सोमवार, 13 सितंबर 2010

काली पड़ गई चांदनी
प्रमोद तिवारी
कानपुर के चांदनी नर्सिंग में एक दलित किशोरी कविता अपनी टूटी टांग का इलाज कराने आती है. डाक्टर उसे 'आईसीयूÓ में भर्ती कर देते हैं. रात में कविता के साथ अस्पताल का एक वार्ड ब्वाय बलात्कार करता है. सुबह बवाल हो जाता है. नर्सिंग होमों में इसतरह के बवाल होते ही रहते हैं. पुलिस का काम होता है इन बवालों को शांत कराना. लेकिन यहां मामला बिगड़ गया. कविता के साथ छेड़छाड़, बलात्कार और फिर हत्या के आरोपों को मीडिया ने पचने नहीं दिया. पुलिस और अस्पताल प्रबंधन कविता और उसके घरवालों के आरेपों को इलाज का पैसा देने के लिए जवाबी दबाव की कार्रवाई मानकर चल रहे थे. लेकिन सब कुछ धरा का धरा रह गया जब 'कविताÓ के कपड़ों पर 'वीर्यÓ की मौजूदगी पाई गई.

कविता की कहानी हत्या और बलात्कार की कहानी नहीं है, यह कहानी है आज के 'सिस्टमÓ के साथ बलात्कार और हत्या की. यह तो कहो एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल नहीं माना वरना किसी को पता ही नहीं चलता कि चांदनी में क्या हुआ. मीडिया के कुछ रिपोर्टर लोग तक बजाय सी.सी कैमरे के फुटेज तलाशने, कविता के आरोपों की सच्चाई जानने, दोषियों को सामने लाने के इस चक्कर में रहे कि किसी तरह चैनलों पर खबर न चले. एक 'आपरेटरÓ ने तो घंटों एक चैनल को ही जाम रखा. कारण कि यह चैनल चांदनी नर्सिंगहोम के 'आईसीयूÓ में कविता के साथ छेड़छाड़ (तब तक बलात्कार की बात नहीं उठी थी) की घटना को बार-बार प्रसारित करने से बाज नहीं आ रहा था. फिर भी जुर्म जुर्म होता है, खून-खून होता है, वह सर चढ़कर बोलता है. किसी के चाहने न चाहने के बावजूद कविता के साथ घटा अपराध सभ्य, सुसंस्कृत और संभ्रांत कहे जाने वाले समाज के मुंह पर चढ़े नकाब को नोंच फेंकने में कामयाब रहा. अदालत आगे किसी को कुसुरवार माने या न माने लेकिन शहर की जनता ने जान लिया है कि कानपुर में चांदनी नर्सिंग में कविता के साथ किसी एक 'वहशीÓ ने बलात्कार नहीं किया बल्कि उसके साथ पुलिस, प्रशासन, अस्पताल प्रबंधन, साथी मरीज और यहां तक कि घर वाले शामिल थे. शायद इसीलिए कविता को सबने मिलकर मार-डाला. अगर कविता को जहर के इंजेक्शन नहीं ठोंके गये फिर तो निश्चित ही वह इतने ठेर सारे बलात्कारियों को देखकर दहशत से मर गई होगी. पुलिस तो समझ के ही बाहर हो गई है. घटना के एक हफ्ते बाद तक वह यह नहीं बता पा रही है कि सीसी कैमरे की वास्तविकता क्या है. रिकार्डिंग है कि नहीं. अगर २४ घंटे की रिकार्डिंग का ही सिस्टम है तो घटना के २४ घंटे के भीतर 'सीसी कैमरेÓ को कब्जे में न लेने का दोषी कौन है...? जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 'सीमेनÓ की मौजूदगी नहीं बताई गई तब तक पुलिस ने कविता के बयान और उसकी मौत के आधार पर जांच ही नहीं शुरू की. साक्ष्य ही नहीं जुटाये. उल्टा कविता के घर वाले दबाव में आकर भाग जाएं इसके लिए गिरफ्तार अभियुक्त और अस्पताल प्रबंधन को खुली छूट दी. दबंग अभियुक्त ने अस्पताल में खुली छूट गुंडई की. ऊपर से कविता के परिवारीजनों व तीमारदारों पर बवाल करने का मामला दर्ज कर लिया गया. इस पूरी घटना में अगर सर्वाधिक बलात्कारी भूमिका किसी की है तो वह है पुलिस. कविता की मौत के प्रश्न पर सर्वाधिक चौंका देने वाली पोस्टमार्टम रिपोर्ट एक ओर बलात्कार के संकेत देती है, लगभग पुष्टि सी करती है लेकिन मौत का कारण 'हड्डीÓ का टूटना ही बताती है. जबकि कविता की मौत में जहर के इंजेक्शन (प्राण लेवा) की बात हर कोने से उठी है. कविता ने कहा- ''चुप न रहने पर जहर का इंजेक्शन लगाने की धमकी दीÓÓ. गिरफ्तार अभियुक्त कह रहा है कि बलात्कार हास्पिटल के ही एक डाक्टर ने किया और जहर के इंजेक्शन लगाये दूसरे 'वार्ड ब्याज ने. अगर जहर के इंजेक्शन से मौत हुई तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जहर क्यों नहीं निकला. क्या यह तथ्य नहीं है कि अस्पताल वालों ने पुलिस के साथ-साथ पोस्टमार्टम को भी साधने की कोशिश की. कथित अभियुक्त तो यहां तक कह रहा है कि अस्पताल मालिक के घरवालों को एक लाख रुपये देकर जबरिया उसको फंसाया गया है. क्या 'राकेशÓ का यह बयान एक तथ्य नहीं है कि 'दामादÓ को बचाने में सास, ससुर ने पूराजोर लगाया.. वरना किसी कुकर्मी कर्मचारी के लिए अस्पताल मालिक अपना सर आरे के आगे क्यों देते...। अस्पताल मालिक के घरवालों को एक लाख रुपये देकर जबरिया उसको फंसाया गया है. क्या 'राकेशÓ का यह बयान एक तथ्य नहीं है कि 'दामादÓ को बचाने में सास, ससुर ने पूराजोर लगाया.. वरना किसी कुकर्मी कर्मचारी के लिए अस्पताल मालिक अपना सर आरे के आगे क्यों देते...।अस्पताल वाले कितने रसूकदार होते हैं इसका एक उदाहरण 'केडीएÓ की कार्रवाइयां है. जो लोग 'सील बंदÓ भवन में अस्पताल चला रहे हैं, एक 'आईएएसÓ दीपक कुमार (तत्कालीन केडीए उपाध्यक्ष) के कहने पर थाना पुलिस रिपोर्ट लिखकर कार्रवाई न कर रही हो, एक नर्स की रहस्यमय मौत पर परदा डालने में पहले भी कामयाब हो चुके हो उनके लिए दलित कविता की मौत और बलात्कार को पचाना कौन सा दूभर था. लेकिन इसबार धब्बा इतना बड़ा और गहरा था कि चांदनी काली पड़ गई. अगर कविता के साथ बलात्कार और हत्या की सघन और निष्पक्ष जांच हो जाए तो सबसे पहले स्थानीय पुलिस साक्ष्य नकारने की दोषी बनती है. और अंत में अगर एक लाख का कोई सौदा हुआ है तो कविता के मां-बाप भी घटना को गलत मोड़ देने के दोषी बनते हैं. इस एक नन्ही जान की तो 'दुनियाÓ दुश्मन दिखती है. कायदे से तो इस 'दुनियाÓ को ही सूली पर लटका देना चाहिए. लेकिन यह भी तो एक 'कविताÓ जैसी कविता ही है जिसका अंतत: बलात्कार ही होना है.1

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