मंगलवार, 27 जुलाई 2010

एजुकेशन हब में छेद
करोड़ों का निवेश और लंबे ताम-झाम से निजी इंजीनियरिंग कालेज खोलने वालों को समझ आ रहा होगा कि शिक्षा.. विशेषरूप से तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा अर्थात सीधे-सीधे जीवन यापन से जुड़ी शिक्षा किसी पैकेज, स्कीम या विज्ञापन की बैसाखियों पर साध कर न किसी को दी जा सकती है और न हीं ली जा सकती है. खरीदना बेंचना तो बहुत दूर की बात है. शहर के कामयाब धनाढ्यों के खारिज इंजीनियरिंग कालेज तो कम से कम २०१० सत्र में यही सीख दे रहे हैं.
प्रदेश में तेजी से उभरे कानपुर नाम के 'एजुकेशन हबÓ में इसबार छेद दिख रहा है. पहले यूपीटीयू की प्रवेश परीक्षा के नतीजे आये. इन नजीजों ने काकादेव के कोचिंग गुरुओं की गुरुअईÓ ढीली कर दी. शहर से न कोई उल्लेखनीय रैंक आई और न ही कानपुर कोई विशेष आकर्षण पैदा कर सका. अब जब प्रवेश के लिए कालेजों के चयन की बारी आई तो इंजीनियर बनाने वाले कालेज खाली पड़े हैं और यूपीटीयू पास युवा टेलेंट एडमीशन लेने से इंकार कर रहा है. नतीजनत... लगभग सभी के लिए प्रवेश के दरवाजे खोल देने के बाद भी इस बार प्रदेश के निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में अच्छी खासी तादाद में सीटें नही भर पायीं.सीटें भरने का यह हाल तब है जबकि इस साल इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था उत्तर प्रदेश प्रावधिक विश्वविद्यालय (यूपीटीयू) नें परीक्षा में बैठने वाले करीब-करीब सभी छात्रों को कांउसिलिंग में बुला लिया है. प्रावधिक विश्वविद्यालय से संबद्ध निजी और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में इस साल बीटेक की 1.05 लाख सीटें हैं. उत्तर प्रदेश में प्रावधिक विश्वविद्यालय के तहत 280 कॉलेज हैं.बीते साल भी कांउसिलिंग के बाद निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की 16,000 सीटें नहीं भर पाई थीं. इस बार की काउंसिलिंग में यह संख्या और बढ़ गई है. लगभग ४८ हजार सीटें खाली पड़ी हैं. यह सब तब है जब इस बार छात्रों को लुभाने के लिए निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों ने प्रवेश के दो महीने पहले से ही जबरदस्त विज्ञापन अभियान छेड़ दिया था. निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों ने छात्रों को आकर्षित करने के लिए काउंसिलिंग सेंटर पर अपने सजीले स्टॉल भी सजा रखे थे. इन स्टॉलों पर छात्रों को मनचाहा ट्रेड देने का वादा भी किया गया. निजी इंजीनियरिंग कालेज अपने यहां के प्लेसमेंट के बारे में भी बढ़ा-चढ़ाकर बताते रहे यहां तक कि एडमीशन के साथ लेप-टॉप, मोबाइल, कंसेशन व कमीशन की स्कीमें भी लगाईं लेकिन नतीजे में शिक्षा और पान का गुटखा अलग-अलग उत्पाद निकले. स्तरीय शिक्षा में एक तरह से छात्रों ने कानपुर ही क्यों पूरी की पूरी यूपीटीयू को ही खारिज कर दिया. कानपुर में एक लाख ६४ हजार बच्चों को काउंसिलिंग के लिए बुलाया गया. केवल ३५ प्रतिशत ही बच्चे काउंसिलिंग में आये और इनमें भी कितनों ने ही माहौल देखकर एडमीशन लेने का मन छोड़ दिया. हालत यह है कि शहर के जो इंजीनियरिंग कालेज मीडिया और होर्डिंगों में छाये पड़े हैं वे ये छुपाने में लगे हैं कि उनके यहां एडमीशन की क्या स्थिति है. कालेजों ने अखबारों के मुंह पर पहले ही विज्ञापन की पट्टी बांध रखी है जिसके कारण वे तमाम सच्चाइयां जो कालेज संचालकों के धंधे को नुकसान पहुंचा सकती हैं, अभी भी सार्वजनिक नहीं हैं. कोचिंग संचालक अमित थालिया कहते हैं कि चाहे कोचिंग हो या इंजीनियरिंग कालेज थोथे प्रचार से कुछ नहीं होगा. इसबार कोचिंग और इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश को लेकर जो हताशा देखी जा रही है उसका कारण है कि संस्थानों की ओर से विज्ञापनों में जो दावे किये गये वे वक्त के साथ सबके सामने आ गये. जैसे अगर किसी कोचिंग में वास्तव में शिक्षा का स्तर है तो इसका असर यूपीटीयू के रिजल्ट में साफ हो जाता है. ऐसे ही अगर किसी इंजीनियरिंग कालेज में वाकई हुनरमंद तैयार किये जाते हैं तो इसका असर कैंपस सलेक्शन में या बच्चों के प्लेसमेंट से साफ हो जाता है. चूंकि उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से कानपुर में इंजीनियरिंग कालेजों की शुरुआत को अब ४ वर्ष हो ही चुके हैं तो यहां के शैक्षणिक स्तर और उससे प्लेसमेंट की गुंजाइशों की तस्वीर उभरने लगी है. जिसकी पहली झलक उत्साह जनक नहीं है. विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति का कहना है कि प्रदेश में लगभग २७७ इंजीनियरिंग कालेजों की आवश्यकता नहीं है. प्रतिभा और व्यवसायिक आवश्यकता को देखते हुए प्रदेश में १०० से ज्यादा कालेज नहीं होने चाहिए. इसबार जो सीटें खाली पड़ी हैं इसका एक कारण कालेजों की बहुतायतता भी है.कानपुर के साथ-साथ राजधानी लखनऊ की भी यही दशा है. काउंसिलिंग समाप्ति के बाद हर कालेज अब भी यहां एडमीशनों की तलाश कर रहा है. बीते बुधवार को 82,000 से 1,10,000 तक की रैंक वाले 28,000 छात्रों को काउंसिलिंग के लिए बुलाया गया था. पर इनमें से केवल 5500 छात्रों ने ही रिपोर्ट किया. इस बार उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपीटीयू को दो हिस्सों गौतमबुद्ध प्रावधिक विश्वद्यालय लखनऊ और महामाया प्रावधिक विश्वविद्यालय में बांट दिया है. काउंसिलिंग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि छात्रों का ज्यादा रुझान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित इंजीनियरिंग कॉलेजों की ओर है जिनमें प्रवेश महामाया प्रावधिक विश्वविद्यालय के जरिए हो रहा है. हालांकि सीटें भरने में दिक्कत वहां भी आ रही है. बदलाव के इस दौर में इंजीनियरिंग करने के इच्छुक छात्रों की प्राथमिकताएं भी बदल गई हैं. सूचना तकनीकी के लिए इंजीनियरिंग छात्रों की दीवानगी अब बीते दिनों की बात लगती है. उत्तर प्रदेश प्रावधिक विश्वविद्यालय (यूपीटीयू) की प्रवेश परीक्षा पास करने वाले छात्रों की ट्रेड को लेकर रुचि बदल गयी है.पहले जहां कंप्यूटर साइंस और सूचना तकनीकी का बोलबाला था वहीं इस बार यूपीटीयू से संबंद्ध इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश लेने के इच्छुक छात्र सिविल, इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल जैसे ट्रेड को अपनी पहली पसंद बना रहे हैं. छात्रों की प्राथमिकताओं में अब आईटी नीचे हो गया है जबकि सिविल पहली पसंद बन गया है.1विशेष संवाददाता

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