सोमवार, 11 जुलाई 2011

विकास के डंके में विध्वंस का डंक

कानपुर सिटी किसी भी तरह से शहर का विकास नहीं है इसे अगर कुछ कहा जा सकता है तो महज सुन्दरीकरण। डेवलेपमेन्ट और डेकोरेशन दो अलग-अलग चीजें हैं। डेवलेपमेन्ट आवश्यक आवश्यकता है और डेकोरेशन महज आवश्यकता है। सजावट चाहो तो करो और चाहो तो न करो। एक जीवन है और दूसरा शैली। शैली के  लिये जीवन तबाह नहीं किया जा सकता लेकिन न्यू कानपुर सिटी योजना में यही होने जा रहा है। जीवन तबाह होंगे और इसके बदले शहर की लाइफ स्टाइल बदली जायेगी। सीधे और साफ शब्दों में कहा जाये तो शहर बसने नहीं उजडऩे जा रहा है। मगर शहर की त्रासद स्थिति यह है कि इस योजना में निर्माण के उल्लास का डंका है। ज्यादातर लोग समझ नहीं पा रहे हैं  कि इस उल्लासी डंके में किस कदर ध्वंस का शोर निहित है। जहां न्यू कानपुर सिटी बसाया जाना है वहां से पहले से ही कानपुर शहर बसा हुआ है। होना यह चाहिये कि यह योजना बसे-बसाये इलाकों को विस्तार दे। जबकि जो होने जा रहा है उसकी नीव ही बसी-बसाई बस्तियों को उजाड़कर रखी जा रही है। प्रशासन ने मुनादी कर दी है कि एक पखवारे के भीतर धारा-6 के साथ-साथ धारा-17 के तहत्ï मैनावती मार्ग के ओर से लेकर छोर तक, आजाद नगर से बिठूर के बीच जीटीरोड और गंगा बैराज के दोआबे के बीच की जमीनें खाली कर दी जायें। केडीए ने इसे अधिग्रहित कर लिया है। इस इलाके में दर्जनभर गांव, दो दर्जन के आसपास वार्ड, दर्जन भर के आसपास फार्म हाउस, दसियों छोटे-बड़े स्कूल, बड़े-बड़े संतों के आश्रम और लगभग 50 हजार लोग, साथ ही 500 हेक्टेयर उपजाऊ खेत-खलिहान व बाग-बगीचे हैं। अब इस बसे-बसाये पुराने शहर को उजाड़ कर नया शहर बसाया जायेगा। कितना बेहूदा होगा यह नया शहर। जिनकी बाप-दादाओं की जमीनें हैं.  वह बर्रा बाइपास के  पार रहेंगे और जिनके पास स्वर्ग की तरइयां हैं वह गंगा तट का आनंद लेंगे. एक को खदेडऩे और दूसरे को घुसेडऩे का काम केडीए करेगी कानून के और डण्डे के दम पर। जिन्हें उजाड़ा जा रहा है केडीए उनके 200 गज का 30 हजार रुपया देगा और जिन्हें बसाया जायेगा, उनसे इतनी ही जमीन का 6 लाख से भी ज्यादा वसूलेगा। केडीए जो काम करेगा। ऐसा नहीं लगता कि भूमाफियाओं के लिये कुख्यात शहर के नामचीन बाहुबली भी केडीए के  आगे बौने हैं। आज कल के भूमाफिया और बिल्डर क्या करते हैं। कमजोरों पर जोर चलाकर औने-पौने में जमीन खरीदते हैं और फिर उसे आसमानी कीमत पर बचते हैं । कृष्ण करे तो लीला और कल्लू करे तो पाप। यही काम कोई गुण्डा करे तो उसकी सूची बनवाई जायेगी, अभी बनाई गई थी पिछले दिनों। यही काम सरकार के इशारे पर सरकार की सहमति पर केडीए करे तो विकास है। कहा जा रहा हे जनहित, नगरहित और  राष्ट्रहित जमीनों, बस्तियों, शहरों का अधिग्रहण किया जाता है। न्यू कानपुर सिटी इसी आवश्यक आवश्यकता का एक नया अध्याय है। धारा-6, धारा-16, धारा-17, धारा-.... सब बहाई जा रहीं हैं गंगा किनारे। इन धाराओं के बूते जमीनें खाली कराई जायेंगी क्योंकि यह धारायें राष्ट-हित के लिये ही बहती  हैं। अब हमें कोई यह समझाये कि एक घर उजाड़कर दूसरा घर बसाना किस तरह से राष्ट्रहित में हो सकता है। बसे को उजाड़कर अगर उसे वहीं शानदार तरीके से बसा दिया जाये तब भी इस योजना का कोई अर्थ निकलता है। अब मंगलकारी दिन आये हैं तो इन्हें फिर जंगल भेजने की तैयारी है। शहर की जमीनों पर सरकार की ही नीयत खराब है। योजनाओं व विकास के नाम पर कोई शातिर दिमाग इन्हें लगातार हजम कर रहा है और इस षडय़ंत्र में नेता शामिल हैं। वरना क्या कारण है कि 50 हजार के आसपास की जनता बलवाई हुई है और उनके नेतृत्व के लिये शहर में एक भी जनप्रतिनिधि तैयार नहीं है। अभी पिछले दिनों जो अतिक्रमण अभियान चला था और उसमें जो जमीने खाली कराई गईं
थी उनके बाबत विकास प्राधिकरण से पूछिये कि वह जमीनें कहां गईं तो पता चलेगा कि नीलाम कर दी गईं। खरीदी किसने तो पता चलेगा कि नेताजी या नेताजी के भतीजे जी या नेता जी के पिछलग्गू सेठ ने। केडीए के उपाध्यक्ष भले ही अपनी पीठ खुद अकेले में थपथपाते रहें लेकिन 30 हजार आदमियों को उजाड़ कर 300 लोगों के लिये 3 आदमियों को जमीनें बेंचना किसी भी तरह का विकास नहीं है। इससे तो यही लगता है कि केडीए कुछ लोगों के लिये एजेन्ट के  रूप में काम कर रहा है। कानपुर का तो भगवान ही मालिक है। हम सभासद चुनते हैं, वह ठेकेदार हो जाता है। हम विधायक चुनते हैं  तो वह बिल्डर हो जाता है। हम सांसद चुनते हैं, तो वह भूमाफिया हो जाता है। कम लोग जानते हैं  कि जिला प्रशासन ने शासन के पास भूमाफियाओं की जो पहली टापटेन सूची भेजी थी उसे उजागर करने की हिम्मत किसी की नहीं पड़ी। वरना जो मैं कह रहा हूं उसकी असलियत देखकर आंखें फटी की फटी रह जाती हैं। उसी सूची में सभासद, विधायक, सांसद, मंत्री, अफसर, गुण्डा, अखबार मालिक सब थे। भूमाफियाओं की सूची पर जो चिकचिक पिछले दो महीने चली उसकी मूल वजह यही थी। न्यू कानपुर सिटी योजना के अन्तर्गत क्षेत्रीय विधायक प्रेमलता कटियार, क्षेत्रीय पूर्व सांसद श्याम बिहारी मिश्र, मीडिया सम्राट दैनिक जागरण एजुकेशन डीलर्स डीपीएस, गौरव इण्टरनेशनल, जैन पब्लिक स्कूल आदि व धर्माधिकारी  आशाराम बापू, सुधांशु महाराज, मोरारी बापू तक की जमीनें हैं। लेकिन सुरसुरी कहीं नहीं है। इस चुप्पी में सिर्फ दो बातें हो सकती हैं या तो यह लोग आश्वस्त हैं कि इनका कुछ नहीं होगा या फिर इन्हें पता है कि इसमें कुछ हो नहीं सकता सिवाय ध्वंस के। इस योजना की नीयत पर शक तो इसलिये भी होता है कि साधारण बस्ती के लोग बलबलाए घूम रहे हैं और उधर आश्रमों, स्कूलों व फार्म हाउसों में निर्माण कार्य चल रहे हैं। इस योजना पर केडीए की नजर में अगर सब धान बाइस पसेरी हैं तो अधिग्रहण की कार्यवाही पहले बड़े वालों पर करें। गिरायें डीपीएस, फिर उसके बाद देखें मकड़ी खेड़ा की ओर लेकिन ऐसा होगा नहीं। केडीए झोपडिय़ां उजाड़ देगी फिर उसके बाद महलों व केडीए का अनन्त कालीन मुकदमा छिड़ जायेगा। इस योजना में अधिग्रहीत जमीन पर तीन लाख रुपये प्रति बीघे का मुआवजा तय किया गया है। इन जमीनों का मुआवजा नहीं कीमत दी जानी चाहिये क्योंकि यह कोई विकास-इकास नहीं है यह केडीए का विशुद्घ व्यापार है। जो सत्ता के कुछ लोगों के लिये खेला जा रहा है। जिस योजना में न रोटी हो, न कपड़ा हो, न मकान हो, न सुरक्षा हो, न स्वास्थ्य हो, न रोजगार हो तो उसके लिये जमीन पर मुआवजा क्यों? कीमत क्यों नहीं? मुआवजा हमेशा कीमत से कम होता है और इसलिये प्रयोग में लाया जाता है कि इससे बड़ा मानव हित जुड़ा होता है लेकिन यहां तो केडीए तीन लाख रुपये बीघे जमीन लेने के बाद उसे 30 लाख रुपये बीघे में बेचेंगी। ऐसी स्थिति में अधिग्रहीत जमीन के लिये कम से कम उनके निर्धारित सर्किल रेट पर जमीनों की कीमत दी जानी चाहिये। न्यू कानपुर सिटी की योजना है क्या इसके बारे में केडीए ने अभी तक कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया है। अनुमान है कि एक बेहद सुन्दर बस्ती जिसमें वह सबकुछ होगा जो एक साथ एक जगह शहर में किसी दूसरे स्थान पर नहीं है।  सुन्दर बहुखण्डी इमारतें होंगी, सुन्दर-सुन्दर बड़े-बड़े पार्क होंगे। मनोरंजन के लिये सिनेमाघर, बाजार, अस्पताल, स्कूल, प्रेक्षागृह सब कुछ होगा। कितना अच्छा होगा जब यह सबकुछ होगा। कायदे की बात तो यह है कि न्यू कानपुर सिटी बसे, इसके लिये जमीनों का अधिग्रहण भी हो। चूंकि यहां बस्ती के बदले बस्ती ही बसनी है इसलिये बसे-बसाये घरों से छेड़छाड़ कतई न हो और यह किसी सूरत में उचित नहीं है। सरकार बजरिये केडीए कानून की बात कहती है जबकि उसके खजाने में करोड़ों-करोड़ रुपये इन्हीं घरों  की रजिस्ट्रियों का हजमा-हजम है। जैसा समझ में आ रहा है अगर वैसा हो गया तो क्या यह सरकारी धोखाधड़ी नहीं है। सरकार जब जानती थी कि उसके पास नये शहर की योजना है तो उसने महानगरीय सुविधाओं सहित जमीनों की खरीद-फरोख्त व निर्माण की सशुल्क अनुमति जैसी सरकारी मुहर क्यों ठोंकी और अगर यह फौरी योजना है तो जरा इस पर ठहर कर विचार हो जाना चाहिये। ऐसी भी क्या जल्दी है? फिर जब नया ही शहर बसाना है तो मैनावती मार्ग से लेकर बिठूर के बीच ही इतना तूफान क्यों और अगर यही जमीन बहुत प्यारी हो गई है तो बेचारे इन बसे-बसाये लोगों को क्यों उजाड़ रहे हो? पूरे शहर में कल्यानपुर से आगे चौबेपुर तक सड़क के दोनों ओर खाली जमीनें पड़ी हैं वहां बसा देते यह नया शहर न्यू कानपुर सिटी।
- प्रमोद तिवारी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें