मंगलवार, 27 जुलाई 2010

चौथा कोना

लत्ता हो गई पत्रकारिता

कानपुर में दैनिक जागरण और लखनऊ में राष्ट्रीय सहारा दैनिक को समझ आ चुका होगा कि दलित बेटी की हुकूमत का मूड क्या है? कानपुर में विश्व के नम्बर एक अखबार के मालिक महेन्द्र मोहन की मौजूदगी में उनके चीफ रिपोर्टर को डीआईजी प्रेम प्रकाश ने खुद मारा और अपने सिपाहियों से मरवाया. मालिक निदेशक 'महेंदर बाबूÓ बेचारे तिलमिला कर रह गये, न कुछ कह पाये, न कुछ कर पाये. यहां तक कि डीआईजी के तबादले के लिए पूरा जोर लगा डाला... तबादला तो दूर उन्हें शाबाशी मिली. तभी तो वह आज भी डटे हैं हां, जिसका अंदाजा नहीं था... और न ही कोई साफ कारण था.... डीएम साहब जरूर बदल दिये गये. माया हुकूमत का यह कानपुर वालों को एक संदेश है कि उसकी नजर में अखबार या मीडिया का कोई लिहाज नहीं है. ठीक इसीतरह पिछले दिनों लखनऊ में 'वेंट्स क्वीनÓ की अगवानी में राष्ट्रीय सहारा के पत्रकारों पर लाठीचार्ज भी यही बताता है कि यह सरकार न तो 'सहाराश्रीÓ के सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों को मान देती है और न ही उनके समाचार-पत्र को. यह सरकार (माया) तो समय-समय पर 'सहारा समूहÓ को 'डेंटÓ देने की कोशिश में रहती है. यह तो दम है सुब्रत राय सहारा का कि वह हर डेंट को झेलते हैं और प्रतिक्रिया में देश के संविधान, कानून और आजादी का भरपूर इस्तेमाल कड़ा प्रतिरोध करते हैं. लेकिन जागरण वालों ने क्या किया...? वे बेइज्जत हुए मार खाई और उसके बाद घटना को छुपाने में लग गये, मानो कोई बड़ा गुनाह कर डाला हो. जब अखबार खुद अपने ऊपर हुई ज्यादती का प्रतिरोध नहीं करेगा तो उसके कारिंदों की आखिर क्या सामाजिक दशा होगी. आज कानपुर शहर में प्रेम प्रकाश के नेतृत्व वाली पुलिस के सामने 'पत्रकारोंÓ और पॉकेट मारों में कोई फर्क नहीं रह गया है. एक जिम्मेदार रिपोर्टर ने मुझे बताया कि डीआईजी ने पिछले एक महीने में बारी-बारी से शहर के आधा दर्जन शेर बनकर घूमने वाले रिपोर्टरों के थानों में प्रवेश पर अघोषित रोक लगा रखी है. ये वे पत्रकार हैं जो 'डीआईजीÓ के काफी करीबी प्रचारित थे. इन पत्रकारों के बारे में थानों की दलाली भी चर्चित है. कुल मिलाकर लत्ता हो गये हैं कानपुर के पत्रकार..? आखिर पत्र और पत्रकारों की इस दशा के लिए जिम्मेदार कौन है? जब पैसे लेकर खबरें छापना पवित्र व्यावसायिकता की श्रेणी में आ जायेगा. दलाली और वसूली पत्रकारों का लक्ष्य होगा, अखबरों के मालिक और संपादक राजनीति दलों की पक्षधरता करेंगे, राज्यसभा जाएंगे, खुलेआम किसी दल विशेष के पक्ष में अभियान चलाएंगे, किसी नेता विशेष को मिटाने में अपने थैले खोलेंगे, कागज काला करेंगे तो अगला भी यानी सामने वाला 'पीडि़त बलिष्ठÓ भी मौका आने पर अपना 'दांत-बलÓ दिखायेगा ही. कौन नहीं जानता कि सहाराश्री और मुलायम सिंह यादव के बीच क्या है..? महेन्द्र मोहन तो खुद सपा से राज्य सभा गये. अब अगर यह दोनों 'व्यक्तित्वÓ दलित पुत्री माया की तीसरी आंख के सामने आते हैं तो कैसे कहा जाये कि यह तीसरे खंभे का चौथे खंभे पर प्रहार है. इसे यह क्यूं न माना जाये कि बसपा अपने नम्बर वन दुश्मन सपा के सूरमाओं को अपने निशाने पर रखे है.शहर भूला नहीं होगा जागरण के 'फोटोग्राफरÓ लल्ला पर तत्कालीन एसएसपी डीएन सांवल की पुलिस का हमला और बदले में पत्रकारों का जवाब..। जागरण प्रबंधन उस मौके पर भी 'सांवलÓ की खैर ख्वाही में लगा था और अपने फोटोग्राफर को ही दोषी मान रहा था. लेकिन तब 'प्रेस क्लबÓ ने मोर्चा लिया. कुछ हुआ हो न हुआ हो... घटना के बाद वर्षों कानपुर में किसी डीआईजी या आईजी की पत्रकारों को छेडऩे की हिम्मत नहीं थी. लेकिन आज का प्रेस क्लब केवल चंदा खोरी और भ्रष्ट आचरण वाले पत्रकारों का कुनबा भर बनकर रह गया है. प्रेस क्लब में दस वर्षों से उन सतही पत्रकारों का कब्जा है जो शहर के गुंडा-माफियाओं से आर्थिक रूप से पोषित हैं. चुनाव कराने के नाम पर प्रेस क्लब की पूरी कार्यकारिणी को ऐसा लगता है मानो उनसे उनके बाप का 'राज-पाटÓ बदलने को कहा जा रहा है. जिस शहर में ऐसे भोथरे पत्रकारों का नेतृत्व होगा, व्यापारी अखबारों का वर्चस्व होगा और दल्ले पत्रकारों के हाथों कलम होगा तो पत्रकारिता लत्ता होगी ही. इसमें क्या दोष कानपुर के प्रेम प्रकाश का या लखनऊ के हरीश कुमार का. बाकी बात रही माया सरकार की तो चौथे स्तम्भ पर बार-बार अकारण हमलावर होना आम जनता पर हमलावर होना भी है. इसलिए ज्यादा सत्ता के मद में इतराना ठीक नहीं.1प्रमोद तिवारी

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