मंगलवार, 31 अगस्त 2010

चौथा कोना

पत्रकारिता का टॉप गेयर

हम आज भी दृढ़ हैं कि पत्रकारिता का अर्थ सिर्फ लेखन से है. इसी अर्थ में सारे 'अर्थÓ निहित हैं. लेखन हमें पाठक देता है. पाठक को ही प्रसार कहा जाता है. प्रसार कृपण नहीं होता वह हमें विज्ञापन देता है. विज्ञापन से धन मिलता है. धन से ईंधन, ईंधन से ऊर्जा और ऊर्जा से गति... यही नियम है, यही क्रम है यही 'सरकिलÓ है, इसी का परिणाम है कि आज पत्रकारिता अपने 'टाप गेयरÓ में है.लाखों-लाख की प्रसार संख्या है अखबारों के पास. करोड़ों के विज्ञापन हैं. हर सुविधा है. कोई दुविधा नहीं है. सबको पूर्ण स्वतंत्रता है. कहा जा सकता है कि अभाव और सीमित साधनों से शुरु हुई प्रताप नारायण मिश्र की पत्रकारिता नरेन्द्र मोहन तक आते-आते अपना एक चक्कर पूरा कर चुकी है. लेखन के ठोस धरातल से शुरु हुआ सिलसिला विज्ञापन के शिखर पर आ पहुंचा है. अब दूसरे चक्कर की बारी है. इस चक्कर में पत्रकारिता के पास अभाव नहीं है. दूसरे चक्कर की शुरुआत समृद्धता के शिखर से है. ऐसे में हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जब हम तीसरे चक्कर का प्रारंभ करेंगे तो लेखन के शिखर पर होंगे. लेकिन दूसरे चक्कर की शुरुआत 'पेज-3Ó से हो रही है. यह बड़ी अजीबोगरीब शुरुआत है जिसमें लेखन तो बेहद नक्काशीदार होता है लेकिन लेख महाफूहड़. बकवास. अभी पिछले दिनों मुझे सड़क पर अपना एक बेरोजगार पत्रकार भाई मिला. उसे कुछ वर्षों पूर्व अखबार से इसलिए बाहर कर दिया गया था कि उसने एक साधारण से पात्र को 'महापात्रÓ बना दिया था.यानी पैसा लेकर प्रशस्ति लिखी थी. आज 'पेज-3Ó की प्रशस्ति पत्रकारिता में तो सबकुछ छपता ही पैसे से है. यह पैसा पत्रकार नहीं लेता, खुद अखबार लेता है अखबार. पत्रकार को तो शब्द नक्काशी करने के लिए वेतन पर रख लिया जाता है. देखिए, पहले चक्कर की पत्रकारिता में चापलूसी के कारण नौकरी चली गई. दूसरे चक्कर में नौकरी ही चापलूसी के लिए मिलती है. यह है पत्रकारिता की समृद्धशाली शुरुआत. अगर यही समृद्धता है तो मेरे निकाले गए भाई से अखबार मालिक घर जाकर मांफी मांगें. कहें, गुरुदेव हम लोग मूर्ख थे. नहीं समझ रहे थे कि आप त्रिकाल दृष्टा हैं. आप भविष्य की पत्रकारिता कर रहे थे. हम नहीं समझ पाए. आपके पुनीत आचरण का अनुसरण करने के बजाए हमने आपको भ्रष्टï कहकर संस्थान से निकाला. हम अपनी भूल स्वीकारते हैं. आप महान हैं. चलिए संस्थान के सर्वोच्च आमन पर विराजिए और दूसरे चक्कर की पत्रकारिता में तीसरे चक्कर की पत्रकारिता के संदेश दीजिए. चलिए गुरुदेव 'पेज-3Ó आपका इंतजार कर रहा है. हमें क्षमा करें.... यह सब मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मैं खुद चक्कर में हूं कि आखिर यह चक्कर क्या है.आपने ऐसा कोई कारीगर देखा है जिसके लिए शहर-टाप मिठाई बनाने का शोर हो लेकिन कोई हलवाई है उसे कड़ाही न छूने देता हो.जवाब हाँ, में हो सकता है... अगर कारीगर के कोढ़ हो तो....वरना कभी होता है ऐसा... पत्रकारिता में होता है... एक नहीं शहर से लेकर प्रदेश, प्रदेश से लेकर देश तक दर्जनों पत्रकार हैं जिनके लेखन, समर्पण, ईमानदारी का सब लोहा मानते हैं लेकिन उनके कागज छूने पर मनाही है. ऊपर से असंगति यह कि कलम के पास कागज नहीं है. जिसके पास कागज है वह कलम खरीद लेते हैं. फिर कलम लिखने बैठती है अकेली औरत की नयी राह और लिख बैठती है अकेले सेक्स की नयी राह...ÓÓ

प्रमोद तिवारी

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