सोमवार, 2 अगस्त 2010

मौका है हरियाली बो दें
समय से मानसून है. झमाझम बारिश हो रही है. बादल घिरता है, बरसता हैै, फिर खुल जाता है। यही मौका है कि हम पूरे शहर में हरियाली बो दें, खुशबू रोप दें. कालिदास इसी मौसम में मेघदूत रच देते हैैं. इन्द्रधनुष अनायास आकाश के छोर नापने के चक्कर में दुनिया से सात रंगों की चुगली कर देता है. सन्ï सत्तर के दशक में धर्मेन्द्र झूम-झूम के कहते हैं- 'बरखा आये, कि झूले पड़-पड़ जाये, कि मेले लग गये, मच गई धूम रे- कि आया सावन झूम के...Ó इन्हीं दिनों के लिए जन्नतनशीं मुकेश गा गये... 'बरखा रानी, जरा जम के बरसो, मेरा-दिलवर जा न पाये, झूम के बरसो.Ó मगर तब के नगर और आज के महानगर के बीच बादल, बरखा, झूले दिलवर सबके सब अपने मतलब बदल चुके हैं. हरियाली और खुशबू की बातें भी पहले की तरह हरी और नथुने फुलाने वाली नहीं रहीं. तभी तो शहर के वरिष्ठï कवि हरिकांत शर्मा कहते हैैं- 'माली! क्या तरकीब निकाली, गमलों में सिमटी हरियाली.Ó तंज और यथार्थ को समेटे इन पक्तिंयों के लिए कवि को कम माली को ज्यादा धन्यवाद देने का मन करता हैै कि चलो, उसने कोई तरकीब तो निकाली वरना शहर में कहा बोयें पेंड़, कहां रोपें खुशबू... कहां डालें झूले और कैसे गाये घनन-घनन घन घिर आये बदरा...। हर कहीें तो $जमीन का रोना है. शहर ने धरती को प्लाट बना दिया है. प्लाट में मकान उगते हैं, बाग नहीं. इन्हीं मकानों में रहने वालो के लिए इस बार हम हरी-हरी महकदार बातें कर रहे हैं ताकि जिन्हें जहां मौका मिले, जैसे बन पड़े कुछ हरियाली कुछ खुशबू और कुछ रंग जरुर बोयें.
जैसे-जैसे हमारा शहर बड़ा होता जा रहा है वैसे-वैसे लोगों के घर छोटे होते जा रहे हैं और सिमटती जा रही है नगर की हरी-हरी हरियाली. कहीं बढ़ती आबादी के 'चौड़ीकरणÓ के नाम पर, तो कहीं नये 'प्रोजेक्टÓ के नाम पर, पार्कों, सड़कों, मैदानों व खुली जगहों से हरियाली साफ कर ईंट-पत्थरों के जंगल (इमारतें) बना दिये गये हैैं. शहर में अब कुछ ही गिने-चुने स्थान हंै जहां ठीक-ठीक हरियाली दिखाई देती है- मोतीझील, बृजेन्द्र स्वरूप पार्क, सीएसए, कम्पनी बाग, संजय वन ऐसे ही कुछ क्षेत्र हैं लेकिन जहां आबादी लाखों में है, वहां कुछ हजार पेड़ सभी को 'प्राणवायुÓ की आपूर्ति करने में असमर्थ हैं. लेकिन शहर के कई लोगों ने इस समस्या को समझा है और तेजी से खत्म होती हुयी हरियाली को अपनी छतों-छज्जों, चबूतरों और लॉनों में ले आये हैं और अपने छोटे-छोटे गमलों में उसे समेट कर प्रकृति के पास रहने का पूरा आनन्द उठा रहें हैैं। इसे शौक कह लें या फिर आन्दोलन, पिछले बरसात में निसंदेह आम शहरियों ने इस मर्म को नहीं समझा, समझा होता तो इस $कदर पेड़ों की सफाई नहीं होती लेकिन भला हो फैशन का, कि इन दिनों महानगरीय जीवन शैली मेें बागवानी को भी स्टेटस सिम्बल की तरह अपनाया जा रहा है। फलस्वरूप एक लम्बी संख्या अपनी गलती का प्रायश्चित करती हुई सी जहां-तहां, जब-कब पेड़-पौधे लगाने की कोशिश करती दिखती है? वैसे तो किसी शहर का 33 फीसदी भाग पूरी तरह हरा-भरा जंगल होना चाहिए लेकिन शहर में यह बमुश्किल 3 प्रतिशत ही है, शौक से इसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता लेकिन शौक को प्रवृत्ति बनाकर भविष्य की संभावनाएं दुरुस्त की जा सकती हंै। ऐसे में आजकल मौका भी है और दस्तूर भी...। बारिश कभी रिमझिम कभी झमाझम हो रही है। यही समय है कि हम अपने बगीचे में, लॉन में, गमले में छतों पर हरियाली बिखेंरें। बरसात का मौसम ही सबसे सही मौसम है। इस मौसम में पौधे तेजी से बढ़ते हैैं, विकसित भी जल्दी होते हैं। चाहें बीज से निकलने वाले पौधे हो चाहे कलम से। यह जुलाई महीना सबसे उर्वरक महीना है। आइये अब बात करते हैैं, पेड़-पौधे लगाने की सही जगहों की। घर के अन्दर से बात शुरु करते हैं। आजकल घरों का साइज भी छोटा हो गया हैै। हवा, धूप भी बड़ी मुश्किल से मिलती हैैं। इन जगहों पर गमलों में पौधे लगाना बहुत अच्छा रहता है। गमले पौधों के हिसाब से छोटे या बड़े लिये जा सकते हैं। घर के हिसाब से तुलसी को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। यह पौधा रामा, श्यामा, बबई फ्रेन्च और लौंग तुलसी आदि प्रजातियों का आता है। इसके लिये न तो अधिक पानी और न ज्यादा धूप की जरूरत होती है। इसके साथ ही आप गेदें, केलेन्डुला, गुलमेंहदी और गुलाब के खूबसूरत फूलों वाले पौधों को अपने कमरे की खिड़कियों या फिर छज्जों में लगा सकते हैैं। इन फूलों की सुगन्ध से पूरा घर महक उठेगा। छज्जों व छतों पर आप गुड़हल, गुलदाउदी, डहेलिया, रातरानी, इम्जोरा, कनेर, चमेली व बेला के फूलों की सुगन्ध फैला सकते हैं। मेहदीं, पामरोज, अल्पेनिया, लेमन ग्रास, नरगिस जैसे पौधे खुशबू के साथ-साथ किसी प्राकृतिक दृश्य का भरपूर आनन्द देंगे। बदले में ये आपसे बस थोड़ी सी ही मेहनत करवाते हैं।गमलों में बरसाती पानी ज्यादा इक_ïा हो, समय-समय पर खाद डालना बस इतनी सी ही मेहनत। गमलों में पौधे रोपने के लिये सही नाप का एक गमला, खाद और बालू का अनुपात 3-1 का होना चाहिए। यही अनुपात लॉन या बाहर लगाने वाले पौधों के लिए भी जरूरी है। उसके हिसाब से मिट्टïी, थोड़ा गोबर की खाद कुछ बालू और थोड़े से कंकड़-पत्थर की आवश्यकता होती है। गमले के निचले स्थान पर एक छोटा छेद आवश्यक होता है, जिससे कि गमलें में भरा अनावश्यक पानी बाहर निकल सके गमलें में सबसे पहले कुछ कंकड़ पत्थर भरें उसके बाद 3 भाग की गोबर की खाद और 1 भाग बालू मिलाकर मिट्टïी को उसमें पलट दें। बाद में उसमें अपना मनचाहा पौधा लगा कर किसी अच्छे स्थान पर रख दें। बरसात के मौसम में पौधों मेें केवल एक बार ही खाद डालने की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया को करने के लिये आपको मात्र खुरपी की ही जरूरत होगी। जमीन पर पेड़-पौधे लगाने या देखभाल करने के लिये खुरपी के साथ फावड़ा, बाँस की खप्पच्चिाँ, सिकेटियर (कैंची), बडिंग नाइफ की जरूरत होती है।निजी बगीचों में इमली, जामुन, नींबू, सन्तरा, किन्नू, आँवला, बेल, अमरूद आदि बड़े पेड़ इस मौसम में लगाने लायक है। और अगर लॉन न हो तो, डायन्थस, मैट्रेकरिया, डाली हॉक, सनटेसियाँ ब़ऱबेना आदि सुन्दर पौधों से आप उसे सजा सकते हैैं। इनको लगाने में कोई विशेष समस्या नहीं होती। इनका बीज बोकर आसानी से उगाया जा सकता है।यदि किसी को पेड़-पौधों का शौक है लेकिन उसके पास कोई लॉन या छत नहीं है, और घर में भी कोई पौधा न लगा सकता हो तो इस काम को पास के मैदान या पार्क में भी किया जा सकता है। मेट्रोपोलिटन शहरों में यह प्रचलन जोर पकड़ रहा है। वहां कोई न कोई व्यक्ति किसी पौधे की जिम्मेदारी लेने लगा है। खास तौर पर बच्चे इस काम में बहुत रूचि लेते हैं। खाली जगहों पर हम फल वाले या छायादार, अशोक, आम, आवंला, पीपल, बरगद, पपीता, नीम, अमलतास, कदम्ब, कैसियामिया, हरसिंगार आदि के वृक्ष लगा सकते हैं, जो अधिक आक्सीजन तो छोड़ते ही हैं साथ में वातावरण को शुद्घ भी बनाये रखते हैं। इस तरह आप अपना शौक पूरा करने के साथ-साथ अपने शहर को भी हरा-भरा और ऑक्सीजन से भरपूर बना सकते हैैं।एक खास बात और, घर का वातावरण शुद्घ करने, ऑक्सीजन देने के अलावा भी कुछ विशेष पौधे आपको कई बीमारियों से निजात दिलाने में भी सहायक होते हैैं। जिन्हें आजकल जरूर बो देना चाहिए। सदाबहार का पौधा, कैंसर, डायबिटीज और हाई ब्लड-प्रेशर जैसी बीमारी में बड़ा कारगर सिद्घ होता है। खासी, जुकाम, बुखार में तो तुलसी चाहे वो रामा, श्यामा, लौंग, बबई या फ्रेंच प्रजाति की हो 'रामबाणÓ सिद्घ होती है। पामारोज पौधे की पत्तियों के साथ तुलसी की पत्तियों का मिश्रण बनाकर सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है। किडनी की पथरी के रोग में तुलसी का काढ़ा मरीज को पिलाने से पथरी ठीक हो जाती है।गठिया रोग में अल्पेनिया का पौधा बहुत फायदेमन्द होता है। अल्पेनिया की जड़ों को तेल में गर्म करके मालिश करने से दर्द व रोग से राहत मिलती है। बज्रदन्ती का पौधा दांत के रोगों में लाभ देता हैै। दांत दर्द, मसूड़ों के दर्द, में इसके फल के सेवन से लाभ होता हैै, साथ ही दांत मजबूत होते हैं।लेवेन्डर के पौधे में 2 प्रतिशत तेल पाया जाता है। इस पौधे की सुगन्ध का प्रयोग कई प्रकार की मानसिक बीमारियों में किया जाता है।अब आप सोचिये कि ये पौधे कितने लाभ दायक हो सकते हैैं। मन की प्रसन्नता के साथ तन का स्वास्थ्य भी ये पौधे निस्वार्थ बाँट रहे हैं। बस जरूरत है आपके पहल करने की। मौसम सरल है तो फिर देर काहे की। पेड़ किस $कदर जरूरी हैं राहत के लिए। इंदौरी का एक शेर देखिए-बेसमर मानकर जो काट दिए थे वे दरख्त।याद अब आता है बेचारे हवा देते थे॥1 प्रमोद तिवारी

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