सोमवार, 27 सितंबर 2010

नारद डाट काम

वणिक शक्ति

कमलेश त्रिपाठी

पिछले हफ्ते इन भाई लोगों का सम्मेलन हुआ था. देश-विदेश के वणिकों ने इसमें नाप तौल कर हिस्सा लिया. यह बिरादरी अब उत्परिवर्तन के दौर में है. इस महाकुम्भ के एक दिन पहले से मय की दुकानों में मदिरा कम पडऩे लगी थी, उसका असर भाषणों में भी दिखाई दिया। खूब तलवारें भांजी गयी, सभी राजनैतिक पार्टियों को चेताया गया कि हमें भी सरकार में शामिल करो, वरना हम भी नई पार्टी बना लेंग. हे! वणिकों तुम्हें कौन रोक रहा है इस काम से? फिर इस देश में में सबको सब कुछ करने की छूट है. राम तो दूर की बात है यहाँ तो दशरथ राज चल रहा है. तुमने शहर का हृदयस्थल मालरोड मारे बेलचों के खोद डाला, तुमसे किसी ने कुछ कहा. इस कानपुर शहर की तो बात ही कुछ जुदा है, यहाँ छेड़ छाड़ से लेकर बलात्कार और खाने पीने के सामानों में मिलावट से लेकर नकली मुद्रा तक चलाने की छूट है. यहाँ हर आदमी के बाप का राज है. ऐसे में सोचने की बात है कि बाप के राज में हर आदमी को पूरी मौज लेने का अधिकार है. इस महाभीड़ में प्रदेश के एक बड़े कथित वणिक नेता की नामौजूदगी लोगों को जरूर सालती रही. यह नेता दरअसल असली राजपूत है, सूबे में जिसका राज चलता है ये उसी के पूत बन जाते हैं. पंजे से साइकिल का हैंडिल थामते हुए इस समय पुत्र सहित हाथीनशीं हैं, फिर यहाँ एक बात और है बनिये का मतलब बनना होता है न कि बिगडऩा. इसके लिए पार्टी जाँघिये की तरह बदलनी पड़े तो क्या हर्ज है?अब जरा इन जातिगत सम्मेलनों के असली दर्शन पर आइये. आज हर जाति, प्रजाति और उपजाति का अपना व्यक्तिगत संगठन जरूर है और करीब-करीब सबमें दाल भी बट रही है. अभी तक ऐसे किसी जातीय, उपजातीय संगठन ने कोई अच्छा सामाजिक काम नहीं किया है. गर्मी में एक प्याऊ तक नहीं लगवाया. एक तरह से ठीक भी किया, लगवाते तो बोर्ड टँगवा देते कि सिर्फ वणिकों के लिए. आज समाज लौकी की तरह कट रहा है, सगे भाई को देने के लिए कुछ नहीं है लेकिन पूरी जाति को उठाने का दावा करते हैं. बसपा जैसी पार्टी जिसका उदय जातिगत राजनीति से ही हुआ था, अब वो सबकी बात कर रही है. ऐसे में हे! वणिकों पोस्टर में चित्र छपवाने से कुछ होने वाला नहीं है. कुछ अच्छा करो चाहे अपनी ही बिरादरी के लिए ही हो, तलवारें भांजने से कुछ भला होने वाला नहीं है फिर एक अंग्रेजी कहावत है -'चैरिटी बिगिन्स फर्म होमÓ1

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