गुरुवार, 8 जुलाई 2010

कोचिंग मंडी धड़ाम
कोचिंग का कचरा, रेंकों के तस्कर, काकादेव का कोचिंग कलंक, कोचिंग की कलंक गाथा, उतर गया पानी, सात लूटेंगे सत्तर करोड़, द्रोण के लाक्षागृह...आदि-इत्यादि. ये चंद जुमले हैं जो आज काकादेव कोचिंग मंडी से जुड़े हर शख्स की जुबान पर हैं. लेकिन जो हेलो कानपुर के नियमित पाठक हैं वे जानते हैं कि ये जुमले नहीं हेलो कानपुर के वे चिंगारी छोड़ते शीर्षक हैं जिनको नक्कारखाने में तूती की आवाज समझकर काकादेव के महागुरुओं ने अनदेखा कर दिया था. इस साल पूरी कोचिंग मंडी धड़ाम है. १५ हजार बच्चों में केवल सवा सौ-डेढ़ सौ बच्चे ही आईआईटी के लिए क्वालीफाई कर पाये हैं. यह संख्या तो शहर को तब भी नसीब हो जाती थी जब काकादेव में महागुरुओं ने सिंडीकेट बनाकर पूरे देश की प्रतिभा को लूटने का जाल नहीं फैलाया था. दावे तो इस बार भी हो रहे ह्रैं लेकिन ये दावे एक आंसू के आठ-आठ रो भी रहे हैं. काकादेव कोचिंग मंडी में ही इसबार के नतीजे देखकर यह कहने वाले 'सरोंÓं ने सर उठाना शुरू कर दिया है कि बिल्डरों, शेयर बाजारियों और धंधेबाजों की अगर यही रफ्तार रही तो शहर को हर तरह की प्रतिष्ठा देने वाला यह पवित्र व्यवसाय मिटियामेट हो जाएगा.
रिपोर्ट- मुख्य संवाददाता
पांच साल में कुछ नहीं बदला, दलालों का वर्चस्व, रैंकों की खरीद फरोख्त,हजार -पन्द्रह सौ छात्रों के बैच, सरों की उठा पटक और इसके बीच पिसते बच्चे. दूसरी तरफ हैं चमचमाती बिल्डिगें एसी कक्षायें, हान्डा-सीआरवी से पधारते सर, रैंक शरूद्गद्ग&द्यद्गद्गह्म् होर्डिंंगें, और अखबारों में फुल पेज के विज्ञापन. यह ईश्वर की कृपा ही थी कि जब कानपुर से उद्योगों का सफाया हो रहा था तो काकादेव ने उम्मीदों की एक नयी किरण जगायी. पन्द्रह बीस साल पहले कुछ लोगों ने बीस पच्चीस के बैच में छात्रों को पढ़ाने का जो जूनूनी अभियान रूद्गुरू किया था वह धीरे - धीरे अरबों के टर्न ओवर वाले व्यवसायों में बदल गया है. इस व्यवसाय में करोड़ों रूपया अखबारों के विज्ञापन के रूप में मिलने लगा है. हजारों लोगों को हास्टल, टिफिन कैरियर, पेइंग गेस्ट, रेस्टोरेन्ट, जैसे कामों में जगह मिली. लेकिन अफसोस यह कि काकादेव कोचिंग हब बनने के बजाय मंडी बन गया. तकरीबन वैसी ही मंडी जैसी कभी मुजरा करने वालों के लिए प्रसिद्घ थी. अच्छे से अच्छा पढ़ाकर, इन्जीनियरिंग और मेडिकल टेस्ट में अपडेट होकर ज्यादा से ज्यादा सेलेक्शन कराने के बजाय तामझाम, दलाली बट्टे, खरीद-फरोख्त के रास्ते पर चलकर रूद्गार्टकट अपना लिया. दो हजार पांच में रैंकों की खरीद-फरोख्त का जो सिलसिला रूद्गुरू हुआ था, दस में भी उस पर विराम लगता नहीं दिख रहा है. 2005 में हमने बताया था कि कैसे उस साल के टापर पीयूष श्रीवास्तव (इलाहाबाद) को काकादेव के चार कोचिंग संचालकों ने लाखों रूपये देकर खरीदने का प्रयास किया था. इसी तरह गुजरात के रहने वाले और बम्बई जोन से से सेलेक्ट हुये पारसविल पटेल को राज कुरूद्गवाहा, ओपी जुनैजा और संजीव राठौर ने अपनी कोचिंग का छात्र बताया था, हांलाकि हमारे संवाददाता को वे उससे सम्बन्धित कोई जानकारी नहीं दे सके थे. इसी तरह एक दर्जन अन्य छात्र भी थे जिनको लेकर दावे कई कोचिंग संचालकों ने किये थे. लेकिन सभी फर्जी थे. काकादेव से गाडिय़ों के काफिले निकलते रहे, सुदुरवर्ती जिलों के ग्राम प्रधान से लेकर प्राइवेट स्कूलों के टीचर और प्रिन्सपल तक एडवान्स लिफाफे पहॅुचाते रहे. रावतपुर से सेन्ट्रल तक द्गद्घद्भद्मद्गुरूद्गह्यवालों से लेकर चाय पान और भिखारी के रूप में भी दलालों की एक फौज तैयार हो गयी जो निर्धारित दर से आधे में भी एलानियां एडमीरूद्गन कराने लगी. एक-एक क्लास में हजार-पन्द्रह सौ छात्रों को एक साथ बैठकर पढ़ाया जाने लगा. रिजल्ट निकलते ही कभी खरीदकर और कभी बाहर के छात्रों को बगैर जाने पहचाने अपना बताकर बड़े- बड़े दावे किये जाना बदस्तूर जाते हंै. उसके बाद बड़ी- बड़ी होर्डिगें से पार्टीं जाने लगती हंै दीवारें/अखबारों में पहले पेज पर विज्ञापन.पांच से दस आ गया. झूठे विज्ञापनों का मकडज़ाल जारी है. दो हजार आठ में ही हेलो कानपुर ने लिख दिया था- ''उतर गया पानीÓÓ. काकादेव कोचिंग मंडी का तो पानी उतर रहा है लेकिन मोटी खाल वाले बेरूद्गर्म आंखों का पानी उतरने को तैयार नहीं है. दो हजार दस का रिजल्ट निकलने के बाद सबके सांप संूघ गया है, सब मान रहे हंै कि रिजल्ट गिरा है रैंके गायब हो गयी हैं लेकिन फर्जी दावे बदस्तूर जारी है. हिंमाशु सक्सेना फिजिकली हैन्डीकैप्ड कोटे से सेलेक्ट हुआ है. पंकज अग्रवाल के साथ संजीव राठौर मनीष कोबरा सब उसके लिए दावे कर रहे हैं. अनीष श्रीवास्तव व राजकुशवाहा द्वारा आई0आई0टी0 में तेइसवी रैंक पर आये समीर अग्रवाल व ५८वीं रैंक पर आये अक्षय सिंघल को अपना बताया जा रहा है लेकिन किसी ने भी इन्हें काकादेव में आज तक नहीं देखा है. इसका सीधा प्रमाण यह है कि पंकज अग्रवाल इस छात्र को अपना बताने को तैयार नहीं है, जबकि पिछले वर्ष यह सब सिग्मा के झण्डे तले एक थे. लोकेश अग्रवाल ने आकाश इन्स्टीटयूट से अल्टीमेट शार्टटर्म कोर्स किया था. सी0बी0एस0ई 2010 में शहर की टापर रहे लोकेश को लेकर आधा दर्जन कोचिंग संचालक अपने-अपने दावे कर रहे हैं पिछले वर्ष हारून से फिजिक्स पढ़कर आईआईटी रैंकर आशीष आनन्द को मैथ, व कैमिस्ट्री के लिये लाखों रूपये का आफर देकर ठग लिया गया था. बाद में वह सहबान और संजीव की होर्डिंगों में दिखायी देने लगा था. कोचिंग मंडी में सन्नाटा है, सांप सा संूघ गया है सबको फिर भी सब अपने- अपने रिजल्ट को सन्तोषजनक या अच्छा बता रहे हंै. दिक्कत उनकी है जिन्होंने एक हजार से आठ हजार तक एडमीशन लिये थे. अब जब आई0आई0टी0 में शहर से सेलेक्टेड छात्रों की बात हो रही है तो दावे पचास से पांच सौ के बीच घूम रहे हैं. हारून कोचिंग के नेगी सर स्वीकारते हंै कि पचास बच्चे तक सेलेक्ट हुये होंगे. पंकज अग्रवाल का मानना है कि एक सौ तीस चालीस हुये हैं, आलोक दीक्षित का दावा साढ़े चार सौ का है . हेलो कानपुर की पुख्ता जानकारी तो यही कह रही है कि शहर में जनरल कैटागिरी में आई0आई0टी0 की 180 वी रैंक आयी है जो आलोक दीक्षित व महेश सिंह की कोचिंग से है. बाकी के बारे में राम जाने .1अनुराग अवस्थी मार्शल

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