सोमवार, 12 जुलाई 2010

नाम की राजनीति काम की नहीं

कानपुर देहात के लोग पूछ रहे हैं ये रमाबाई कौन हैं..? ऐसे ही जब कानपुर विश्वविद्यालय का नाम शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय रखा गया था तब शहरुओं ने पूछा था- ये शाहू जी महाराज कौन है..? ..... रमाबाई डा. भीमराव अम्बेडकर की प्रेरणा स्रोत पत्नी का नाम है. अब आइये खबर पर- सूबे की मुखिया मायावती ने गुरुवार को कैबिनेट की बैठक में कानपुर देहात का नाम बदलकर रमाबाई नगर कर दिया और अमेठी को फिर से जिला बनाकर उसका नाम धर दिया शाहू जी महाराज नगर. दोनों ही जिलों में इस समय कांग्रेस के सांसद हैं. एक है राहुल गांधी और दूसरे हैं राजाराम पाल. राजा राम पहले बसपा में थे और इसी क्षेत्र से सांसद भी चुने गये थे लेकिन इस समय वह कांग्रेस में हैं. कांग्रेसी सांसद बनने के बाद वह लोकसभा में सवालों के बदले रिश्वत लेने के आरोप में बर्खास्त हुए और मायावती ने उन्हें बसपा से निकाल बाहर किया. राजाराम भी कम जझारु नहीं निकले. किसी तरह कांग्रेस से टिकट मैनेज कर मेहनत की और बसपा के ही आधार वोट पर खड़े होकर फिर सांसद बन गये. राहुल दलित भोज और रात्रि वास से पहले ही मायावती की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं. इसतरह मायावती व उनके नीति नियंताओं ने काफी चालाकी से इन दोनों ही जिलों को छेड़कर जहां राहुल के लिए विकासीय दिक्कतें पैदा कर दी हैं वहीं कानपुर देहात का नाम रमाबाई नगर रखकर क्षेत्र को याद दिलाया है कि यह दलितों का गढ़ है राजाराम पाल का नहीे.

कायदे से नामकरण व जिला बनाने के सवाल पर बवाल हो जाना चाहिए कम से कम कांग्रेस की ओर से. लेकिन सब खामोश हैं. कारण कि नया जिला बनाना प्रदेश सरकार का संवैधानिक अधिकार है. हां, नाम बदलने के लिए जरूर केन्द्र से मंजूरी चाहिए. अब अगर देहात कांग्रेस ताल ठोंक दे तो जिलों के जन्म और नामकरण की राजनीति में एक और तड़का लग जाये. लेकिन देहात कांग्रेस भला क्यों करेगी जब राष्ट्रीय कांगे्रस मौन है. इस संबंध में सांसद राजाराम पाल का कहना है कि नाम बदलने से अगर कानपुर देहात का विकास होता है तो कोई आपत्ति नहीं लेकिन नहीं लगता कि मायावती का हाथी यहां विकास लेकर दौड़ेगा. हालांकि जिले का नाम बदलने के पीछे सरकार का कहना है कि कानपुर नगर और कानपुर देहात दोनों नामों में काफी समानता होने के कारण भ्रम हो जाता था जिससे कई प्रशासनिक कार्य प्रभावित होते थे. इसलिए हो रही असुविधा को समाप्त करने के लिए कानपुर देहात का नाम बदल दिया गया है.इससे पहले भी कानपुर देहात को दो बार अलग जिला बनाया गया लेकिन आज तक इसके स्वरूप के विकास में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ. समय-समय पर सभी राजनीतिक दलों ने इस जिले को विभाजित करने में अपने राजनीतिक हित पूरे किये हैं. अपने विकास की राह देख रहे इस जिले को 34 साल का एक लंबा सफर तय करने के बाद एक बार फिर नए नाम की पहचान मिली है. रमाबाई नगर नाम के साथ अब देखना यह है कि सरकार इसके विकास और रख रखाव में कितना ध्यान देती है. गौरतलब है कि कानपुर जिले के विशाल क्षेत्र को मद्देनजर रखते हुए इसके ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने के लिए 9 जून 1976 को कानपुर देहात के नाम से एक जिले का सृजन किया गया था, लेकिन प्रशासनिक असुविधाओं को देखते हुए 12 जुलाई 1977 को तत्कालीन जनता सरकार विभाजन को रद्द कर इसे दोबारा कानपुर में शामिल कर दिया. इसके बाद बनी कांग्रेस की सरकार ने 25 अप्रैल 1981 को कानपुर देहात को नगर से अलग नए जिले का पुन: निर्माण किया. जिसमें पांच तहसीलों घाटमपुर, अकबरपुर, डेरापुर, भोगनीपुर और बिल्हौर के साथ ही 17 विकास खंड इसके अन्दर आए थे. 1984 में रसूलाबाद को तहसील का दर्जा दिया गया जो कि देहात में ही हैं. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान 11 अप्रैल 1994 में कानपुर देहात का नाम अकबरपुर करने की घोषणा के साथ ही यहां माती मुख्यालय की आधारशिला रखी. जिसमें जिला मुख्यालय, विकास भवन, पुलिस अधीक्षक कार्यालय आदि भवनों का निर्माण भी हुआ. माती मुख्यालय में लगे शिलापट्टों पर आज भी जिले का नाम अकबरपुर खुदा हुआ है. लेकिन अधिसूचना जारी न होने के कारण अभी तक इसका नाम कानपुर देहात ही रहा. 1997 में घाटमपुर और बिल्हौर तहसीलों को देहात से अलग कर फिर नगर में शामिल कर दिया गया और सिकंदरा कस्बे को पृथक कर तहसील का दर्जा दे दिया गया. 12 जुलाई 2001 को तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने माती में तैयार भवनों से प्रशासनिक कार्यों को शुरू करने की हरी झंडी दे दी. वर्तमान में इस जनपद के 3242.88 वर्ग किमी क्षेत्रफल में लगभग 25 लाख की आबादी निवास कर रही है और अकबरपुर, भोगनीपुर, रसूलाबाग, डेरापुर और सिकंदरा जैसी तहसीलें शामिल हैं.इसके दस ब्लाकों में आठ नगर पंचायतें, एक नगर पालिका व 612 ग्राम पंचायतें व 102 न्याय पंचायतों में 1032 राजस्व गांव शामिल हैं. कानपुर देहात का नाम रमाबाई नगर रखने के पीछे राजनीति के गलियारों में चर्चा है कि मायावती ने मिशन 2012 की शुरुआत कर दी है. वह दलितों के वोट को एक बार फिर अपना बनाने के लिए ऐसा कर रही हैं.1

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