मंगलवार, 31 अगस्त 2010

वाकई आजादी है
प्रमोद तिवारी
जिस्मानी कमाई के धंधे में क्षेत्रीय पुलिस की खुली भागेदारी होतीे है. एक रेस्टोरेंट वाला हर महीने थाने में कम से कम सात हजार रुपये देता है. मिला जुला कर लाख रुपये से ज्यादा की माहवारी बनती है. इस रुपये से थाने के काफी काम चलते हैं. सीनियरों की आव-भगत में यह एग्जाई काम आती है. वाकई हम आजाद हो चुके हैं.
विकास नगर चिडिय़ा घर, मैनावती मार्ग पर पिछले ५ वर्षों से बेहद घटिया, बेहयायी से भरा एक गिरा हुआ शर्मनाक तमाशा चल रहा है. छोटी -छोटी शटर वाली दुकानों को रेस्टोरेन्ट और फास्ट फूड के नाम पर सुरक्षित भोग स्थलों में तब्दील कर दिया गया है. इन रेस्टोरेंट में भीतर सजी मेजों पर लजीज व्यंजन के बजाय गलीच अय्याशी परोसी जाती है. यह होटल, ये रेस्टोरेंट बिना किचन के जिस्म की भूख मिटा रहे हंै. कामुक युवा जोड़े इन दबड़ों मे फुट फुट की दूरी पर अपनी शर्म - हया उतार फेंक नंगई में डूब जाते हंै. इसके बदले रेस्टोरेंट वालों को उन्हें तीन सौ रूपये प्रति घंटे के हिसाब से बिताये समय का भुगतान करना होता है. इस जिस्मानी कमाई के धंधे में क्षेत्रीय पुलिस की खुली भागेदारी होतीे है. एक रेस्टोरेंट वाला हर महीने थाने में कम से कम सात हजार रुपये देता है. मिला जुला कर लाख रुपये से ज्यादा की माहवारी बनती है. इस रुपये से थाने के काफी काम चलते हैं. सीनियरों की आव-भगत में यह एग्जाई काम आती है . वाकई हम आजाद हो चुके हैं. यह सब कोई लुका छिपी का खेल नही हैं. जो भी हो रहा है खुले आम हो रहा है. सब जानते हैं. इन रेस्टोरेंटों के बाहर का नजारा भी खूब होता है. जैसे टैम्पों वाले अपने 'छोटुओंÓं से आवाज लगवा-लगवा कर सवारियों को बुलाते हैं, ठीक वैसे ही इन रेस्टोरेन्टों के बाहर भी छोटुओं की आवाजें लगती हैं. जैसे कभी शहर के रेड-लाइट एरिया मूलगंज में रंडियों के भड़वे गलियों में घूम रहे अय्याशों को पटाने के लिए अपने अपने माल के गुण गान किया करते थे , वैसे ही इन होटलों के बाहर भी भड़वागीरी होती है. आते जाते युवा जोड़ों को बताया जाता है कि उनके दबड़े में अय्याशी के कितने सुरक्षित और अच्छे इंतजाम हंै. इन रेस्टोरेंट में जैसा कि बताया जा चुका है खाने पीने का समान होता नहीं लेकिन बियर व गर्भ निरोधकों के आर्डर सहर्ष लिये जाते हैं. उनकी भी कीमत कई गुनी होती है. काम पूर्ति की यह कामस्थलियां जिन क्षेत्रों में पांव पसार चुकी हैं वहां जुगलदेवी, जयनारायन, दीनदयाल, जैसे कितने ही प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान चल रहे हैंउजियारी देवी, जागेश्वर मंदिर, शनि मंदिर, हनुमान मंदिर जैसे कितने ही यहां आस्था के केन्द्र हैं. स्थानीय पुलिस अपने महीने और रेस्टोरेंट वाले अपनी भड़वई के चक्कर में यह सब नहीं देख पा रहेे हैं. यह रेस्टोरेंट वाले सिर्फ किशोरमन की काम उत्तेजना का ही दोहन कर रहेे हैं, ऐसा नहीं है. ये शहर भर में फैले देह व्यापार के संजाल के टावर हैं. यहां आने पर अगर आप इन दबड़ों में अपने आप को काम पूर्ति में असहज पाते हैं और आपके पास अपना अलग ठिकाना होता है तो ये फास्ट-फूड वाले लड़कियां भी उपलब्ध करा देते हैं. क्षेत्रीय लोग रेस्टोरेंट मालिकों और पुलिस के इस शर्मनाक काम गठजोड़ से इसकदर उबे हुए हैं कि बार बार बगावत पर उतारु हो जाते हैं. पिछले एक साल में इस क्षेत्र में छोटी-बड़ी कोई आधा दर्जन हिंसा और आगजनी की घटनाएं हो चुकी हंै. हर बार पुलिस लाठी डंडा लेकर इलाकाई लोगों को कानून का पाठ पढ़ा कर शांत करा देती है. कुछ दिन (दो या चार बस) भोग स्थल बंद रहते हंै और धीरे-धीरे देर सबेर फिर खुलने लगते हैं. क्षेत्रीय जनता की इस क्रान्ति का इस धन्धे पर केवल इतना असर पड़ता है कि हर उपद्रव के बाद पुलिस की महीने की आय में बढ़ोत्तरी हो जाती है. कभी सौ रुपये घंटे से शुरु हुआ यह काम व्यापार अब चार सौ रूपये घंटे तक पहुंच चुका है. पुलिस को मिलने वाला महीना प्रति रेस्टोरेंट १५ सौ रुपये से बढ़कर अब ६ से ८ हजार रूपये तक हो चुका है. बीती १३ अगस्त, १४ अगस्त और १५ अगस्त को विकास नगर, गड़रियन पुरवा व आस पास के लोगों ने अय्याशी के इन अड्डों पर फिर धावा बोल दिया. इस बार भी पुलिस बल ने हस्तक्षेप किया. माहौल शांत कराया. फिलहाल ये सभी कामस्थलियां बंद करा दी गई हैं .उम्मीद की जानी चाहिए कि आजादी की सालगिरह मनाने के बाद जब शहर धीरे-धीरे अपनी दिनचर्या में मशगूल हो जायेगा, बंद शटर फिर खुलने लगेंगे और पुलिस की वसूली पहले से और मुनाफा दार हो जायेगी.1

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