सोमवार, 13 सितंबर 2010

नारद डाट काम
नक्कालपुर
कमलेश त्रिपाठी
पुन तो ये कर्ण पुर है और न ही कानपुर. इस शहर का नाम है अब नक्कालपुर. यहां हर चीज नकली है दूध, दही, पनीर, घी, मसाले और सोना- चांदी. अब तो शहर में नकली नोट भी बनने लगे हैं. अब यह अपना नगर अपने आप में पूर्ण हो गया है. पूरा शहर 'डीÓकी चपेट में है. 'डीÓ बोले तो डुप्लिकेट. मैंने एक मुद्रा उत्पादन करने वाले से पूछा भाई यह काम क्यों करते हो? उसने पलट कर कहा कभी भारत का संविधान पढ़ा है? उसमें साफ लिखा है कि देश के हर नागरिक को बराबर का दर्जा प्राप्त है. ये कौन सी बात हुई कि सरकार छापें तो ठीक और हम छापें तो नकली. आप हमारी छपाई तो देखिए उसके सामने सरकारी मुद्रा नकली लगती है. हम तो ऐसी तकनीक लगा रहे हैं कि बैंक वाले तक गच्चा खा जाते हैं. इस शहर में केवल दो चीजें असली हैं एक पुलिस और दूसरे अपराधी. बलात्कार से लेकर छेडख़ानी तक सब ओरिजनल तरीके से हो रही है. खेत से शुरू हुआ बलात्कार आई0सी0यू0 तक पहुंच गया है. खेत खलिहानों में बलात्कार तो बड़ी पुरानी विद्या है लेकिन आई0सी0यू0 में ऐसा होना इस शहर की अपनी नवीनतम तकनीक है. चिकित्सा के क्षेत्र में ये कदम मील का पत्थर बन सकता है. जानकारों का मानना है कि एैसा इसलिए संभव हो सका चूँकि सूबे के सेहत मंत्री अपने शहर से ही हैं और कमाल करने वाला नर्सिंग होम का मालिक उनकी नाक के बाहर झाँकता हुआ बाल है. अब यहां दिमाग खर्च करने की एक बात सामने आई है कि शहर में जब मात्र दो चीजें असली हैं तो उनमें प्राकृतिक प्रेम होना अनिवार्य है. इसके चलते अपराधी और शहर की पुलिस राम और भरत की जोड़ी में हैं. दोनों ही एक दूसरे के लिए कुछ भी त्यागने को तैयार हैं अगर थोड़े दिन और यही कथा चलतीे रही तो ये दोनों भी नकली बन जाएंगे. आखिर नक्कालपुर का कुछ असर तो होना ही चाहिए.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें