शनिवार, 18 सितंबर 2010

प्रथम पुरुष

यूरोप में है जाति प्रथा की जड़

डा. रमेश सिकरोरिया

सामंतवाद में लगभग सभी देशों में जातिवाद प्रथा थी. प्रमाण स्वरूप इग्लैण्ड में टेलर , स्मिथ गोल्ड स्मिथ, बेकर, ब्यूचर, पॉटर, बारबर , मैसन, कार्पेन्टर, टरनर, वाटरमैन, शेफर्ड, गार्डनर इत्यादि उपनाम यह बताते हैं कि इनके पूर्वज उपनाम के अनुसार व्यवसाय करते थे. जातिवाद प्रथा का जन्म त्वचा के रंग से शुरू हुआ और आज भी गोरे रंग को काले रंग से अधिक महत्व मिलता है. बाद में सामंतवाद ने इसे व्यवसाय के अनुसार समाज में बांट दिया. कहने को तो केवल चार जातियँा हंै ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र परन्तु वास्तव में सैकड़ों जातियां और उपजातियां हैं जैसे कि यादव , कुर्मी , नट, कायस्थ , भूमिहार, गोसेन्स. प्रत्येक व्यवसाय जाति में परिणित हो गया. जैसे बढ़ई, कुम्हार, धोबी, नाई, दर्जी , कसाई, मल्लाह, धोबी, केवट, तेली, कहार, गड़रिया इत्यादि. सामंतवाद में कृषि के साथ हस्तकला भी विकसित हुई और समाज को प्रगति दी. भारत में अंग्रेजों के आने से पहले हस्तकला उच्च शिखर पर थी. ढाका के मलमल, मुर्शिबाद की सिल्क, कश्मीर की शॅाल, कालीन, जेवर इत्यादि. उसका उत्पादन विश्व का ३१.५ प्रतिशत था जो अंग्रेजों के आने के बाद ३ प्रतिशत हो गया. हस्तकला में ४० प्रतिशत आबादी लगी थी और विश्व के तमाम देशों में उनका माल बिकता था. किसी भी देश की सम्पन्नता उसके उद्योग में लगी आबादी पर निर्भर करती है. अमरीका में केवल २-३ प्रतिशत आबादी कृषि में लगी है, ९७-९८ प्रतिशत उद्योग में या अन्य सेवाओं में. अंग्रेजों ने यहां आकर अपने मिलों के माल बेचने के लिये यहां की हस्तकला को नष्ट कर दिया. उन पर आसमान छूने वाली निर्यात कर लगाकर. परिणास्वरूप १० प्रतिशत से भी कम आबादी हस्तकला (उद्योग) में रह गई. ३० प्रतिशत लोग भुखमरी के शिकार हो गये, उनके पास कोई काम नहीं रहा, वे भीख मांगने लगे या जुर्म (अपराध) करने लगे. जनजातियां जो पहले हस्तकला में निपुण थीं, अपराध करने लगीं, ठगी करने लगीं. राजनीति ने जातिवाद की जड़ों को सींचना शुरू कर दिया. सत्ता के लिए उन्होंने जाति आधारित वोट बैंक बना डाले , प्रत्येक चुनाव में इसको प्रत्याशी के चयन में देखा जाता है. आरक्षण का लाभ उठाने के लिए प्रत्येक जाति पिछड़ी या शैड्यूल्ड जाति बनना चाहती है. फर्जी प्रमाण-पत्र बनवा कर नौकरियां पाने की होड़ चल रही है. बच्चों का स्कूल में प्रवेश कराकर छात्रवृत्ति पाने की भी तीव्र आकांक्षा रहती है. शादियां तो अपनी ही जाति में करने की प्राथमिकता है विभिन्न जातियों में हिंसात्मक झगड़े होते हैं, स्कूलों में भी होने लगे हैं. मुसलमानों, ईसाइयों और सिखों में भी जातियां हैं. जातिवाद प्राविधिक (तकनीकी) प्रसार, जन मानस के संघर्ष और अंतर जातीय विवाह से दूर होगा. तकनीकी कालेजों में हर जाति के बच्चे पढ़ेंगे, समाज में हर वर्ग आर्थिक रूप से बराबरी पर आयेगा तो जातिवाद स्वत: समाप्त हो जाएगा.1

(लेखक पूर्व स्वास्थ निदेशक हैें)

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