मंगलवार, 31 अगस्त 2010

नारद डाट काम

डायन बनी महंगाई

इस महंगाई से पूरा देश परेशान है सिवाए शरद पवार के . वैसे भी नेताओं पर डायन, स्वाइन फ्लू, और एड्स का असर नहीं होता है. यह उनको कुदरती देन है इसके लिए कोई क्या कर सकता है. महंगाई के चक्कर में संसद तक नहीं चलने दी, तमाम सड़कें बन्द कर दी लेकिन नतीजा कुछ नहीं. मुझे एक बात समझ नहीं आती है कि नेताओं पर इस डायन का असर न के बराबर है फिर भी यह लोग हाय तौबा मचाये हुए हैं और जिस जनता को यह डायन कच्चा चबाये जा रही है. वो चुपचाप बैठी हुयी है. इस डायन से बचने के लिए मेरे पास कुछ हकीमी नुस्खे हैं लेकिन ऐलोपैथी से कहीं ज्यादा कारगर. पहला तरीका अपनी पड़ोसी जिले में तैनात एक पी सी एस अफसर के पास है. यह हजरत पिछले तीन साल से पगार नहीं उठा रहे हैं लेकिन सेहत पर भुखमरी के कोई निशान नहीं हैं और तो और बाल बच्चे भी पूरी मौज में हैं. यह वाकई शोध का मामला है कि कैसे एक हुक्मरान बिना तनख्वाह के परिवार पाल रहा है. इस विषय पर विस्तृत अन्वेषण के दरकार हैं. ऐसे ही दक्षिण भारत में एक बाबा जी हैं पिछले २५ वर्षों में अन्य तो दूर की बात है उन्होंने एक बूंद पानी भी नहीं पिया और बंटा जैसी आंखे चमकाते रहते हैं. देश विदेश के डॉक्टर और वैज्ञानिक इनके मर्म को नहीं समझ पा रहे कि आखिर बिना खाये पिये वो पूरे २५ साल से यह गाड़ी कैसे घसीट रहे हैं. केन्द्र और राज्य सरकार को चाहिए की उक्त दोनों महाप्राणियों की जीवन गाथा पर ठीक से सर्च लाइट मारें और अपने देश के पेटू लोगों को समझायें कि ऐसे भी जीवन जिया जाता है. महंगाई को डायन या पूतना कहने वाले लोग दरअसल जीते ही खाने के लिए हैं. शरद पवार की टंकी से अपनी तुलना करते हैं, अरे वह तो शुरू से फूली है और मरते दम तक फूली ही रहेगी. आम भारतीय की पहचान तो पेट के पीठ में चिपक जाने से होती है. इतिहास गवाह है कि ज्यादा खाने वाले लोगों की हमेशा तफरी ली जाती रही है. अपने महाभारत वाले भीम खाने के फेर में ही भाइयों के बीच हंसी का पात्र बनते रहे हंै. तो ये इण्डियन्स, अफसर और बाबा में से एक की लाइफ स्टाइल चुनो और कम खाओ, गम खाओ, और कभी -कभी न खाओ का फार्मूला अपनाने में ही भलाई है. सरकार को डायन की अम्मा समझा तो यह कच्चा ही चबा जायेगी.

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