शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

खरीबात

क्या पुलिस वालों के बेटियां नहीं होतीं

पहले घाटमपुर की वंदना, फिर शुक्लागंज की कविता के साथ दुष्कर्म. दोनों ही मामलों में आरोपियों को बचाने को लेकर सम्पूर्ण महानगर समेत आसपास के जिलों तक में कानपुर पुलिस ने अपनी खूब थू-थू करवायी. इसके बाद महराजपुर के कमलापुर गाँव की दलित युवती (काल्पनिक नाम) किरण के साथ हुए दुष्कर्म मामले में भी पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने के बजाए पीडि़त परिवार को थाने से भगा दिया. हालांकि बाद में डीआईजी कानपुर के आदेश पर मामला दर्ज हो गया. लेकिन जब बारह वर्षीय अनुष्का उर्फ दिव्या के साथ दुष्कर्म हुआ, वह भी अप्राकृतिक, जिसमें उसकी मौत तक हो गयी और कल्यानपुर पुलिस का आरोपियों को बचाने के लिए इस बयान कि दिव्या गर्भवती थी, को अखबारों में पढऩे के बाद उन अभिवावकों में आक्रोश को भर दिया, जिनकी बेटियाँ भी दिव्या की तरह किसी स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने जा रही हैं. रोशन नगर की रहने वाली 12 वर्षीय अनुष्का नमक फैक्ट्री चौराहे के पास स्थित भारती ज्ञानस्थली विद्यालय में कक्षा 6 की छात्रा थी. बीती 27 सितम्बर को वह अपने ही स्कूल में लहूलुहान अवस्था में पाई गयी. स्कूल प्रबन्धन व वहाँ पढ़ाने वाली अध्यापिकाओं व बच्चों की देखभाल को रखी गयी आया समेत सभी ने बच्ची को तुरन्त अस्पताल ले जाने में खूब लापरवाही बरती. बच्ची लहुलूहान हालत में अपनी अंतिम सांसें गिनती रही और अन्तत: इलाज में देरी के चलते उसकी मौत हो गयी. मामला जब कल्यानपुर थाना पुलिस के संज्ञान में पहुँचा तो अन्य मामलों में अपनी थू-थू करा चुकी पुलिस ने बिना कुछ सोचे-समझे मासूम को गर्भवती बता दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पुलिस के बयान की पोल खुली. मालूम पड़ा कि उसके साथ अप्राकृतिक यौनाचार किया गया था. वह भी इतना वीभत्स कि डाक्टरों तक का दिल दहल गया. अनुष्का की पोस्टमार्टम रिर्पोट में जब यह खुलासा हुआ कि उसकी मौत अप्राकृतिक दुष्कर्म, अत्यधिक रक्तस्राव व समय पर इलाज न मिलने से हुई, तो उसको गर्भवती बताने वाली कल्याणपुर पुलिस के प्रति अभिवावकों का आक्रोश फूट पड़ा. हेलो कानपुर से हुई बातचीत में बिरहाना रोड निवासी मनीष साहू कहते हैं कि मेरी भी दो बेटियाँ अनुष्का की तरह स्कूल जाती हैं. मैं तो इस कांड के बाद से डर गया हूँ, पर बेटियों को शिक्षा दिलाना जरूरी है, इसलिए उनको स्कूल भेजना मजबूरी भी है. लेकिन पुलिस की ऐसी कौन सी मजबूरी है, जो वह मासूम से दुष्कर्म करने वालों को बचाने के साथ उसकी माँ पर उल्टा आरोपियों से समझौता करने का दबाव बना रही है. ऐसा लगता है कि जैसे पुलिस की आँख का पानी मर गया हो. इसी तरह काहू कोठी निवासी सुनीता तिवारी तो अनुष्का कांड में पुलिस की भूमिका देख उसे दुष्कर्मियों से भी ज्यादा घृणित नजरों से देखने लगी हंै. उनके अनुसार अनुष्का के साथ अप्राकृतिक यौनाचार करने वाला, इंसान के रूप में हैवान है और उसे बचाने वाले खुंखार दरिंदे, फिर चाहे वह पुलिस ही क्यों न हो! वह कहती हैं, क्या पुलिस वालों के बेटियाँ नहीं होतीं? वह सवाल करती हैं, अगर ऐसे हादसे का शिकार किसी पुलिस वाले की बेटी बनी होती, तो क्या तब भी वह ऐसी ही बयानबाजी करती? मनीष और सुनीता की तरह ही लगभग सभी अभिभावकों ने पुलिस के खिलाफ खूब जमकर अपना आक्रोश जाहिर करते हुए पुलिस के आला अधिकारियों पर भी सवाल खड़े किये कि क्या उन्होंने अपने आँख-कान बंद कर रखे हैं, जो उन्हे अपने मातहतों की कारगुजारियाँ दिखाई व सुनाई नहीं देती.पुलिस दुष्कर्म के आरोपियों को सजा दिलाने के बजाए उल्टा पीडि़त परिवारों को ही आरोपी से समझौता करने का दबाव बनाकर अपराध-अपराधियों को बढ़ावा दे रही है. वैसे देखा जाये तो पुलिस के प्रति अभिवावको का आक्रोश उगलना कुछ हद तक जायज भी है, क्योंकि दो माह के दरम्यान तीन युवतियों समेत एक मासूम बच्ची से दुष्कर्म हो जाने पर भी पुलिस सिर्फ दो काम करती रही, एक तो एफआईआर लिखने के बजाए पीडि़त परिवारों को थाने से टरकाना. दूसरा मामला दर्ज हो जाने पर आरोपी को सजा दिलाने के बजाए किसी खा़स वजह के चलते बचाना.1

सुधांशु श्रीवास्तव

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