मंगलवार, 31 अगस्त 2010

विरोध किया तो मारे गये

विशेष संवाददाता

स्वतंत्रता दिवस की भोर जब सूरज निकला तो दिनेश चंद्र पांडेय, उर्फ छंगा पांडे नवाबगंज थाने के एक कोने में चोरों से भी बदतर स्थिति में बैठे हुए थे. आप सोच रहे होंगे दिनेश चंद्र पांडे उर्फ छंगा पांडे कहां से आ टपके. ये कौन हैं?तो छंगा पांडे विकास नगर मार्केट के व्यापार मण्डल के महामंत्री हैं. 'काम-भोगस्थलोंÓ की जहां से चेन शुरू होती है उसके एक सिरे पर (गुरुदेव पैलेस की ओर) उनकी गेट, ग्रिल की दुकान है. पांडे जी सुबह ९ बजे से देर शाम रात तक इन रेस्टोरेंटों की कारगुजारियों पर नजर रखते हैं. जब भी अय्याशी के इन अड्डों पर स्थानीय लोगों का गुस्सा फूटा 'छंगाÓ पांडे आगे-आगे नेतागीरी करते पाये गये. पांडे जी डीएम से भी मिले. अभी पिछले हफ्ते ही डीआईजी प्रेम प्रकाश से मिलकर क्षेत्रीय पुलिस व रेस्टोरेंट वालों की शिकायत की थी. बकौल पांडे जी डीआईजी ने थाना प्रभारी को बहुत लताड़ लगाई थी. यहां तक कहा कि क्या अब ... का माल खाये भी पुलिस.उसके बाद से पांडे जी को लग रहा था कि एक वह अब छंगा पांडे से मंगल पांडे हो चुके हैं. १५ अगस्त के दिन भी छंगा ने पंगा लिया. जैसे ही मैनावती मार्ग के रेस्टोरेंटो ने आजाद युवाओं के लिये चद्दर बिछाना शुरू किया. पांडे जी ने फिर मीडिया वालों को खबर कर दी. नतीजतन फिर पुलिस को बीच में आकर अपने रसीले रेस्टोरेंटों को बंद कराना पड़ा. पांडेजी विजेता की मुद्रा में आजादी के दिन इलाके में टहले. रात आई. रात क्या आई साथ में बवाल लाई. पांडे को रेस्टोरेंट वालों ने घेर लिया. लेकिन क्षेत्रीय लोग फिर पांडे के पक्ष में आ गये. जो मारने आये थे मार खाने लगे. फिर पुलिस को आना पड़ा. होटल वालों को बचाना पड़ा. पांडे जी और सीना फुलाकर भिड़ गये. लेकिन अब की फिट इंतजाम किया गया. तभी तो आजादी की अगली भोर जब पांडे जी को थाने से कचहरी के लिए रवाना किया गया उस समय होटल वालों के थाने में मौजूद पैरोकार मंद-मंद मुस्करा रहे थे. पूरा थाना बेहद पूरी मुस्तैदी से सक्रिय था. पांडे का नाम लेकर थाना परिसर में अगर कोई घुसा तो उसकी मां...बहन सब एक.. की जा रही थी. पांडे शायद नवाबगंज पुलिस के हत्थे चढ़ा अब तक का सर्वाधिक दुर्नाम अपराधी था. पुलिस पांडे को कचहरी लेकर पहुंची तब तक एक होटल मालिक के वकील भाई ने कचहरी में सक्रिय काले कोट में छुपे लुच्चों को इक_ा कर पांडे को खूब पिटवाया. जिस पुलिस अभिरक्षा में पांडे भेजे गये उसके सिपाही किनारे खड़े उसे पिटता और लहूलुहान होता देखते रहे. पांडे को समझ आ गया होगा... वह छंगा पांडे ही ठीक है, ज्यादा मंगल पांडे न बनें. क्योंकि यह देश अभी केवल अंग्रेजों से आजाद हुआ है.. पुलिस और लुटेरों से नहीं. अभी शहर पार्षद लखन ओमर की जेल यात्रा नहीं भूला होगा. क्षेत्रीय नागरिकों के हित में भ्रष्टाचार के खिलाफ उसने आवाज उठाई तो जेल में सड़ा दिया गया. भाजपा ने अपने पार्षद को उसके हाल पर छोड़ भी दिया. ठीक ऐसा ही छंगा के साथ भी हुआ. अब छंगा पांडे जब थाने, कचहरी से होते हुए जेल में हैं तो इलाके के लोग संभ्रांत नागरिक कहते मिल रहे हैं और बनो बड़ी अम्मा.... मना किया था पंगा न ले.. लेकिन छंगा.. बिना पंगा...? अब बताइये क्या हम आजाद हैं और अगर नहीं तो क्या कभी आजाद हो सकते हैं..? नहीं.. नही... नही...1

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