की एक खबर से सुधार हो जाता. जैसे होली के कैमिकली रंगों से त्वचा को बचाने के लिए समझदार लोग सुबह-सुबह कड़ुआ तेल पोत लेते हैं. वैसे ही साल भर उछलने वाले कीचड़ से बचने के लिए हमने अपनी खाल मोटी कर ली है. इतनी मोटी कि गेंडा भी पानी मांग जाये. रंगों से अब हम खेलते नहीं है लेकिन गिरगिट की तरह रंग बदलना हमने सीख लिया है. हमारी मोटी खाल का नतीजा है कि हम थाने में बोर्ड टांगते हैं 'दलालों का प्रवेश वर्जित हैÓ लेकिन दिन भर थानेदार साहब के इर्द-गिर्द दलाल बैठे रहते हैं और शरीफ आदमी खड़ा-खड़ा कांपता है. यह हमारी राष्ट्रीय पहचान है जहां लिखा होता है 'पेशाब करना मना है, हम वहीं धार बांधकर निर्जलीकरण करते हैं. मोटी खाल और रंग बदलने के किसी भी कम्पटीशन में हम कनपुरियों को कोई पछाड़ नहीं सकता इसीलिए गुमटी के फुटपाथ शो रूम बन गये हैं, जरीब चौकी का जाम लाइलाज हो गया है, बर्रा की धूल सदाबहार हो गई है, बिरहाना रोड की बिजली जलने के लिए नहीं जलाने के लिए हो गई है. केडीए कल दुबारा आने के लिए हो गया है. डाकखाना, डाक खाने के लिए बन गये हैं. नगर निगम सभासदों के ठेके लेने का सेंटर बन गया है. हैलट, उर्सला और केपीएम नर्सिंगहोम से जवाब दे दिये गये कंगलों का आश्रय स्थल और मोटी टेंट वाले मरीजों का रिफर सेंटर बन गया है.पुलिस टैम्पो, ट्रैक्टर, ट्रक से वसूली बाली फोर्स बन गई है. अब यह सीधो वसूली, जमीन कब्जे, लूट में शामिल होने लगा है. पुलिस की इस प्रगति ने हमको आदमी से कनचपुआ बना दिया है. पुलिस ने सब धान बाइस पसेरी का ऐसा ल_ चलाया है कि अब थाने जाने से पहले पत्तुरकार साहब चार बार सोंचे कि अब भी इसके बदले में कभी-कभी निलम्बन का इनाम मिलता है. निलम्बन पुलिस वाले की वर्दी में और चमक और आवाज में खनक ला देता है. जैसे गांव गली का चोट्टा छ: मुकदमे के बाद माफिया कहलाने लगता है और उसकी दुकान चल निकलती है.होली तो हो ली-होली का रंग निराला है बेचारी ममता की होली सचिन ने ले डाली. अखबार, चैनल, रेडियो हर स्टेशन पर सचिन का बल्ला दौड़ रहा था और किराया न बढ़ाने के बावजूद ममता की ट्रेन रुकी हुई थी.मैंने प्रेम का प्रकाश फैलाने वाले एक पुलिसकर्मी से पूछा कि होली पर क्या रंग है? बोले भइया द्विज ठीक से हो जाये तो समझो बहन जी की दया है. मैंने एक सरकारी डॉक्टर से पूछा होली पर क्या व्यवस्था है? वे बोले होली तो हो ली फ रवरी की तनख्वाह होली से पहले मिलेगी, हम खुश थे. तनख्वाह बनी उन्तालीस हजार रुपये और इन्कम टैक्स रिटर्न कट रहा है तितालीस हजार रुपये. अब चार हजार कहां से लाऊं, ऐसे में मेरे घर में तो होली हो ली.कोटेदार, ठेकेदार, प्रधान सब ठगे से बेरंग हो रहे हैं, पंद्रह को लखनऊ मे ंरैली है, अपनी तो होली हो ली. गैस एजेंसी की मालिकिन बीना जी से हमने पूछा होली कैसे मनेगी? बोली गैस में रंग होता नहीं है, गंध बहुत दूर तक जाती है.अब एक आम कनपुरिया होली कैसे मनायेगा क्योंकि उसके हिस्से का एक सौ बीस कुन्तल खोया तो पकड़ गया है. चीनी तो चाय में ही कम हो गई है, गुझिया में कैसे पड़ेगी. रंग ने पिछली बार उसको डॉक्टर के यहां दौड़ाकर जेब खाली करा दी थी. इसलिए इस बार गुझिया और गुलाल के बजाय मोबाइल पर एसएमएस भेजकर कहेगा होली तो हो ली.मौका लगा तो अगल-बगल की भाभी से होली मुबारक कह लेगा और सात दिन बाद गंगा मेला में नेताओं से गले मिलकर अगले साल तक अपना गला कटने से बचाने की जुगत में लग जायेगा. अब ऐसे में सरकारों से मैं यह मांग करता हूं कि वे राष्ट्रीय सर्वे शुरू करायें जिसमें यह पता चले कि आखिर क्यों हमको कुछ भी बुरा लगना बंद हो गया है. क्यों हम खबरें लिखते समय तोड़-मरोड़ करते हैं? क्यों हम नाली और फुटपाथ तोड़ लेते हैं? क्यों हम बगैर हेल्मेट के गाड़ी चलाते हैं फिर पुलिस को सौ रुपये देकर बेइमान बताते हैं? क्यों हम घर में रामायण या तकरीर के लिए लाउडस्पीकर लगाकर मुहल्ले की नींद खराब करते हैं? क्यों हम बगैर नक्शे के घूस देकर घर को गेस्ट हाउस बना लेते हैं? क्यों बगैर बिल दिये बिजली जलाते हैं क्यों सड़क पर होली लगाने से पहले दस किलो बालू नहीं डालते हैं? क्यों विदेशी सभ्यता और संस्कृति की आग में अपने संस्कारों और सिद्घांतों की होली जला रहे हैं हम? साहित्य और ज्ञान की अथाह गंगा से दूर होती जा रही नई पीढ़ी की दुनिया एसएमएस में सिमटती जा रही है. जल्दी इसका जवाब न तलाशा गया तो हमारे नैतिक सामाजिक आध्यात्मिक मूल्यों की होली रोज जलती रहेगी और तब न बचेगा परिवार न समाज न राष्ट्र तब कौन मनायेगा होली और कैसे? कीचड़ से ही सही. कौन बतायेगा बच्चों को कि भक्त प्रहलाद कौन था और हिरण्य कश्यप कौन? और क्यों होली जलाई जाती है?

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