मंगलवार, 27 जुलाई 2010

चिंगारी छुआ छूत की
कानपुर देहात यानी रमाबाई नगर और उसके आस-पास एक खतरनाक चिंगारी सुलग रही है. यह चिंगारी अगर भड़की तो देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरा देश भी जल सकता है जिसकी राख आजादी के ६३ वर्ष बाद हर भारतीय के माथे पर कलंक का टीका होगी.
कानपुर देहात रमाबाई नगर होते ही एक खतरनाक चिंगारी का गर्भ ग्रह बनता जा रहा है. यह चिंगारी है जातीय विद्वेष और छुआ-छूत की आजादी के ६३ वर्ष बाद यह कल्पना करना विश्व की सभी पीढ़ी को तैयार करते समय उनके मां-बाप आदमी से आदमी के स्वार्थ को पाक-नपाक बताएंगे. जरा मुश्किल है लेकिन यहां कानपुर देहात और पड़ोस के जिलों में विशेष रूप से कन्नौज में यह ग्रह मुश्किल नहीं है. इन इलाकों के करीब दर्जन भर मध्याह््न भोजन बनाने वाले विद्यालयों में सवर्ण परिवारों के बच्चों ने अपने अभिभावकों के कहने पर भोजन लेने से इंकार कर दिया. क्योंकि भोजन दलित रसोइये ने बनाया है. इस तरह की घटनाएं एक कड़ी बनाती नजर आ रही हैं. जबकि १५ अगस्त १९९५ को भारत सरकार ने यह मिड-डे मील कार्यक्रम की शुरूआत की थी, सब साथ-साथ मिलकर खायेंगे सब साथ मिलकर पढ़ेंगे. भेद भाव खत्म होगा सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ेगी. बच्चे पेट से मजबूत रहेेंगे तो पढऩे में ध्यान लगेगा. लेकिन उसे यह नहीं पता कि कल साथ-साथ खाते-पीते अचानक बच्चों के बहाने बड़े-बूढ़े छुआ छूत का घिनौना खेल खेलने लगेंगे. यह चिंगारी भड़क भी उस दौर में रही है जब सूबे का नेतृत्व एक दलित महिला के हाथों है. रमाबाई नगर में सबसे पहले इस चिंगारी ने जन्म लिया अकबरपुर ब्लॉक के ग्राम भवानीदीन में सबसे पहले सवर्ण छात्रों ने दलित के हाथों मिड-डे मिल खाने से इन्कार कर दिया. इसी ब्लाक के नहरपुर प्राइमरी स्कूल में भी दलित महिला ने खाना पकाया था जिसे बच्चों ने यह कहकर खाने से इन्कार कर दिया कि भोजन संक्रामक है. इसी तरह संबलपुल ब्लाक के झींझक गांव में जस्सापुर प्राइमरी स्कूल है यहां ८५ छात्र हैं यहां के बच्चों ने मिड-डे मील बायकाट कर रखा था. कारण वही कि खाना बनाने वाले दलित वर्ग के थे. इसी तरह डेरापुर ब्लाक क े कपासी में प्राइमरी स्कूल है यहां भी ब्राहम्णों और ठाकुरों के बच्चों ने दलित रसोंइये नीलू कठेरिया के हाथों बने खाने का बहिष्कार कर दिया. झींझक ब्लाक का एक गांव है सम्बलपुर इस विद्यालय में ५२ छात्र हैं यहां खाना बनाने का काम मीनू बाल्मीकि करती हैं. इस विद्यालय में केवल दलित छात्र ही लंच ग्रहण कर रहे हैं. बाकी लोग हाथ जोड़कर खाना खाने से इंकार कर रहे हैं. विद्यालय के हेड मास्टर भागवत सिंह कहते हैं कि अचानक सवर्णों के बदले मिजाज को समझना मुश्किल है हालंाकि वो ग्रामीणों से मिले भी और उन्होंने समझाने का प्रयास भी किया लेकिन रमाबाई नगर में इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं. अकबरपुर थाना क्षेत्र में एक गांव आता है मैरखपुर यहां सवर्ण बच्चों के अभिभावकों ने स्कूल में घुसकर तोड़-फोड़ की और किचन में ताला डाल दिया. दलित महिला रसोइये को घण्टों बन्धक भी बनाये रखा. ऐसी ही हिंसात्मक एवं शर्मनाक घटनाऐं कन्नौज जिले में भी लगातार हो रही हैं, जहां सवर्ण ग्रामीण लगातार दलित महिला के हाथों बने भोजन को अपने बच्चों के लिए अछूत बता रहे हैं एक घटना है बहादुरपुर ग्राम सभा की, यहां ४७ बच्चों के लिए एक दलित रसोइये ने खाना बनाया जिसमें ३५-४० बच्चोंं ने खाना खाने से इन्कार कर दिया. यहां सिर्फ इतना ही नहीं हुआ मिड-डे मील बनाने के लिए दलित महिला की नियुक्ति के विरोध में स्कूल हेड मास्टर व अध्यापकों एवं अन्य स्टाफ को भीं बंधन बना लिया गया. इस बारे में बेसिक शिक्षा अधिकारी (रमाबाई नगर) संजय शुक्ला का कहना है कि घटना के लिए जिम्मेदार तत्वों की पहचान कर ली गई है और माहौल बिगाडऩे वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जायेगी. डेरापुर ब्लाक के गांव बिसोहा, लोनारी, अकबरपुर ब्लाक के गांव कुची, डेरापुर ब्लाक के गांव शहजादपुर आदि के प्राइमरी विद्यालयों में मिड-डे मील बहिष्कार की घटना संज्ञान में आयी. जिले के जिम्मेदार अधिकारी लगातार जाति विद्वेष के केन्द्र बन रहे प्राइमरी विद्यालयों का दौरा कर रहे हैं और स्थितियों पर नजर बनाये हुए हैं. दलित रसोइयों के खिलाफ बढ़ते असंतोष और आक्रोश को देखते हुए कई गांवों के प्राइमरी पाठशालाओं में सवर्ण जाति के खानसामा नियुक्त करने के निर्देश दिये गये. कई जगहों पर उन दलित लोगों क ो दूसरे कामो में लगा दिया गया जहां सवर्णो के बच्चों ने खाना खाने से इन्कार कर दिया. इसी तरह कई और प्रशासनिक कदम हैं जो यह दर्शाते है कि सवर्णों की ओर से चलायी जा रही मिड-डे मील बहिष्कार की मुहिम के आगे प्रशासन सख्ती दिखाने से कतरा रहा है.1 विशेष संवाददाता

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