शनिवार, 14 मई 2011

नारद डॉट कॉम

गुप्ता जी!



वैसे तो शहर में हजारों गुप्ता लोग रहते हैं। लेकिन आज जिन गुप्ता जी के चेहरे पर मैं टीनोपाल लगाना चाहता हूं उनको लोग के.डी.ए. वाले गुप्ता जी के नाम से जानते हैं। खबर आई है कि बीते पखवारे ये ६ बार केडीए आये और जैसा वहां होता है उनका काम नहीं हुआ। गुप्ता जी की उम्र जैसा अखबारों में छपा है ८० वर्ष की है सेहत देखते हुये लगता है कि सैकड़ा जरूर ठोकेंगे। इस समय की दौड़ाई के पहले भी २० वर्षों में गुप्ता जी ने लाखों परिक्रमायें यहां की जरूर की होंगी लेकिन प्लाट की रजिस्ट्री नहीं करवा पाये। यहां अगर गणित का ऐकिक नियम लगायें तो चूंकि जब पिछले २० वर्षों में विकास प्राधिकरण ने हजारों बार दौड़ाने के बाद भी गुप्ता जी का काम नहीं किया तो इन १५ दिनों में कैसे हो सकता है? यदि हो जाता तो गणित का ये शाश्वत नियम फेल हो जाता है।
यहां सवाल ये उठता है कि गलती पर कौन है केडीए या गुप्ता जी? मुझे तो लगता है कि सौ फीसदी गुप्ता जी वन-वे ट्रैफिक में घुस गये हैं। ये रिश्वत के बिना काम करवाना चाहते हैं। चाहे कुछ हो जाये पैसा नहीं देंगे। तो भाई गुप्ता जी क्या नतीजा निकला? इतनी बार तो आप अपनी ससुराल नहीं गये होंगे जितनी बार केडीए के चक्कर काटे हैं और नतीजा सिफर ही आया। आने-जाने का खर्चा भाड़ा सब जोड़ लेओ तो हजारों इसी में घुस गये होंगे और पसीना घाते में बहाया। हर तरफ से आप नुकसान में रहे। आप समझ रहे होंगे कि अखबार में खबर छपने से आपका काम हो जायेगा तो गुप्ता जी मुगालते में मत रहिए, मेरी मानिए चुपचाप माल खर्चिये और अपना काम बनाइये।
बुढ़ापे में प्लाट की रजिस्ट्री का सुख तो भोग लीजिये। जहाँ तक रुपये पैसे का सवाल है बिना इसके नाती-पोते तक लिफ्ट नहीं मारते हैं तो ऐसे में किसी विभाग विशेष को दोष देना ठीक नहीं है। रिश्वत की ये विष बेल ६० वर्षों की कठिन तपस्या के बाद इस तरह लहलहा रही है यदि आप इसे सुखाना चाहते हैं तो कम से कम ३० बरस का समय तो दीजिये ही।
मन
आपका मन सबसे अच्छा दोस्त है यदि आप इसे अपने नियंत्रण में रखते हैं। दूसरी तरफ यदि आप इसके नियंत्रण में हैं तो ये आपका सबसे बड़ा दुश्मन है।1

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