शनिवार, 28 मई 2011

स्त्री सत्ता का पतन पुरुष सत्ता का बोलबाला

 
मनुष्य को अपने नाते-रिश्तेदारों की विरासत प्राणी-सृष्टि ने दी परन्तु विवाह संस्था ने उसे एक नया अर्थ दिया. जब तक मनुष्य मनुष्य में लैंगिक सम्बन्ध, उसके रक्त सम्बन्धों के व्यक्तिओं में भी बिना बाधा के चल रहे थे और उन्हें नैतिक समझा जाता रहा तब तक व्यक्तिगत पसन्दी ना पसन्दी का बहुत महत्व नहीं था परन्तु आगे चलकर व्यक्ति जैसे-जैसे अपनी पसन्द नापसन्द व्यक्त करने लगा वैसे-वैसे रक्त सम्बन्धों की लैंगिक व्यवस्था नष्ट होने लगी. यहीं से शुरु हुआ मातृसत्ता का पतन. महाभारत एवं ओरेस्तियन ट्रिलोजी एस्किलस में मानवी विकास क्रम का अदभुत चित्रण किया गया है.
एक पति-पत्नी वाली विवाह संस्था के अस्तित्व के पूर्व जो संस्थायें प्रचलित थी उनमें संतति की पहचान केवल मां की ओर से होती थी और मातृसत्ता का अस्तित्व था समय के साथ जब स्त्री पुरुष सम्बन्ध केवल पुरुष की पसन्दगी से निर्धारित होने लगे तो संतति का पिता निश्चित हुआ.
इसी कारण पितृसत्ता का जन्म हुआ. पुरुष अनेक स्त्रियों पर अधिकार जतलाने लगा उनकी वासनाओं का शिकार होने लगी. उन्होंने इससे बाहर निकलने के लिये कुछ की वासनाओं का बलि बनना मजबूरी में स्वीकार किया और एक पति-पत्नी विवाह शुरु हुआ परन्तु फिर भी स्त्री पर अन्य पुरुषों ने अधिकार जतलाना नहीं छोड़ा. यह अधिकार धीरे-धीरे एक दिन तक मर्यादित रहा और उन्हें पर पुरुष के आत्मसमर्पण की दुष्ट पद्धति में फंसा दिया. यह उनका आत्म स्वतंत्रता के लिये समझौता था. उसे कभी अतिथि कभी पति के मित्र के साथ लेटना पड़ता था. सुकरात (रोम का दार्श्रनिक) को पत्नी को उसके मित्र के साथ केटो की पत्नी को उसके मित्र के साथ लेटना पड़ा. महाभारत में कहा है कि संकट के समय अपनी पत्नी को निर्मल अंत:करण से मित्र को अर्पण करें. मातृसत्ता के काल में स्त्री परिवार की प्रमुख के साथ सामाजिक और धार्मिक जीवन के कानून बनाने वाली शक्ति भी थी उस काल इन नियमों के नाम मातृदेवताओं पर आधारित थे. ईश्वर के राजा आकाश और उसकी पत्नी पृथ्वी के पुत्र क्रानव से मनुष्य सृष्टि आरम्भ हुई. ऐसा ग्रीक और रोमन कहते हैं. इस युग में अराजकता और अव्यवस्था थी कानून और नियमों को बनाने के लिये पितृदेव प्रोमीथियस मनुष्य की ओर से आया विरोध ये प्रकृति देवताओं का प्रमुख धौस खड़ा हो गया. इसमें प्रकृति देवताओं की पराजय हुई समझौता हुआ जलपरी थीटिस का विवाह पिलियस नामक मनुष्य के ऊपर मनुष्य रूपधारी पुरुष देवता की विजय हुई. मातृसत्ता में मातृहत्या एक पाप माना जाता था. एक बेटे की मां ने अपने पति की हत्या की थी (प्रेमी के कारण) बेटे ने मां की हत्या कर दी परन्तु उसे मां की हत्या की अतएव उसे पापी माना गया क्योंकि मां का पति के साथ रक्त सम्बन्ध नहीं था. पितृसत्ता में मां एक सामान्य हो गयी है. यह सब ग्रीक और रोमन महाकाव्यों में लिखा है.1
नुष्य को अपने नाते-रिश्तेदारों की विरासत प्राणी-सृष्टि ने दी परन्तु विवाह संस्था ने उसे एक नया अर्थ दिया. जब तक मनुष्य मनुष्य में लैंगिक सम्बन्ध, उसके रक्त सम्बन्धों के व्यक्तिओं में भी बिना बाधा के चल रहे थे और उन्हें नैतिक समझा जाता रहा तब तक व्यक्तिगत पसन्दी ना पसन्दी का बहुत महत्व नहीं था परन्तु आगे चलकर व्यक्ति जैसे-जैसे अपनी पसन्द नापसन्द व्यक्त करने लगा वैसे-वैसे रक्त सम्बन्धों की लैंगिक व्यवस्था नष्ट होने लगी. यहीं से शुरु हुआ मातृसत्ता का पतन. महाभारत एवं ओरेस्तियन ट्रिलोजी एस्किलस में मानवी विकास क्रम का अदभुत चित्रण किया गया है.
एक पति-पत्नी वाली विवाह संस्था के अस्तित्व के पूर्व जो संस्थायें प्रचलित थी उनमें संतति की पहचान केवल मां की ओर से होती थी और मातृसत्ता का अस्तित्व था समय के साथ जब स्त्री पुरुष सम्बन्ध केवल पुरुष की पसन्दगी से निर्धारित होने लगे तो संतति का पिता निश्चित हुआ.
इसी कारण पितृसत्ता का जन्म हुआ. पुरुष अनेक स्त्रियों पर अधिकार जतलाने लगा उनकी वासनाओं का शिकार होने लगी. उन्होंने इससे बाहर निकलने के लिये कुछ की वासनाओं का बलि बनना मजबूरी में स्वीकार किया और एक पति-पत्नी विवाह शुरु हुआ परन्तु फिर भी स्त्री पर अन्य पुरुषों ने अधिकार जतलाना नहीं छोड़ा. यह अधिकार धीरे-धीरे एक दिन तक मर्यादित रहा और उन्हें पर पुरुष के आत्मसमर्पण की दुष्ट पद्धति में फंसा दिया. यह उनका आत्म स्वतंत्रता के लिये समझौता था. उसे कभी अतिथि कभी पति के मित्र के साथ लेटना पड़ता था. सुकरात (रोम का दार्श्रनिक) को पत्नी को उसके मित्र के साथ केटो की पत्नी को उसके मित्र के साथ लेटना पड़ा. महाभारत में कहा है कि संकट के समय अपनी पत्नी को निर्मल अंत:करण से मित्र को अर्पण करें. मातृसत्ता के काल में स्त्री परिवार की प्रमुख के साथ सामाजिक और धार्मिक जीवन के कानून बनाने वाली शक्ति भी थी उस काल इन नियमों के नाम मातृदेवताओं पर आधारित थे. ईश्वर के राजा आकाश और उसकी पत्नी पृथ्वी के पुत्र क्रानव से मनुष्य सृष्टि आरम्भ हुई. ऐसा ग्रीक और रोमन कहते हैं. इस युग में अराजकता और अव्यवस्था थी कानून और नियमों को बनाने के लिये पितृदेव प्रोमीथियस मनुष्य की ओर से आया विरोध ये प्रकृति देवताओं का प्रमुख धौस खड़ा हो गया. इसमें प्रकृति देवताओं की पराजय हुई समझौता हुआ जलपरी थीटिस का विवाह पिलियस नामक मनुष्य के ऊपर मनुष्य रूपधारी पुरुष देवता की विजय हुई. मातृसत्ता में मातृहत्या एक पाप माना जाता था. एक बेटे की मां ने अपने पति की हत्या की थी (प्रेमी के कारण) बेटे ने मां की हत्या कर दी परन्तु उसे मां की हत्या की अतएव उसे पापी माना गया क्योंकि मां का पति के साथ रक्त सम्बन्ध नहीं था. पितृसत्ता में मां एक सामान्य हो गयी है. यह सब ग्रीक और रोमन महाकाव्यों में लिखा है.1
भ्रष्टाचार की श्रेणी ऊपर से नीचे

सीमालिया-    ११ प्रतिशत
रूस-        २१ प्रतिशत
नेपाल-        २२ प्रतिशत
पाकिस्तान-    २३ प्रतिशत
बंगला देश-    २४ प्रतिशत
अर्जनटाईना-    २९ प्रतिशत
श्रीलंका-        ३२ प्रतिशत
भारत-        ३३ प्रतिशत
चीन-         ३५ प्रतिशत
ब्राजील-        ३७ प्रतिशत
द. अफ्रीका-    ४५ प्रतिशत
यू.ए.ई.-        ६३ प्रतिशत
फ्रांस-        ६६ प्रतिशत
अमरीका-    ७१ प्रतिशत
यू.के.-        ७६ प्रतिशत
जापान-        ७८ प्रतिशत
जर्मनी-        ७९ प्रतिशत
स्विटजरलैंड-    ८७ प्रतिशत
आस्ट्रेलिया-    ८७ प्रतिशत
कनाडा-        ८९ प्रतिशत
सिंगापुर-        ९३ प्रतिशत
न्यूजीलैंड-    ९३ प्रतिशत
डेनमार्क-        ९३ प्रतिशत

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