शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

राम जी के फैसले
प्रमोद तिवारी, प्रसंगवश
भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे. मर्यादा के लिए उन्होंने अपना राजसी ठाट-बाट ठुकराया, वनवासी बने, धोबी के व्यंग्य बाण सुने, पत्नी का परित्याग किया. यहां तक कि त्रेता से कलयुग तक आते-आते अराजक संघियों और अम्बेडकरवादियों से गालियां सुनीं. फिर बने राजनीति के मोहरे. उनके नाम पर खून-खराबा हुआ, चुनाव हुए और सत्ता भोग के लिए उन्हें भाजपाइयों ने जब चाहा एजेंडे में रखा और जब चाहा बाहर कर दिया. इसके बाद आया फैसले का वक्त. राम नाम पर मची हाय-तौबा के फैसले का वक्त. 2002 से शुरू हुई अदालती कार्यवाही में कुल 90 दिन सुनवाई हुई, जिसमें चार प्रमुख मुकदमों में दलीलें पेश की गयी. ये चार वाद थे- भगवान श्रीराम विराजमान बनाम राजेन्द्र सिंह, गोपाल सिंह विशारद बनाम जहूर अहमद, निर्मोही अखाड़ा बनाम बाबू प्रियदत्त राम व अन्य और सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड बनाम गोपाल विशारद व अन्य. इनमें से चौथे वाद को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया जो सुन्नी वक्फ बोर्ड बनाम गोपाल सिंह विशारद का था. फैसला बाकी तीन के संदर्भ में आया है. इन तीन वादों में भी मुख्य फैसला भगवान श्रीरामचंद्र विराजमान बनाम राजेन्द्र सिंह से जुड़ा है, जिसके संदर्भ में उच्च न्यायालय ने कहा है कि रामलला जहां विराजमान हैं, वह उन्हीं का स्थान है.पहले वाद के तहत जो मुख्य सवाल सामने रखे गये थे, उसमें अदालत को यह निर्णय करना था कि क्या विवादित स्थल आस्था, विश्वास या परम्परा के अनुसार भगवान राम का जन्मस्थान है? यदि हां, तो इसका प्रभाव? महत्वपूर्ण फैसला इसी एक बिंदु पर आया है. हाइकोर्ट ने आस्था, विश्वास और परंपरा तथा ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर पाया है कि जिस स्थान को लेकर विवाद है और जहां बाबरी मस्जिद निर्मित की गयी थी, वह वास्तव में हिन्दुओं के पुरुषार्थ पुरुष रामचंद्र से ताल्लुक रखती है, जो धर्मग्रंथों और साक्ष्यों के अनुसार अयोध्या में ही पैदा हुए थे. अदालत के इस फैसले से वाद संख्या तीन में उठाये गये सवाल का भी जवाब मिल जाता है, जिसमें इस बात पर निर्णय करना था कि क्या विवादित संपत्ति मस्जिद है, जिसे बाबर द्वारा बनवाये जाने पर बाबरी मस्जिद कहा जाता है? जाहिर है अदालत ने माना है कि इस विवादित संपत्ति को वर्तमान में मस्जिद नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसे बाबर ने ही मुसलमानों को वक्फ किया था, इसका कोई साक्ष्य सामने आया नहीं है. संभवत: इसी आधार पर हाईकोर्ट ने सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड का दावा ही खारिज कर दिया. क्योंकि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बतौर वादी जो दावे किये थे, वे बहुत ही कमजोर थे और इस ऐतिहासिक विवाद में एक तरह से बचकाने दावे किये थे. राम के राजनीतिक इस्तेमाल का पहला कीड़ा कांग्रेस और राजीव गांधी के जेहन में रेंगा था. उन्होंने ही राम जन्म भूमि पर शिलान्यास कराया था. तब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ने राजवी गांधी को चेताया था कि राम जन्म भूमि को राजनीतिक रंग न दें. उन्होंने तो यह तक कहा कि शिलान्यास हुआ तो पहला फवड़ा उनके ही मारना होगा. लेकिन उस बुर्जुग की किसी ने नहीं सुनी. एक हाहाकारी चुनावी जीत से लगा कांगेस और राजीव गांधी ने क्या चाल चली. लेकिन यह चाल चार कदम बाद ही अपनी चाल भूल गई. एक प्यारा, ईमानदार, कुछ कर गुजरने की चाह रखने वाला नवजवान राजीव गांधी अपने शातिर दोस्तों के कहने पर राम नाम पर राजनीति करने को राजी हो गया. कुछ ही वर्षों में इस कृत्य पर फैसला आ गया. जिस देश ने राजीव को ४०० से ज्यादा सांसदों की टीम के साथ संसद भेजा, उसी देश ने चार साल बाद उसे 'चोरÓ तक कहा. राजीव और कांगेस दोनों की ही मर्यादा धूल-धूसरित सी हो गई. राम के नाम पर राजनीति करने का जो पहला गुनाह हुआ, मेरी दृष्टि में कांग्रेस का १४ वर्षीय सफाया पहला फैसला था. इसके बाद राम जन्म भूमि पर भव्य मंदिर का वचन लेकर आडवाणी खुद राम बन गये. राम नाम की इस नौटंकी में भाजपा को 'सत्ताÓ तो मिल गई, लेकिन सत्ता भोगियों ने मंदिर निर्माण का वचन भंग कर दिया. राम नाम पर मचे कलयुगी विवाद पर दूसरा फैसला अडवाणी और भाजपा की वर्तमान में तहस-नहस मर्यादा के रूप में आया. और अब जबकि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मान लिया कि अयोध्या में आस्था, विश्वास, परम्परा और साक्ष्य के आधार पर अयोध्या में विवादास्पद स्थल राम जन्म भूमि ही है, वहां बिराजे 'रामललाÓ नहीं हटेंगे तो एक बार फिर से राजनीति शुरू हो गई है. दरअसल हाईकोर्ट के फैसले के बाद जिस तरह से हिन्दुओं और मुसलमानों ने शालीनता, धैर्य और सौहार्द का आचरण बरता उससे राजनीतिकों की कल्ला कई. उन्हें उम्मीद थी कि दंगा होगा, हिन्दू-मुसलमानों का फिर ध्रुवीकरण होगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. पहले तो २४-४८ घंटे समझ ही नहीं आया क्या कहें... क्या करें...? सिवाय इसके कि देश में अमन चैन है, जनता का बहुत-बहुत धन्यवाद. लेकिन इसके बाद मुलायम सिंह यादव से नहीं रहा गया. बोले, फैसला उचित नहीं है. जिस दिन मुलायम का यह बयान आया, लेखक दुबई में था. हिन्दुस्तान में उनके बयान पर जो प्रतिक्रिया हुई सो हुई, विदेश में भारतीय मुसलमानों ने इसे बहुत घिनौनी हरकत माना. हमारी एसोसिएशन के फरहान वास्ती, नदीम, एखलाक, रेहान, साजिया सभी खुश थे कि एक फिजूल का विवाद खत्म होने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. और जब मुलायम का बयान आया तो सभी एक सुर में बोले- ''देखो आ गई असलियत सामने. यह लड़वा रहा था.ÓÓ रामबिलास पासवान, सेकुलरवादी, वामपंथी और यहां तक कि कांग्रेस भी फैसले के बाद मुसलमानों को अपने-अपने खेमे में करने के लिए किन्तु-परन्तु की भाषा बोलने लगी है. और दूसरी तरफ देश का आम हिन्दू और आम मुसलमान इन बयानों के पीछे छिपी राजनीति की लपलपाती जीभ को देखकर पूरी तरह से समझ रहा है कि न कोई मंदिर का मसला है, न मस्जिद का, यह मसला केवल इन नेताओं का है. इन्हें लड़ता हुआ हिन्दू-मुसलमान चाहिए. जिसके लिए विवाद का बना रहना जरूरी है. लेकिन अब उनकी एक नहीं सुननी है. अदालत जो कह देगी, हम सब मान लेेेंगे. साधु-संत, मौलाना-मुफ्ती भी अब शायद ही हथियार बनें. राम विवाद पर देश की जनता एक-एक कर नेताओं की तार-तार होती मर्यादा को देख रही है. उस पर थूक रही है और मैं, इस लेख का लेखक मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ खिलवाड़ करने वालों की तार-तार होती मर्यादा को देखकर कह सकता हूं कि राजीव का पतन, आडवाणी का मखौल, मुलायम का तिरस्कार, आजम खां की दुर्दशा बुखारी की उपेक्षा आदि और कुछ नहीं, राम जन्म भूमि पर आने वाले राम के फैसले थे. अर्थात मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा से राजनीति करने वाले की राजनीतिक मर्यादा शेष नहीं रह जाएगी. न मानो तो करके देखो. वैसे जिन्होंने की उनकी दशा आपके सामने है. इस समय देश का हिन्दु-मुसलमान एकजुट होकर 'रामÓ की निर्णायक मुद्रा बना चुका है.1

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