सोमवार, 27 सितंबर 2010

गांधी बनोगे, गुप्ता जी!

प्रमोद तिवारी

वैश्य एकता परिषद की महारैली

हम लोग कल को केन्द्रीय मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल, ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन, सांसद नवीन जिंदल, विधायक सलिल विश्नोई व श्यामा चरण गुप्ता जैसे आम जनता से विश्वास पा चुके जन प्रतिनिधियों को सोनिया, अटल, मुलायम और मायावती के बजाय सुमंत के नेतृत्व में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा से नहीं 'गुप्ता पार्टीÓ के टिकट पर चुनाव लड़ता देख सकते हैं...

पिछड़ों और दलितों की राजनीतिक एकजुटता हमने मुलायम सिंह यादव और मायावती की सरकारों की शक्ल में साफ-साफ देख ली है. अब वैश्वों की राजनीतिक एकजुटता देखना बाकी है. कानपुर में दो केन्द्रीय मंत्री सहित कई विधायकों और सांसदों की मौजूदगी में ऐलान हुआ कि अगर देश की राजनीति में वैश्यों का उचित प्रतिनिधित्व न हुआ तो वह अपना अलग राजनीतिक दल बना लेंगे. यह उद्घोष यहां १९ सितम्बर को वैश्य एकता परिषद की रैली में हुआ, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष सुमंत गुप्ता हैं. अर्थात सुमंत गुप्ता के नेतृत्व में अब देश के वैश्यों का एक दल कभी भी अस्तित्व में आ सकता है. और हम लोग केन्द्रीय कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल, ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन, सांसद नवीन जिंदल, विधायक सलिल विश्नोई व श्यामा चरण गुप्ता जैसे आम जनता से विश्वास पा चुके जन प्रतिनिधियों को सोनिया, अटल, मुलायम और मायावती के बजाय सुमंत के नेतृत्व में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा के बजाय 'गुप्ता पार्टीÓ टिकट पर चुनाव लड़ता देख सकते हैं. श्री प्रकाश जायसवाल और प्रदीप जैन से तो इस संबंध में बात नहीं हो सकी लेकिन सलिल विश्नोई जरूर मिल गये. भाजपा से विधायक सलिल जी का मानना है कि वैश्य एकता परिषद में जो कहा गया वह कतई उचित है. यह पूछे जाने पर कि अगर कल को वैश्यों की पार्टी बनती है तो क्या आप भाजपा छोड़ देंगे? उन्होंने कहा कि यह तो समय बतायेगा, अभी से क्या कहा जा सकता है. सलिल जी का यह जवाब नि:संदेह एक बड़ी राजनीतिक हलचल का संकेत माना जाना चाहिए. यह जवाब बताता है कि सम्मेलन में कही गई बातें केवल बातें नहीं हैं. इसके राजनीतिक निहितार्थ को समझना होगा. वैश्यों का यह मंच साधारण नहीं था. मंच पर विश्व के नम्बर एक अखबार के मालिक और सपा से राज्यसभा सदस्य रह चुके महेन्द्र मोहन गुप्ता जी भी मौजूद थे. हालांकि उन्होंने सुमंत जी को चुनावी राजनीति से अलग रहने का ही मशविरा दिया, लेकिन वहीं पूर्व सांसद श्यामा चरण गुप्ता काफी उतावले दिखे. उन्होंने दल बनाने के लिए एक करोड़ रुपये देने का भी ऐलान कर दिया. पूरे सम्मेलन में एक बात बहुत मजबूती और ताकत से उठाई गई वैश्य समाज की ओर से कि अब वैश्य शोषण नहीं करायेगा. जो लोग यह कह रहे थे और मंच पर हाथ से हाथ मिलाकर 'हल्ला-बोलÓ की मुद्रा बना रहे थे, जरा उन पीडि़तों और शोषितों के नाम जान लीजिए. सुरेश गुप्ता (स्थाई स्थानीय अध्यक्ष, अजित सिंह पार्टी) पवन गुप्ता (सफल उद्यमी), सलिल विश्नोई (विधायक, भाजपा), महेन्द्र मोहन गुप्ता (मालिक, जागरण समूह), श्री प्रकाश जायसवाल (केन्द्रीय कोयला मंत्री) प्रदीप जैन (केन्द्रीय राज्य मंत्री), नवीन जिंदल (बड़े उद्यमी व कांग्रेसी सांसद), सुमंत गुप्ता (अध्यक्ष, वैश्य एकता परिषद), श्यामा चरण गुप्ता (पूर्व सांसद एवं बड़े उद्यमी) आदि. तो ये हैं वैश्य कौम के उत्पीडऩ से परेशान लोग. आगे कुछ भी लिखूं कम पड़ेगा. इसलिए एक कर विशेषज्ञ वैश्व अधिवक्ता वैश्व जाति नहीं वैश्व प्रवृत्ति पर किया गया चिंतन यहां काबिले गौर है. एक वरिष्ठ अधिवक्ता लेकिन दिमाग से खुले वैश्व ने इस सम्मेलन पर जो कहा वह काबिलेगौर है- 'आजादी के बाद इस देश को दीमक और चूहे की तरह अगर किसी कौम ने कुतरा और चाटा है तो वह यही व्यापारी वर्ग है. जिस पर जाति के आधार पर वैश्यों का और राजनीति के आधार पर भाजपा का वर्चस्व रहा है और आज भी है. कोटा, परमिट, लाइसेंस और इन पर छूटें किस लिए दी गई थीं. ताकि देश विकास करे. उत्पादन बढ़े. आम जनता तक चीजें पहुंचे लेकिन इन व्यापारियों ने इसे चोरी और ब्लैक का धंधा बनाकर अपनी तिजोरियां भर लीं और आजादी के पहले चालीस वर्ष बिना डकारे हजम कर गये. वकील साहब की यह आक्रामक मुद्रा विचारणीय है. शहर में वनस्पति घी और पान मसाले का बड़ा व्यापार होता है. पिछले साल एक राष्ट्रीय चैनल ने इनकी खबर ली तो जनाब पैसा बनाने के लिये ये लोग आम जनता को जहर खिलाते पाये गये. कायदे से इन्हें जेल में होना चाहिए लेकिन जेल तो ये गये नही, हां! बाद में उसी राष्ट्रीय चैनल पर इन घी वालों के विज्ञापन जरूर दिखे. वाकई बड़ा उत्पीडऩ हुआ वैश्यों का. बेचारे घी में सुअर की चर्बी मिला रहे थे. सुअर तो कुछ कह नहीं रहा था पर नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी नाहक ही पिल पड़े और सेम्पिलिंग करा ली. ऐसे ही चैनल वाले न जाने कहां से रिपोर्ट ढूंढ़ कर दिखाने लगे, न चाहते हुए भी लाखों का विज्ञापन देना पड़ा. अगर होती वैश्यों की कोई राजनीतिक पार्टी, तो न कोई सुअर की चर्बी मिलाने से रोक पाता और न ही कोई चैनल सच न दिखाने की शर्त पर विज्ञापन ऐंठ पाता. कौन नहीं जानता सुमंत गुप्ता और आनंद गुप्ता हर चुनाव में या चुनाव के आगे-पीछे ऐसे ही मंच तैयार करके वैश्यों के वोटों की ठेकेदारी करते हैं. पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी पवन गुप्ता वोटिंग के ठीक पहले की रात ब्रह्म नगर चौराहे पर मंदिर की ओट में इस लेखक को वैश्यों के वोटों के एक ठेकेदार को नोटों की मोटी-मोटी गड्डियां पकड़ाते दिखे. लेकिन वोटों के अकाल में अपनी जमानत फिर भी नहीं बचा पाये. इस रैली में कोई आर.सी. गुप्ता थे. उन्होंने कहा कि ब्राह्मणों और ठाकुरों को उनकी औकात बताओ. यह भाषा तो अभी तक बसपाइयों की थी. इस भाषा से समाज को, प्रदेश को या देश को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. गुप्ता जी, फिर अगर आपकी यही ललकार कहीं दिलों पर असर कर गई तो वैश्यों की सारी ताकत (व्यापारी) कोने में धरी रह जायेगी. अगर वैश्य एकता परिषद की यह मूल भावना है और मंच पर मौजूद नेता लोग इस भावना से सहमत हैं तो अब वे ठाकुरों, ब्राह्मणों, पिछड़ों और दलितों से संबंध तोड़ लें. न उन्हें माल बेंचे और न उनसे वोट मांगे. गिन लें 'गुप्ताओंÓ के घर और कर लें राज. मंच पर केन्द्रीय मंत्री बैठे रहे, उन्हें मुख्यमंत्री घोषित किया जाता रहा और वह मुस्कराते रहे. प्रदीप जैन घनघोर पृथक्तावादी, समाज को तोडऩे वाले और आपसी वैमनस्य को बढ़ाने वाले स्वर पर तालियां पीटते रहे. ऐसे ही तो स्वर थे बसपाइयों के- तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार. जिन्होंने विधायिका का मुंह नहीं देखा उनकी बात और है. उन्हें राजनीतिक दृष्टि से बच्चा और कच्चा समझ कर अनदेखा भी किया जा सकता है. लेकिन बिहार में जातिवादी राजनीति को कोसने वाले श्री प्रकाश जायसवाल अपने शहर में जातिवादी राजनीति के उद्घारक बन गये हैं, इसकी अनदेखी कैसे हो. प्रदीप जैन तो सीधे राहुल गांधी के सिपहसलार बनकर नरेगा से दबे-कुचलों को उठाने का जिम्मा लिये हैं. अगर ये महोदय भी गुप्ता पार्टी के गठन के पक्ष में हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि राहुल का यूथ ब्रिगेड भी उसी सड़ी मानसिकता का शिकार है जिसने देश को पहले से ही सड़ा रखा है. नवीन जिंदल तो खाप पंचायतों तक के प्रति उदार हैं, इसलिए इनके राजनीतिक नजरिए पर क्या कहा जाए? शोषण, उत्पीडऩ और राजनीतिक पिछड़ेपन की बात करने वाले ये आज के वैश्य भूल गये हैं कि बनिया जब राजनीत में उतरता है तो सबसे पहले पैंट, शर्ट, टाई, बूट उतार कर लगोंटी पहन लेता है. एसी कोच छोड़कर थर्ड क्लास में सफर करता है. १९ सितम्बर को ये जितने मंच पर वैश्यों के अम्बेडकर बन रहे थे, इनसे कहो तुम सब अपनी संपदा वणिक उत्थान में दान कर दो और लंगोटी पहनकर आ जाओ मैदान में. देश को इस समय ऐसे बनियों की सख्त जरूरत है. एक-आध करोड़ से क्या होगा. चाहे श्री प्रकाश जायसवाल हों या प्रदीप जैन, नवीन जिंदल हो या सलिल विश्नोई, श्यामा चरण गुप्ता हों या महेन्द्र मोहन गुप्ता इन सभी चुने हुए प्रतिनिधियों को १९ सितम्बर के जातीय तमाशे के बाद अब यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि वह किस बनिये की राह पर चलेंगे? जिसका नाम मोहनदास करम चन्द्र गांधी है उसकी या सुमंत गुप्ता की.1

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