शनिवार, 18 सितंबर 2010

चौथा कोना

ताकि कोई कुलटा न कहे

प्रमोद तिवारी

१४ सितम्बर को 'आई-नेक्स्टÓ का हिन्दी प्रेम देखा. कानपुर में कोई दूसरा अखबार इस दिन विशेष पर 'आई-नेक्स्टÓ की हिन्दी विषयक सामग्री के सामने टिकने वाला नहीं था. चौबीस पेज के अखबार में ११ पेज हिन्दी और हिन्दी दिवस को समर्पित थे. हर पृष्ठ के मथ्थे पर निज भाषा उन्नति का मुकुट शोभित था और इस विशेष प्रस्तुति पर समाचार-पत्र की ओर से प्रतिक्रिया भी आमंत्रित थी. दरअसल जो लोग 'आई-नेक्स्टÓ पढ़ते होंगे निश्चित ही उनमें इस अंक को देखकर तीखी प्रतिक्रिया ही हुई होगी. चूंकि मैं अखबारी लेखन के व्यवसाय का बंदा हूं इसलिए हर अखबार का मैं नियमित, गहरा पाठक भले न हूं लेकिन उस पर नजर तो रखता ही हूं. सो, तीखी.. बेहद तीखी... बल्कि तेजाबी प्रतिक्रिया हुई मेरे भीतर.. मेरी दृष्टि में निज भाषा भाषा उन्नति की बात करने का अधिकार इस समाचार-पत्र को है ही नहीं. जिस दिन से इस अखबार ने शहर में कदम रखा है हिन्दी का ही नहीं कुल 'भाषाÓ का कचरा कर रखा है. एक तो वैसे ही नयी पीढ़ी हिन्दी लिखने, बोलने और समझने में सामान्यत: गंभीर नहीं है, शुद्घ नहीं है, समृद्घ नहीं है ऊपर से इस अखबार ने शहर को संदेश दिया है कि आज के युवाओं को जरूरी नहीं है कि वह हिन्दी भाषा की शुचिता का ध्यान रखें. वह 'गड्ड-मड्डÓ सहज अभिव्यक्ति व हकलाती और अशुद्घ हिन्दी में गिरती-पड़ती अंग्रेजी का तड़का लगाकर अपनी श्रेष्ठता साबित कर सकता है. यह अखबार इसीतरह की हकलाती भाषा का इस्तेमाल भी करता है. रही बात निज भाषा उन्नति की तो यह अखबार भाषाई व्यभिचार का उदाहरण तो हो सकता है निज भाषा उन्नति का सदाचार इसके बूते की बात नहीं है. न मानें तो १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस विशेष अंक में ही प्रकाशित समाचारों व लेखों को पढ़ लें जैसे-'प्लास्टिक की बढ़ती डिमांड ने प्लास्टिक टेक्नोलॉजी में अच्छे करियर आम्प्शंस अवेलेबल कराए हैं. प्लास्टिक टेक्नोलॉजी बेसिकली केमिकल इंजीनियर प्लास्टिक से बनने वाले प्रोडक्ट्स के लिए रॉ-मटीरियल की प्रिपरेशन से लेकर प्रोडक्ट बनाने के पूरे प्रॉसेस को हैंडल करता है.Ó अब बताइये यह कौन सी भाषा है हिन्दी, अग्रेजी हिग्लिश या कनपुरिया... इसे क्या कहें..? मुझे तो हिन्दी दिवस पर 'आई-नेक्स्टÓ की सजी-धजी प्रस्तुति ऐसी लगी कि मानो किसी स्वच्छंद लोभी, कामी और कुलटा स्त्री ने करवा-चौथ के दिन सोलह श्रृंगार करके अपने सुहाग के लिये निर्जला व्रत रखा हो, पति की दीर्घायु की कामना की हो लेकिन उसे पता न हो कि उसका पति कौन है...? प्रश्न उठता है फिर उसने श्रंृगार किया ही क्यों..? व्रत रखा ही क्यों..? शायद इसलिए कि कोई उसे कुलटा न समझे.1

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