सोमवार, 13 सितंबर 2010

राहुल चले अपनी राह

प्रमोद तिवारी

लीक छोड़ तीनै चलें, शायर सिंह, सपूत राहुल शायर तो हैं नहीं लेकिन शायरों जैसा दिल जरूर रखते हैं वरना यह कैसे कहते मैं दिल्ली में आदिवासियों का प्रतिनिधि हूं.सिर्फ शायरों का दिल ही नहीं अगर शेर जैसा जिगरा न होता तो वह आदिवासियों के बीच अपना शरीर न ले जाते. सपूत तो वह है ही. इसका प्रमाण मां सोनिया गांधी के चेहरे पर साफ झलकता है. अब बची लीक तो पिछले कुछ अरसे से राहुल के कदम कुछ इस अंदाज से उठ रहे हैं कि लगता है कवि प्रमोद तिवारी नहीं बल्कि राहुल गांधी कह रहे हैं-बदला-बदला लग रहा है मेरे कदमों का मिजाज, अब रहेंगे रास्ते या मंजिलेें कह जाएंगी. राहुल जिस राह पर हैं उस पर केन्द्र सरकार के कई मंत्रियों के 'हित-अर्थीÓ उठी जा रही है. राहुल नहीं देख रहे सरकार के हित क्या और कहां हैं. वह फिलहाल देश हित में जो समझ रहे हैं, वही कह रहे हैं, वही कर रहे हैं. मां सोनिया का उनको पूरा सर्पोट मिल रहा है. तो क्या ऐसा नहीं लगता कि मनमोहन के चिदंबरम, प्रणव मुखर्जी, मंटोक इन दिनों दस जनपथ के बजाय अन्तर्राष्ट्रीय बाजार की ओर ज्यादा आश्वस्त और संतुष्ट हैं . अमरीका कह भी रहा है कि मनमोहन सिंह अब पहले से ज्यादा ताकतवर प्रधानमंत्री हैं. यह बयान उसने परमाणु दायित्व कानून के पास होने पर दिया. वैसे भी इस सच्चाई से कौन इंकार कर सकता है कि संप्रग पर व्र्लड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का ही कब्जा है. मनमोहन सिंह और मंटोक सिंह तो इन बैंकों के पूर्व कर्मी रह चुके हैं. पी. चिदम्बरम ने जिस दिन वित्त मंत्री का पद संभाला था उसी दिन 'वेदांतÓ के निदेशक पद को त्यागा था. उसी वेदांत के लिए चिदम्बरम सेना भेजने को तैयार हैं और राहुल अचानक आदिवासियों के साथ खड़े होकर उसे खदेडऩे में लग गये. यह विरोधाभास या तो किसी बड़ी क्रंाति की आहट है या फिर देश के साथ अब तक का सबसे बड़ा खिलवाड़ हो रहा है.1

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