शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

चौथा कोना

लेकिन इतनी जल्दी क्या है?

प्रमोद तिवारी

समझ में नहीं आता कि किसी को 'बलात्कारीÓ बताने की आखिर इतनी जल्दी क्यों रहती है कानपुर के मीडिया को. हाल के दिनों में दो स्तब्धकारी घटनाएं हुईं. पहली चांदनी नर्सिंग होम में और दूसरी रावतपुर गांव के एक स्कूल में. पहली घटना में कविता के साथ नर्सिंग होम के आईसीयू में बलात्कार की बात समाने आई और दूसरी घटना में सैकड़ों छात्रों की मौजूदगी में चलते स्कूल में नन्हीं जान अनुस्का के 'बलात्कारÓ का सनसनीखेज समाचार प्रकाश में आया. दोनों ही घटनाओं में पहले ही दिन से अखबारों में 'बलात्कारियोंÓ की ओर इशारा होने लगा. 'कविताÓ के मामले में नर्सिंगहोम का 'वार्ड-ब्यायÓ बलात्कार की धारा के साथ अंदर है. और इसी तरह अनुस्का के मामले में विद्यालय का संचालक और उसका बेटा सलाखों के पीछे है. इन दोनों ही घटनाओं में मीडिया पीडि़त पक्ष की ओर से हमलावर मुद्रा में रहा. उसने पुलिस और प्रशासन पर 'बलात्कारियोंÓ को बचाने का आरोप लगाया. जनता को समझाया कि रसूखदार लोगों ने इन अमानवीय कृत्यों में भाग लिया और पुलिस उन्हें बचा रही है. इसमें क्या संदेह कि पुलिस रसूखदारों को बचाती है, घटना छुपाती है. निर्दोषों को फंसाती है. लेकिन इसके उलट जो न हुआ हो उसे बताया जाये, जो दोषी न हो उस पर दोष सिद्घ करने का जतन किया जाये. घटना को नाहक तूल दिया जाये, तो इसे क्या कहेंगे? नर्सिंग होम का कोई आईसीयू (जिसमें केबिन न हो, बेडों के बीच केवल पर्दे की ओट हो) भला रहस्यमयी बलात्कार का घटनास्थल कैसे हो सकता है? एक टूटी-फूटी लड़की के साथ रेप हो और उसी कमरे में मौजूद लोग कोई चीख पुकार न सुनें, यह कैसे संभव है? लेकिन नहीं... मीडिया ने ऐसा शोर मचाया कि 'वार्ड-ब्यायÓ बलात्कारी हो गया. जबकि बाद में डाक्टरी रिपोर्ट के अनुसार कविता के शरीर पर जो वीर्य मिला, वह घटना के दिन से पांच दिन पुराना प्रतीत हुआ. इसी तरह अनुस्का के मामले में जांच-पड़ताल के बाद अमानवीय यौनाचार का स्थान विद्यालय नहीं निकला, अनुस्का का पड़ोस निकला. जब तक तथ्य सामने आते, हर छोटे-बड़े अखबार ने एक अस्पताल और एक विद्यालय को 'बलात्कार-स्थलÓ की तरह प्रचारित कर दिया. पूछिए जरा उन लोगों से जिनके परिवारीजन 'बलात्कारीÓ की कालिख के साथ सींखचों के पीछे है. पुलिस भी मीडिया के शोर और दबाव में उन्हें हत्या और बलात्कार के आरोप में बांध चुकी है. जबकि अनुस्का का बलात्कारी यौन विकृत पड़ोसी निकला और कविता के बलात्कारी की तलाश शुक्लागंज में हो रही है. मीडिया को समझना चाहिए कि अखबार में छपा अच्छा, भले ही सच्चा न माना जाये लेकिन बदनामी और इल्जाम आदमी को 'ता-उम्रÓ सजा देते हैं. अदालत माने न माने लेकिन दुनिया उनका जब-तब मखौल उड़ा ही देती है. वह गुनाह जिसमें कोई बेगुनाह फंसा हो, असली गुनहगार को बचाता भी है. मीडिया को यह बात समझनी चाहिए.1

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