सोमवार, 11 जुलाई 2011

'डकैत' का घर चोरी

है न मजेदार , राजदार , खुलासे वाली चटपटी खबर! तो सुनिए और पढि़ए.
         अपने शहर में एक आला शिक्षाधिकारी हैं. काफी समय से तैनात हैं. एक लम्बे समय तक  देश के बड़े हिंदी समाचार-पत्रों में से एक और स्व-घोषित एकमात्र बड़े होने का दावा करने वाले दैनिक समाचार पत्र के शिक्षा संवाददाता से उनकी ठनी रही . शिक्षा संवाददाता की क्या मजाल की वो बिना अपने मालिकानों की इच्छा के ठान लेते. अब आप सभी समझ ही गए होंगे की मालिकान के कामों को पूरा कराना ही उनका वास्तविक इरादा था. इस इरादे को पूरा करने में ये 'बिचारे'  अधिकारी महोदय  को 'डकैत' तक साबित कर बैठे. इसके बाद इन्हें, इनके बे-असरदार सरदार साथी और मालिकानों के एक शिक्षण संस्थान के प्रधानाचार्य को कथित सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होने के कारण कम योग्यता के बावजूद राष्ट्रपति पुरस्कार बाँट दिए गए.  उक्त अधिकारी से उस समय जब  इस बारे में पूछा गया था तो उन्होंने इन अयोग्यों को इस पुरस्कार मिलने से रोक पाने में अपनी अक्षमता जाहिर की. जबकि इन अधिकारी महोदय की सक्षमता इतने से ही जग-जाहिर है की तमाम छपासों के बावजूद ये बड़ा अखबार और उनका इतना बड़ा पत्रकार इनका बात बांका नहीं कर पाया था.
    अब आता हूँ , अपनी खबर पर. इन्हीं डकैत अधिकारी महोदय ने शहर के स्कूल कालेजों को अपनी ताकत और मीडिया से बने नए गठजोड़ के साथ आराम से निर्बाध लूटा. बड़े अखबार के काम पूरे हो जाने के बाद अब किसी प्रकार का डर भी नहीं था.  होना भी नहीं चाहिए. पूर्वांचल के एक बाहुबली सत्ताधारी के संरक्षण के बाद तो और नहीं होना चाहिए. पर इनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिसे उगलते-निगलते नहीं बन रहा है. हुआ दरअसल ये - इन्होने एक मकान बनवाया. आप कहेंगे , सभी बनवाते हैं, इसमें नया क्या है ?  मकान भव्य था, होना भी चाहिए, आला अधिकारी है. माहवारी और सत्रवारी  भी उनकी भव्य है. रही बात 'था' की तो अब उनका नहीं रहा. उन्होंने आय से अधिक संपत्ति का मामला न बने तो अपने मुंहलगे अधीनस्थ अध्यापक के सेवानिवृत्त प्रिंसिपल पिता के नाम से मकान बनवाया था. सोचा था , बनने के बाद कोई दिक्कत नहीं आएगी.और इस प्रकार काली कमाई को सफ़ेद किया जा सकेगा.
     पर हुआ ठीक विपरीत, अब वो मास्टरजी अपने परिवार के साथ उस मकान में रहने लगे हैं. साहब, परेशानहाल हैं. रसूख और धमक का प्रयोग कर अगर मकान खाली करवाते हैं तो    इस बार जरूर 'डकैत' कहलायेंगे. बाकी अखबार वालों ने भी इनसे धरा रखी है. मौके की तलाश में हैं. उन्होंने मास्टरजी को डराया, धमकाया पर अभी तक बात नहीं बनी है. 'बन्दा' मकान के अन्दर है और 'हनुमान चालीसा' जोर-जोर से पढ़ रहा है. कहता है की सरकार वैसे भी पंडितों की है. पूर्व मंत्री जी के घर का एक बार चक्कर जरूर लगा लेता है.1
हेलो संवाददाता

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