सोमवार, 13 सितंबर 2010

प्रथम पुरुष

जन स्वास्थ्य कमाई का जरिया भी

डा. रमेश सिकरोरिया

हमारे देश में जन स्वास्थ्य, चिकित्सा पर आधारित है अर्थात बीमारियों का इलाज किया जाये. इससे बिमारियां थोड़े समय के लिये रूक जाती हंै लुप्त नहंीं होतीं. इस नीति से स्थायी जन सुधार के उपायों को टाल दिया जाता है. केवल अस्थायी उपाय चलाये जाते हैं एन्टीबायोटिक एवं अन्य दवाओं की उपलब्धता के कारण स्वच्छ जल,अच्छी सफाई , अच्छा भोजन अच्छे घर इत्यादि का प्रबन्ध करना आवश्यक समझा नहीं जाता और इन्हें नीचे स्तर पर ड़ाल देते हंै .विभिन्न भाषायें, संस्कृति और विचार धारायें धीमी गति के कारण हैंै. इसका मुख्य कारण है चिकित्सकों का दवा बनाने वाली संस्थाओं का वे हमेशा बीमारियों के उपचार को उनकी रोक थाम से अधिक महत्व देते हंै क्योंकि इसमें उनका स्वार्थ है, उनके लिये अधिक धन कमाने का अवसर है, वे जन मानस के स्वास्थ्य के बारे में क्यों सोचें वे अर्थव्यवस्था , कर्ज के कैपीटल ब्याज अदायगी एवं आर्थिक दंड इत्यादि का दष्टिकोण अपनाते हैं. राजनीति में केवल शीघ्र होने वाले लाभ का सोचते हंै और नीति बनाते हंै. सरकारी तंत्र प्लान बनाने ,धन उपलब्ध कराने और लक्ष्य निर्धारित करने में लगा रहता है. पश्चिम में जन स्वास्थ्य में जो सफलता मिली है उसका प्रमुख कारण है प्रत्येक को एक निर्धारित जीवन स्तर देने के साधन उपलब्ध कराये जाने . हमारे दल बीमारी फैले तो दवा (गोलियँा) बांट दी और फिर आराम से सो जाओ . बिमारी क्यों फैली, उसके कारणों को जड़ से उखाडऩे का कोई प्रयत्न नहीं होता . क्यों नहंी होता स्पष्ट है कि सफाई व्यवस्था या अच्छी सफाई के व्यवस्था कराने में ंसरकारी तन्त्र व अन्य का लाभ कम है जबकि दवाओं और वैक्सीन का प्रबंध करने में लाभ अधिक है. स्थायी उपाय करें तो भविष्य में धन कमाने की सम्भावना कम हो जायेगी. अतएव बिमारी कम हो जायेगी. इलाज करो नयी बीमार पैदा होने दो. अतएव स्थायी समाधान के लिए राजनैतिक एवं सामाजिक आन्दोलन चलाना होगा. इस समय जन स्वास्थ्य का कार्य जिनके नियंत्रण में उनकी इच्छा जन स्वास्थ्य सुधार के विपरीत है. उनकी इसमें रूचि नहीं है अच्छा जन स्वास्थ्य होना एक सामाजिक न्याय है. प्रत्येक का अधिकार है की उसे अच्छा स्वास्थ्य मिले और इसकी जिम्मेदारी शासन की है. उसे समझना होगा की अच्छा जन स्वास्थ्य- गरीबी, भुखमरी निम्नस्तर के भोजन, अशिक्षा प्रदूषित पेय जल सामाजिक भेदभाव आसुरक्षा, गंदगी या राजनीती में मौलिक अधिकारी की लड़ाई है दवा बांटने या टीका लगवाने से जन स्वास्थ्य में स्थायी सुधार नहीं होगा. अतएव जन स्वास्थ्य जन स्वास्थ्य को बीमारी की रोक थाम से ना जोड़ा जाये. इसका संचालन दवा र्निमाताओं एवं चिकित्सकों के हांथ से लेकर सामाजिक एवं राजनीति के कार्यकर्ताओं के हांथों में सौपा जाना चाहिए और उसकी सफलता के लिए जिम्मेदार हों. जो भी स्थायी उपाय करने हंै उनके लिए आवश्यकता अनुसार धन एवं अन्य साधन दिये जायें. अन्यथा बीमार नहीं रहेगा बीमारी रहेगी. दवा निर्माताओं का स्वास्थ्य सुधरता रहेगा. आम आदमी का स्वास्थ्य गिरता रहेगा. अस्वस्थ्य शरीर और मन का आदमी देश के लिए क्या कर पायेगा .आप स्वयं समझ सकते हैं.देश के शहरों में ८ करोड़ गरीब रहते हैं. गांव में १२ करोड़ ९.१ करोड़ व्यक्ति प्रतिवर्ष गांव से शहरों में बसने जाते हैं. क्यों गांव में उसके जीने के साधन नहीें हैं?उच्चतम न्यायल ने वर्ष २००८ में तीन सदस्यों की कमेटी यह देखने के लिए बनायी थी कि वर्ष २००६ में पुलिस एक्ट में कितना सुधार हुआ. उसमें ६ मुख्य बिन्दुओं पर आदेश दिये थे. परन्तु आज तक इस कमेटी में २८ में से केवल ८ राज्यों की समीक्षा की है. केवल ८ बैठकें की हैं. लगता है एक ओर कमेटी के कार्य की समीक्षा बनानी पड़ेगी. १ वर्ष में १० लाख रूपये खर्च कर चुकी है. २० लाख और मांग रही है अब क्या सुधार होगा पुलिस एक्ट मेें!1(लेखक पूर्व स्वास्थ निदेशक हैें)

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