सोमवार, 13 सितंबर 2010

नारद डाट काम

दोगुनी रफ्तार

कमलेश त्रिपाठी

वैसे मैं बुजुर्गों का बहुत सम्मान करता हूँ, वो भी तहे दिल से लेकिन सठियाये लोगों पर मुझे बड़ी कोफ्त होती है.मेरा अपना मानना है कि इनके हाथ में सत्ता नहीं होनी चाहिए.हो सकता है कि मेरी इस बात से आप एकमत न हों.चूँकि कुछ लोग इस दुनिया में साठा को पाठा मानते हैं. इसीलिए अपने देश में 99.9 फीसदी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री वही हुये हैं जिनके दाँत और आँत दोनों ही शरीर से इस्तीफा दे चुके हैं.आगे चलते रहिये आप मेरी बात को मानने के लिए विवश हो जायेंगे.अभी हाल में प्रधानमंत्री जी कामनवेल्थ गेम की तैयारियों की हालत देखने गये थे. हालत उन्हें पतली लगी या मोटी ये तो रब जाने लेकिन बयान बड़ा गलत दे गये थे. कह गये कि दोगुनी रफ्तार से काम करें.हो सकता है ये बात उन्होंने वहाँ काम पर लगे मजदूरों का उत्साह बढ़ाने केे लिए कही हो लेकिन इसके बाद से कलमाड़ी की टीम डबल पावर से जुट गई है. अब वो पूरे राष्ट्रकुल खेलों को ही खा जायेंगे. पहले से कलमाड़ी टीम की रफ्तार खाने में वायुसेना के विमान जैसी रही है. इस बयान के बाद वो राकेट की स्पीड से खाना शुरू कर देंगे. मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री जी को अपने बयान में स्पष्ट कर देना चाहिये था कि यह बयान कलमाड़ी की सेना को छोड़कर और सबके लिए है. वैसे भी प्रधानमंत्री जी की टीम में खाने वालों की कमी कहाँ है? एक से एक धुरंधर देश को कच्चा चबाये जा रहे हैं.सब्जी मसाले से लेकर शक्कर तक सभी खा गये. पता नहीं कल आदमी भी खाने लगें. कुल मिलाकर प्राजी के इस बयान का मुझे उल्टा असर पड़ता दिखाई दे रहा है.खैर कोई बात नहीं .खूब खाओ अब्बा का माल है. तुम नहीं खाओगे तो क्या अमेरिका से लोग आयेंगे खाने के लिए. यह देश तुम्हें तुम्हारे बाप, दादाओं ने खाने के लिए ही सौंपा हैं. इतना खाओ कि पेट तो पेट आतें तक फट जायें. यह इस देश के लोगों की बदनसीबी नहीं तो और क्या है? जहाँ इन्सान का पेट न भर रहा हो वहाँ तुम इतना खा रहे हो कि पेट फटा जा रहा है.

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