गुरुवार, 8 जुलाई 2010

महागुरुओं की बोलती बन्द
आज सिग्मा के महा-गुरूओं के पास कुछ भी कहने के लिये शब्द नहीं हैं. हैदराबाद के रैंकर को अपना बताकर विज्ञापन तो हो जाएगा, कुछ सौ छात्र फिर चकाचौंध में फंसकर एडमीशन ले लेंगे लेकिन आखिरकार काठ की हान्डी कब तक चढ़ेगी ?''सात लूटेंगे सत्तर करोड़ÓÓ सिग्मा की यह गाथा हमने दो हजार नौ में अपनी कवर स्टोरी बनाई थी . सिग्मा बनने के साथ ही हमने उसमें दरार पडऩे की खबर भी छापी थी. सिग्मा टूटने की खबर के साथ हमने यह छापा था कि नये रूप रंग के साथ सिग्मा फिर आ सकता है. हमसे पहले या बाद में किसी अखबार या चैनल ने सिग्मा ब्रान्ड को विज्ञापन के अतिरिक्त किसी नजरिये से न देखने के लिये आंखे बन्द कर ली थीं. सैकड़ों छात्रों का कैरियर दांव पर लगा था। हमारी खबर के बाद छात्रों की फीस वापस की गयी, बच्चों को किसी भी सर से पढऩे की छूट दी गयी. पुष्ट सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग सात हजार छात्रों ने सिग्मा में एडमीशन लिया था. हमने अपनी खबर में लिखा ही था कि '' लूट का ऐसा कल्पवृक्ष जिसकी जड़ों में अकूत दौलत कमाने की चाहत और तनों में मेधावियों की सपनों को चूर-चूर करने की अदम्य शक्ति ...? पूरे वर्ष सिग्मा ऐसा ही कुछ करता रहा. कभी अपने ही कोचिंग के सरों की थुक्का फजीहत का षडयन्त्र तो कभी अपने छात्रों को हतोत्साहित करने की आत्मघाती कोशिश. राज अनीष एंड कम्पनी से पहले अलग हो गये, आशीष, अनुराग, बाद में पंकज अग्रवाल नेताओं और दलों की तर्ज पर विलय और टूट की दलदली मुहिम में डूब गये हजारों बच्चों के सपने. आज यह प्रश्न काकादेव में चारों ओर तैर रहा है कि जो लोग अपने स्वार्थ और हितों की दीवारें इतनी ऊंची कर लेते हैं कि जिनसे टकराकर मेघा के पंख कट कर गिर जायें उनके हाथों में अपने बच्चों का भविष्य कैसे सौंपा जाये? गल्तियों से सबक सीखने को कोई तैयार नहीं है. सिग्मा टूट गया. एक्सिस सिग्मा बन गया है. नये सत्र की शुरूआत के साथ पिछले साल की तर्ज पर अखबारों के पहले पेज पर एक्सिस सिग्मा छा गया है. पहले विज्ञापन में फिजिक्स कैमिस्ट्री और मैथ को एक साथ पढ़ाने का दावा किया गया था. इसमें फिजिक्स के अनीस श्रीवास्तव, राज कुशवाहा के साथ कैमिस्ट्री के संजय चौहान और मैथ के कुछ अनजान नाम थे. इसी बीच कुछ खिचड़ी पकी और मैथ के नाम विज्ञापन से गायब हो गये . लोगों का मानना है कि आशीष-अनुराग से उनका टैक्ट हो गया है. चन्द दिन नहीं बीते कि कैमिस्ट्री के संजय चौहान भी सिग्मा नाम के अलग विज्ञापन में प्रचार करने लगे . फिलहाल एक्सिस सिग्मा के बैनर तले अनीष श्रीवास्तव व राज कुशवाहा ही एक जुट हैं और आज की तारीख में सबसे बड़ा कौतूहल है कि आखिर अनीष के पैर कितने कमजोर हो गये हंै कि उन्हें राज नाम की बैशाखी कि जरूरत है. अनीष किसी पहचान का मोहताज नहीं है फिर यह गठजोड़ क्यों? जितने मुंह उतनी बाते हैं. कोई अनीस की टीआरपी गिरने की बात करता है तो कोई उनके हाईफाई टीचिंग स्टाइल को दोषी ठहराता है. आशीष विश्नोई, अनीष श्रीवास्तव, पंकज अग्रवाल से मिलने के लिये हमने उनके दरों पर कई बार दस्तक दी लेकिन पंकज को छोड़कर किसी से मुलाकात न कर सके. पंकज मानते हैं कि सिग्मा बनाना एक प्रयोग था जो फेल हो गया. इसके लिये वे इगो क्लैश को जिम्मेदार मानते हैं.अपनी कोचिंग में अभिवावकों व छात्रों से बड़ी निश्चिंतता से मिल रहे पंकज कहते हैं - 'मैं दलालों को कुछ देने के बजाय सीधे गरीब छात्रों की ही मदद में विश्वास रखता हंू. काकादेव में लूट खसोट की इस चरम से वे भी क्षुब्ध थे और मानते हंै कि इससे दो गुने तो आईआईटी में बच्चे तब सेलेक्ट होते थे जब मात्र सात हजार सीटे आईआईटी में होती थीं, आज दो गुनी सीटे हैं . पूछना हमकों बहुत कुछ था आशीष और अनीष से लेकिन जबाब के लिये वे मिले नहीं और हम नहीं पूछ सके कि क्या ये सच है कि जब छात्रों की आपको मोरल सपोट की जरूरत होती है तब आप विदेश यात्राओं पर क्यों चले जाते हंै. या यह कि सारे भारत के साथ विदेशों में पढ़ी जाने वाली टीएमएच प्रकाशन, पियरसन पब्लिकेशन, भारती भवन पटना की किताबें इनके यहॉं क्यों नहीं पढ़ायी जाती हंै या यह भी कि आप लोग अपने को अपडेट करने में विश्वास क्यों नही रखते हैं, आज भी आपके यहॉ कम्प्यूटर में कोरल 5 में काम क्यों हो रहा है? आखिर जब काकादेव आने वाले आधे छात्र अनीष, पंकज और आशीष के नाम पर आते हैं तो आप क्यों नही सुधर रहे हैं. 1 हेलो संवाददाता

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