सोमवार, 27 सितंबर 2010

प्रथम पुरुष

भीख मांगना अपराध नहीं

डा. रमेश सिकरोरिया

भीख मांगना अपराध नहीं है. उसके लिये बच्चों या विकलांगों को पकड़ कर सजा देना उनके साथ अन्याय है. हमारे देश में इसे अपराध नहीं मानते थे. गौतम बुद्घ के अनुयायी तो भिक्षा मांग कर ही पेट भरते थे. अंग्रेजों ने १९२० में इसे अपराध की संज्ञा दी है और कानून बना कर रोका और हमने १९५९ इसे और विस्तृत किया इसमें ३ वर्ष से १० वर्ष तक की सजा का प्राविधान कर दिया. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गाना गाकर, नाचकर, भविष्य बताकर, सड़क पर कुछ बेच कर और अब तो वाहन साफ कर भी पैसा मांगना इस कानून की परिध में आता है. भीख मांगने का मुख्य कारण है मां-बाप का अपने बच्चों को पेट भरने के लिए विवश करना. यह भी हो सकता है कि उसके पास घर नहीं है, बच्चे का बाप नहीं है, वे बीमार हैं, विकलांग हंै या उन्हें नशे की आदत है या उनमें जिम्मेदारी का अभाव है, वे अपने बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य और पालन पोषण नहीं करते हैं या कर नहीं सकते हैं. तमाम बच्चे काम करना चाहते हैं. किसी भी प्रकार का कूड़े में से के टुकड़े उठाने का, चाय देने का इत्यादि. उनके लिये प्रत्येक शहर में स्कूल खेालने चाहिए, जहां रहने की व्यवस्था हो. शिक्षा तो उनका मौलिक अधिकार है.ऐसे परिवार जिनके पास रहने को घर नही है, फुटपाथ या अन्य जगह रहते हैं, उनमें से केवल ९ प्रतिशत भीख मांगते हंै, २३ प्रतिशत कुछ काम करते हंै, परन्तु उनको माह में केवल १५ दिन काम मिलता है. ३३ प्रतिशत को १६ से २५ दिन विकलांगों कुष्ठरोगियों या मानसिक रोगियों को कोई काम नहीं मिलता. ऐसे लोगों को विशेष तौर पर बच्चों को पकड़ करके सुधार ग्रह में बन्द करके हम क्या कर रहे हैं ? सुधार ग्रह तो जेल से भी बुरे हैं . हम ऐसा करके बच्चों का जीवन बरबाद कर रहे हैं. पाप कर रहे हैं. हमारा स्वार्थ उनको गरीब बने रहने, बिना घर के, भीख मांग कर जीने के लिए मजबूर कर रहा है ताकि हमारी सेवा के लिए वे उपलब्ध रहें.अंत में-विश्व में केवल तीन देश ऐसे हैं जिन पर विदेशियों ने कभी राज्य नहीं किया- १. अफ गानिस्तान२. चीन३. एविसीनिया1(लेखक पूर्व स्वास्थ निदेशक हैें)

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