बुधवार, 13 जुलाई 2011

'तीसरा' प्यार का अभिशाप


प्यार की सबसे बड़ी मुसीबत है अधिकार. प्यार हुआ नहीं कि अधिकार ने हाथ बढ़ा दिया. एक लड़के को लड़की से प्यार हो जाता है. लड़की भी लड़के के प्यार में डूब जाती है. दोनों को जैसे ही अपने-अपने प्यार की आश्वस्ति होती है लड़का चाहता है कि अब लड़की सिर्फ उसे ही प्यार करे और लड़की भी कुछ अलग नहीं चाहती. वह भी यही चाहती है कि उसका प्रेमी अब किसी को नज़र उठाकर भी न देखे. दोनों जब तक ऐसा करते हैं उन्हें प्यार से कोई शिकायत नहीं रहती है. लेकिन जैसे ही प्यार में किसी तीसरे का प्रवेश होता है प्यार टूट जाता है. यह तीसरा क्या है? यह तीसरा ही है जो दोनों को यह एहसास कराता है कि तुम सिर्फ एक-दूसरे के लिये नहीं हो. कोई और भी है, तुम्हारे लिये. ये जो तीसरा है यही तो प्रवाह है प्यार का. फिर चौथा है... पांचवा है... छठा है... और यह सिलसिला अनंत है. इसमें अनंतो-अनंत प्रेम कथाओं का अनंत प्रवाह है.... ऐसे में प्यार सिर्फ दो शरीरों में बंधकर कैसे रह सकता है. इसलिये प्यार को जब भी सोचो शरीर को हटाकर सोचो. तुम्हें अनंतो-अनंत प्रेम कथाओं की अथाह प्रेमाभूति होगी. लेकिन मुसीबत यह है कि हमें बिना शरीर के प्रेम करना ही नहीं आता. इसीलिये 'तीसरा' प्यार का अभिशाप है.
प्रमोद तिवारी

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