मंगलवार, 31 अगस्त 2010

अजय का 'विजय' प्रकाश
लगभग पचास लाख के आस-पास के शहर में मात्र १९ हजसा ८ सौ युवकों की सदस्यता कोई मायने नहीं रखती लेकिन कांग्रेस के लिए यह सूखे में नीर भरी बदली की तरह भी है. कांग्रेस की यह सदस्यता वाकई कांग्रेसियों की ही सदस्यता है, इसमेें शक है..। कारण कि नये सदस्य बनाने में शहर के शातिर कांग्रेसियों ने आम युवाओं की कमजोर नस का भरपूर दोहन किया. बहुत से युवाओं से यह कहकर शुल्क फोटो, नाम व पता ले लिया कि उनके लिए बीपीएल कार्ड बनवाये जाएंगे, वोटर आईडी बनवाये जाएंगे, वजीफा दिया जायेगा, राहुल गांधी से मिलवाया जायेगा आदि... इत्यादि.
युवा कांग्रेस के संगठनात्मक चुनावों में कनपुरिया परिदृश्य की जो ताजा तस्वीर उभरी है वह बताती है कि अब खांटी राजनीतिक प्रबंधन पर व्यावसायिक प्रबंधन कहीं भारी है, सीधे शब्दों में कहा जाए तो पार्टी के काम के लिए अब केवल दलगत नीतियां, पद और प्रतिष्ठा ही काफी नहीं है. पैसा भी बहुत जरूरी है. शायद इसीलिए युवक कांग्रेस के संगठनात्मक चुनावों में अजय कपूर का पलड़ा भारी रहा जबकि कानपुर से लेकर दिल्ली तक भारी भरकम कद काठी वाले नेता व केन्द्रीय मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल हल्के पड़े. शहर की पांच विधान सभा समितियों में चार पर अजय कपूर गुट का बहुमत रहा और एक पर मंत्री गुट का.हालांकि अब अजय कपूर को श्री प्रकाश जायसवाल के सामने गुटाधीश के रूप में नापना तौलना बेमानी लगता है लेकिन यह कानपुर की कांग्रेस है कि यहां की लोकल पॉलिटिक्स हमेशा से प्रदेश और केन्द्र के पदनामों पर भारी रही है. आज के दौर से ठीक पहले भी ऐसी ही स्थानीय गुटबाजी शहर ने देखी है. जब शहर अध्यक्ष नरेश चन्द्र चतुर्वेदी राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद भी तिलक हॉल में ताल ठोंकते रहे. श्री प्रकाश जायसवाल जी भी केन्द्रीय मंत्री भले हों लेकिन उनकी स्थानीय राजनीति में जरा भी रुचि कम नहीं हुई है. हालांकि वह अपना पूरा समय शहर राजनीति को नहीं दे सकते लेकिन अपने सिपहसलारों के जरिए उनकी मौजूदगी हमेशा रहती है. यूथ कांग्रेस के चुनाव में भी श्री प्रकाश और अजय गुट में एक जोर आजमाइश थी कि कौन कितने प्रभावी ढंग से सदस्यता अभियान चलाता है और वार्ड समितियों से लेकर विधान सींा समितियों और महानगर के समिति तक कौन अपने कितने विश्वास पात्रों को जिता सकता है. नतीजा आ चुका है. चाहे वार्ड समितियां हों चाहे विधान सभा और चाहे नगर समितियां वर्चस्व अजय कपूर का रहा.स्थानीय सार्वजनिक शक्ति परीक्षण में पिछडऩा श्री प्रकाश जी को बहुत खला इसके लिए उन्होंने अपने जिम्मेदार सेनापतियों की क्लास भी ली जबकि अजय खेमे में जश्न है विशेष रूप सेे युवक कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर अपने मनचाहे तरूण पटेल को जिता कर. आखिर ऐसा कौन सा कारण रहा कि पूरी मजबूती होने के बाद भी मंत्री जी गच्चा खा गए.पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस की भलाई में दोनों ही तरफ से लोग मैदान में उतरे. एक तरफ पार्टी थी और दूसरी तरफ आज की ऊर्जा यानी पैसा. श्री प्रकाश जी की ओर से जो लोग काम कर रहे थे वे पार्टी के काम में लगे थे जबकि अजय कपूर की ओर से उतरे लोग कांग्रेस की नौकरी कर रहे थे. मंत्री जी के लोग अपनी दिनचर्या से समय निकाल कर पार्टी के लिए जुटे हुए थे जबकि विधायक के लोगों की दिनचर्या ही पार्टी का काम था. कुल मिलाकर अजय कपूर ने सधी हुई व्यवसायिक शैली में काम किया. सवेतन, कार्यालय चलाया. पार्टी के लोगों को समय पर बुलाकर सदस्यता अभियान के लक्ष्य एि और लक्ष्य पूरा करने के लिए हर तरह का हथकंडा अपनाया. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार लगभग २० हजार युवा और नए सदस्यों में १४ हजार के आस-पास तो अकेले अजय कपूर ने ही बनवाए. मंत्री की टीम तो पहले पायदान पर ही धड़ाम हो गई. यहां शहर में नगर अध्यक्ष महेश दीक्षित के साथ विधायक संजीव दरियावादी, इकबाल अध्यक्ष, प्रदीप मिश्रा रिजवान हामिद, अमीन खान, शैलेन्द्र दीक्षित, जुनीत त्रिपाठी और अरूण द्विवेदी ने मुख्यरूप से मंत्री की ओर मोर्चा संभाल रखा था जबकि अजय कपूर की ओर डा. नरेश मिश्रा, अंबुज शुक्ला, हरि प्रकाश अग्निहोत्री, हयात जफर हाशमी, देवेन्द्र सब्बरवाल, ललित मोहन श्रीवास्तव, प्रदीप सारस्वर, राजकुमार यादव आदि ने मोर्चा संभाल रखा था. यह तो कहो विधायक संजीव दरियावादी ने अपने प्रभाव व कार्यक्षेत्र में बेहतर भूमिका निभाकर अपना अध्यक्ष बनवा लिया वरना तो सूपड़ा ही साफ था.1

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