रविवार, 7 मार्च 2010

चौथा कोना
नगर सेवा से प्रदेश सेवा की ओर
पांच साल हो गए पांच रुपये में शहर की चौकीदारी करते-करते. अब छठवें वर्ष की तैयारी है. हेलो कानपुर की पांच वर्ष यात्रा में कोई नया अर्थ निकला हो या न निकला हो लेकिन इतना जरूर है कि शहर के अखबारों और गैर सरकारी संगठनों को कानपुर की हेलो (आभा) की चिंता जरूर सताने लगी है और शहर में एक शोर सा उठा है शहर को सजाने, संवारने और बचाने का. हेलो कानपुर का शुभारम्भ इसी उद्देश्य के तहत हुआ था. हमारे प्रकाशन के जो प्रमुख आधार बिन्दु हैं उनमें से एक है-नगर सेवा ही राष्ट्र सेवा है और हम आज भी नगर सेवा में ही राष्ट्र सेवा का सुख प्राप्त कर रहे हैं. यह एक संयोग ही है कि हर साल इन्हीं दिनों जब हम वासंती मौसम में हेलो कानपुर की वर्ष गांठ मनाते हैं तो हमारा मूड होरियाना होता है और हम आपके लिए अखबार के बढ़ते प्रभाव प्रसार के बारे में कोई न कोई नई खबर अवश्य लाते हैं. तो इस बार आपके लिए खबर है कि हेलो कानपुर ने अपने शहर के साथ-साथ अब पूरे प्रदेश पर अपनी नजर दौड़ाने का मन बनाया है. हेलो कानपुर के पाठकों को हमने पांच वर्ष तक यह बताया कि कानपुर वास्तव में है क्या? और अब हेलो कानपुर आपको प्रदेश की नब्ज टटोलकर भी बतायेगा. एक तरह से होली बाद जो अंक आपके सामने होंगे उसे आप हेलो कानपुर उत्तर प्रदेश कह सकते हैं. हमारा यह नया संकल्प महानगरीय पत्रकारिता से प्रादेशिक पत्रकारिता की ओर बढ़ाया जाने वाला पहला कदम होगा. हम जानते हैं कि प्रदेश में निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता करना अब जान बूझकर जलते अंगार पर चलने का संकल्प लेना है लेकिन हम यह संकल्प या दूसरे शब्दों में यह जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं. जब शहर से आगे प्रदेश की बात होगी तो निश्चित ही हमें हर जिले में पत्रकारिता को सही अर्थों में समझने वाले पत्रकारों और पाठकों की आवश्यकता भी होगी. प्रथम चरण में हेलो कानपुर ने अपनी टीम बना ली है और अब यह टीम पाठकों की कसौटी पर कसी जायेगी. हेलो कानपुर का महानगरीय पत्रकारिता का अनुभव कोई बहुत चमत्कारिक परिणामों वाला अनुभव नहीं रहा. लेकिन इतना जरूर है कि हमने इन पांच वर्षों में शहर हित में हर वह आवाज उठाई जो बाकी के अखबार या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बूते के बाहर लगी. ऐसा हम इसलिए कर सके क्योंकि हमारी पत्रकारिता में व्यवसायिकता तो है लेकिन धंधेबाजी नहीं है. हमने जितना लिखा सच लिखा या फिर चुप रहे. लेकिन शहर को गलत जानकारी नहीं दी. आपने देखा होगा कि चुनावों में हेलो कानपुर ने प्रत्याशियों से विज्ञापन तो मांगे लेकिन उसकी कीमत पर प्रायोजित प्रशस्ति गान नहीं छापा. फलस्वरूप आज शहर में शायद ही किसी दल का कोई नेता ऐसा हो जिसे इस अखबार की सेहत अच्छी लग रही हो लेकिन हमारे पाठक हमारी इस साफ गोई पर न्यौछावर हैं. इसीलिए बिना किसी एक मुश्त धन उगलने वाले स्रोत के हम छोटे-छोटे विज्ञापनों और ढाई सौ रुपये के वार्षिक सदस्यों की दम पर उतना रास्ता तय कर आये हैं जिसकी कल्पना तो की थी लेकिन विश्वास लडख़ड़ाया हुआ था. आज जब हम हेलो प्रदेश की कल्पना कर रहे हैं तो हमारा अब तक का अनुभव हमारे विश्वास को और मजबूत कर रहा है. अंत में हेलो कानपुर के पाठकों से निवेदन है कि वे नए वर्ष में अपनी सदस्यता का सहर्ष नवीनीकरण करा लें और यदि समाचार पत्र न पढऩा हो तो तत्काल हमें सूचित करें. क्योंकि इस वर्ष कई पाठकों ने सदस्यता नवीनीकरण के समय हेलो प्रतिनिधि को कई-कई बार दौड़ाया ; यह दौड़ भाग हेलो कनपुर वहन करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि आज कोई भी काम बिना पैसे के कहां सम्भव है. आप अगर चाहते हैं कि पांच रुपये की चौकीदारी चलती रहे तो दो सौ साठ रुपये निकालकर हाथ में रख लें, हमारा बंदा आता ही होगा.1
प्रमोद तीवारी

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