शनिवार, 14 मई 2011

कवर स्टोरी

काकादेव चला कोटा बनने...?
विशेष संवाददाता

इस बार बहस का सेंटर प्वाइंट है काकादेव की मेडिकल कोचिंगों की टूटन। कानपुर और काकादेव आकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों में अस्सी प्रतिशत छात्र इंजीनियरिंग के लिये समर्पित होते हैं। दस प्रतिशत मेडिकल के और शेष दस प्रतिशत में बैंक, सेना, एकाउंट्स, एयरहोस्टेस, इंग्लिश स्पीकिंग आदि के।

काकादेव कोटा की राह पर चल निकला है या फिर एक बार मंडी की ओछी हरकतों और घात प्रतिघात का साक्षी बनने जा रहा है।
यह बहस तेज हो गई है। इस बार बहस के पीछे इंजीनियरिंग कोचिंगों के लम्बे-चौड़े (कुछ असली-कुछ फर्जी) दावे नहीं हैं, छात्रों के हितों को किनारे कर कारपोरेट स्टाइल के कांट्रैक्ट नहीं हैं, एक सर द्वारा दूसरे सर के पैसे मार देने के किस्से नहीं है और नहीं हैं ट्रिपल एईई के आउट पेपर से काकादेव के जुड़ाव के शक की सुई पर।
इस बार बहस का सेंटर प्वाइंट है काकादेव की मेडिकल कोचिंगों की टूटन। कानपुर और काकादेव आकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों में अस्सी प्रतिशत छात्र इंजीनियरिंग के लिये समर्पित होते हैं। दस प्रतिशत मेडिकल के और शेष दस प्रतिशत में बैंक, सेना, एकाउंट्स, एयरहोस्टेस, इंग्लिश स्पीकिंग आदि के।
इसीलिये सर्वाधिक जोड़-तोड़, आपसी प्रतिद्वन्द्विता, उठापटक, रैंकरी की खरीद-फरोख्त, विज्ञापनी चमक-दमक, एडमीशन की कमीशनबाजी भी इंजीनियरिंग कोचिंगों में ज्यादा दिखती है।
तुलनात्मक रूप से देखा जाये तो मेडिकल कोचिंगों में नैतिकता, प्रतिस्पर्धा, छात्रों के प्रति डिवोशन, सफलता के दावे, फीस, सब कुछ लिमिट में दिखता है। ऐसा नहीं है कि इंजीनियरिंग की कोचिंगों में सब व्यापारी या बेईमान भाव से जुटे हैं और ऐसा भी नहीं कि मेडिकल में सब कुछ अच्छा-अच्छा है। इंजीनियरिंग में जहां कुछ रंगे सियारों ने बदनामी का ज्यादा ढोल पीट दिया है वहीं मेडिकल में इक्का-दुक्का होने वाली इस तरह कीघटियापन की हरकतें काफी हद तक तो दबी ही रह जाती हैं।
काकादेव में मेडिकल कोचिंग में सर्वाधिक प्रतिष्ठित नाम न्यू लाइट है। दो दशक से ज्यादा पुरानी न्यू लाइट कोचिंग के पास जहां उपलब्धियों का पहाड़ है वहीं फर्जी दावों का टोंटा। कोचिंग डायरेक्टर एस.पी. सिंह के आलोचकों की कमी नहीं है। लेकिन उनके विरोधी भी स्वीकार करते हैं कि वे रैंकरों की खरीद-फरोख्त में विश्वास नहीं करते हैं।
२०१० में ही न्यू लाइट का दावा है कि सीपीएमटी में उसके ३५३, बीएचयू में १९, सीबीएसई १७४... आदि छात्र सेलेक्ट हुये थे। इनमें से तीन भानु मौर्या, समग्र अग्रवाल व उदय पी यादव रैंकर थे।
यूं तो काकादेव में मेडिकल की आधा दर्जन और कोचिंग भी हैं। सबकी अपनी विशेषतायें और उपलब्धियां भी।
पैक्टजेम, न्यू स्पीड, सरदेसाई।  इनमें से प्रमुख हैं। अब एक नया नाम इनमें जुड़ा है ब्रेवगार्ड।
यह बाहर से आये बहादुरों का दल नहीं है। ब्रेवगार्ड के आठ महारथी कल तक न्यू लाइट से जुड़े थे। न्यू लाइट की इस टूटन पर काकादेव में चर्चाओं का बाजार भी गर्म है और उम्मीदों का सेन्सेक्स भी। आलोचक, समीक्षक और जानकार इसे न्यू लाइट के लिये बड़ा झटका मान रहे हैं। न्यू लाइट से एक साथ इतने लोगों का निकलना और पास में ही योजनाबद्ध ढंग से कोचिंग में क्लास शुरू कर देने को जहां लोग शेर की मांद में घुसकर चुनौती देना मान रहे हैं, वहीं ब्रेवगार्ड और न्यू लाइट के दोनों पक्ष एक दूसरे की हर गतिविधि पर बारीकी से निगाह रखते हुये सधी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
काकादेव के पुराने अखाड़चियों पर विश्वास करें तो न्यू लाइट इस झटके से उबर आयेगी। उनके अनुसार यहां जितनी भी कोचिंग चल रही हैं, उनमें से अधिकांश कभी न कभी कम या लम्बे समय तक डा. एसपी सिंह के शागिर्द रहे हैं। फिर उन्होंने अपनी कोचिंग खोल ली। इनमें से अधिकांश को अपने भाग्य, मेहनत, प्रचार-प्रसार और रिजल्ट के अनुकूल मार्केट शेयर मिल गया है। लेकिन न्यू लाइट का नम्बर एक सिंघासन आज भी अपराजेय है।
आगे भी यह रहेगा या नहीं यह कोई नहीं जानता, लेकिन पहली बार काकादेव में कोटा की तर्ज पर फैकल्टी की बात शुरू हुई है। कोर्स प्लान, बेस्ट फैकल्टी, डाउट क्लीयरेंस को अपनी स्पेशिलटी बताया जा रहा है।
व्हाट इस मोर इम्र्पाटेन्ट
इंस्टीट्यूट आर फैकल्टी। जैसे स्लोगन छापे जा रहे हैं।
जानकार जानते हैं कि सुदूर राजस्थान में कोटा कभी बन्सल क्लासेज के नाम  पर जाना जाता था। हालांकि एलन्स उनसे भी पुराने अपने को बताते हैं।
दो कमरों में चलने वाली दोनों कोचिंगें आज मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में चल रही हैं। बाद में इन्हीं की फैकल्टी टूट कर रेजोनेन्स, मोशन, वाइब्रेन्ट, कैरियर प्वाइंट बनीं। आज भी वहां एक कोचिंग से बीत-बीस फैकल्टी टूटकर दूसरे में चली जाती हैं। देश के कोने-कोने से अपने बच्चों को लेकर जाने वाले अभिभावक यहां एडमीशन के लिये कोचिंग की बिल्डिंग और विज्ञापन नहीं फैकल्टी ही देखते हैं।
इस नजरिये से देखा जाये तो काकादेव कोटा की राह पर चल निकला है। कोटा में सब कुछ अच्छा नहीं है लेकिन कोचिंग मंडी अगर कोचिंग हब बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है तो स्वागत होना ही चाहिये।
क्या है ब्रेवगर्ड 
न्यू लाइट के राजदीप श्रीवास्तव, विजय बहादुर, आशुतोष दुबे, विपिन द्विवेदी, राकेश चौरसिया, डीडी पाण्डे, टीचर्स ने गौरव दुबे और अभय शुक्ला मैनेजर के साथ मिलकर बनाई है ब्रेवगर्ड। नौ साल से बाइस साल तक का अनुभव लिये न्यू लाइट के इन पुराने महारथियों की कसमसाहट और खुलकर कुछ कर दिखाने की तमन्ना ने इन्हें अलग होने को मजबूर किया।
ब्रेवगर्ड में फर्नीचर फिटिंग, जनरेटर सेटिंग और सिटिंग स्टूडेंट के बीच खड़े-खड़े डी.डी. सर कहते हैं, वहां हमें बन्धुआ रहना पड़ता था, आखिर हम टीचर हैं। केवल अन्डरलाइन पोर्शन पढ़ाने से हम खुद ही अनकम्र्फटेबल फील करते थे। अपनी विशेषता पर जोर देते हुये वे कहते हैं हमारे मैनेजर हमारे पार्टनर हैं और हम अलग होने के बावजूद इस सेशन के स्टूडेंट के लिये हमारे दरवाजे खुले हैं। उनका जोर है कि बिल्डिंग, इंस्टीट्यूट और ब्रान्ड नहीं फैकल्टी ही सफलता का रास्ता बनाती है।
जवाब न्यू लाइट का...
हां, मैं अडरलाइन पोर्शन ही पढ़ाने को देता हूं...। स्टूडेंट यहां सेलेक्शन कराने के लिये आया है। उसके अभिभावकों ने हमारे विश्वास पर अपने खून पसीने की कमाई से फीस जमा की है। यह कहना है डा. एस.पी. सिंह का। अपनी बात को समझाते हुये सिंह कहते हैं कि मेरा दावा है एनसीईआरटी की बुक्स से बाहर का एक भी क्वेश्चन पेपर में नहीं आता है। अगर आ जाये तो मैं पहला आदमी हूंगा जो इन पर दावा ठोंक दूंगा।
प्रमाण स्वरूप एम्स के पेपर को दिखाते हैं...हर प्रश्न के आगे बुक के किस पेज पर वह प्रश्न है लिख रखा था। बोले आप देखिये यहां हर समय टीचर की मीटिंग और क्वेश्चन पेपर पर रिसर्च हुआ करती है, पूरी टीम उसके लिये मैंने लगा रखी है। ऐसे में अगर रैलिवेन्ट चीजों के अलावा टीचर अपने सोआफ के लिये पढ़ायेगा तो छात्रों के समय का नुकसान होगा, जो मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा।
फैकल्टी के अलग होने के सवाल पर वे कहते हैं, अच्छा है, कल तक  मेरे साथ थे, खूब तरक्की करें। हां, मैं इस बार    बाहर से अच्छी फैकल्टी बुला रहा हूं और उसको पूरे सेशन के लिये कान्ट्रैक्ट  पर लूंगा।1

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें