रविवार, 3 अक्तूबर 2010

प्रथम पुरुष

अभी भी जन्म के साथ आती है मौत

डा. रमेश सिकरोरिया

अपने देश में एक लाख १४ हजार स्त्रियां बच्चा पैदा करने में प्रतिवर्ष मर जाती हैं, क्योंकि उनके शरीर में गर्भावस्था और बच्चा पैदा करते समय, कठनाईयां और जटिलता पैदा हो जाती हैं. इसका मुख्य कारण है कम उम्र में विवाह होना, गरीबी, अच्छे और लाभदायक खाद्य पदार्थों का अभाव, जिसके फलस्वरूप रक्तहीनता (अनीमिया) होना, असुरक्षित गर्भपात कराना (कानूनी सुविधा न मिलना) और बिना किसी सहायता के बच्चा पैदा होने के बाद कुछ दिनों तक अच्छी स्वाथ्य सेवायें न मिलना. आश्चर्य है कि इतने सारे कारण होते हुए भी हमारी स्त्रियां अत्यधिक संख्या में बच्चे पैदा करने में मर रही हैं, प्रश्न हैं हम क्या करें? हमें ऐसी स्त्रियों और पैदा होने वाले शिशुओं के लिये एक सहायक वातावरण जो स्वास्थ्य वर्धक हो, बनाना होगा. इसके लिये स्त्रियों और लड़कियों को शिक्षा देनी होगी, उनकी गरीबी को कम करना होगा. उनको दुरूप्रयोग से बचाना होगा, उनका शोषण, उनके प्रति र्दुव्यवहार, हिंसा इत्यादि रोकनी होगी. उनको घर में होने वाले निर्णयों (आर्थिक एवं राजनैतिक) में शामिल करना होगा, उनको अपने अधिकारों और स्वयं को तथा अपने बच्चों के लिए भी प्राप्त होने वाली सेवायों के प्रति सजग करना होगा. पुरूषों को भी स्त्री- पुरूष की असमानता को दूर करने में अपना पूरा योगदान देना होगा. प्रत्येक लड़की (स्त्री) को स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क देना होगा.

शत्रु नहीं, मित्र हैं कीट-पतंगे

साधारणत: हम समझते हैं कि कीड़े-मकोड़े, जंगल के जानवर या कीटाणु हमारे दुश्मन हैं, हमारे हित में हैं कि उनका विनाश किया जाये, उनको इस दुनिया में रहने न दिया जाये तो हम अधिक स्वस्थ होंगे. परन्तु ऐसा सोचना पूर्णत: गलत है. इन सब जीवों का योगदान हमें स्वस्थ रखने में नहीं बल्कि हमें जिन्दा रखने में है. आईन्स्टीन ने कहा था, यदि मधुमक्खी वातावरण से लुप्त हो जाये तो मनुष्य केवल चार वर्ष जिन्दा रहेगा. क्योंकि यदि मधुमक्खी नहीं होगी तो फूलों का परागण नहीं होगा, परागण न होने से पेड़ पौधे न होने से जानवर नहीं होंगे हम (मनुष्य) नहीं होंगे. इन जीवों का बहुत महत्व है. लकड़ी के उत्पादन में आक्सीजन बनाने में , पानी और मिट्टी के रखाव में उनमें लाभदायक तत्व बनाये रखने का पानी के श्रोतों की रक्षा करने में, कार्बन (कोयला) को जमा रखने आदि में जीवों की विभिन्न आवश्यकतायें हैं. पृथ्वी पर जीवन रक्षा के लिए प्रत्येक जीव और वस्तु एक दूसरे से जुड़ी हुई है. कोई भी अकेलेपन में नहीं जी सकता. वे सब एक दूसरे को जिन्दा रखने में सहायक हैं, एक भी कड़ी टूटने से जीवन क्रम ताश के पत्तों की तरह बिखर जायेगा. ९९.९ प्रतिशत जीवों की किस्में लुप्त हो गई हैं. पृथ्वी के ४.५ बिलियन पुराने इतिहास में वर्तमान में सबसे तीव्रता से विभिन्न जीव -जन्तु लुप्त हो रहे हैं. भूतकाल में इसके कारण स्वाभाविक थे और प्रकृति ने पुन: संतुलन बना दिया, परन्तु अब हम स्वयं इस संतुलन को नष्ट कर रहे हैं. यह हमारे स्वयं के जीवन का अन्त होगा. सोचिये यदि जंगल न हो या वे शान्त हो जायें, उनमें शेर की गर्जन न हो, कौआ न हो हमारा कूड़ा साफ करने को, समुद्र में कोई ह्वेल मछली न हो, पृथ्वी पर चलने को हाथी न हो, कोई मोर न हो प्रेमी को बुलाने के लिए नाचता हुआ. तितली एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ती हुई न हो, नई पत्तियां उग न रही हों, पेड़ों की जड़ें जम न रही हों इत्यादि, ऐसी दुनिया आप पसन्द करोगे रहने को? अतएव दुर्लभ या किसी भी जीव-जन्तु को नष्ट न करिये. संतुलन को बना रहने दें. इसी में आपकी रक्षा है, जीवन है.1 (लेखक पूर्व स्वास्थ्य निदेशक हैें)

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