सोमवार, 13 सितंबर 2010

प्रथमपुरुष

जादू ज्ञान है, शिक्षा है करिश्मा नहीं

डा. रमेश सिकरोरिया

भारत में २२ हजार पंजीकृत जादूगर हैं. जादूगर सम्राट पी० सी सरकार के बेटे पी०सी सरकार जूनियर और उनकी बेटी मनिका सरकार कोलकाता में ''जादू विश्वविद्यालयÓÓ २००९ में खोले देंगे . उनका कहना है जादू भी एक विद्या है एक ज्ञान है कोई करिश्मा नहीं है. प्रत्येक जादू से एक शिक्षा मिलती है आप कुछ सोचने को मजबूर होते हंै जादू आपको एक भ्रम में ले जाता है. आपको एक सुखद कल की आशा दिलाते हंै. आपको विश्वास दिलाते हैं कि आप कितनी भी खराब स्थिति में हों, कुछ भी सम्भव हो(चमत्कार- अद्भुत बात) उनके अनुसार राधा नाथ सिकंदर ने सबसे पहले माउंट ऐवरस्ट को ढंूढा अतएव उनका नाम होना चाहिए. गुरू रवीन्द्र नाथ टैगोर का व्यापक दृष्टिकोण देश के प्रति राष्ट्रीयता की भावना अच्छी है परन्तु विश्व के प्रति व्यक्ति के लिए मानवता उससे ऊपर है. कँाच के टुकड़ेे को हीरे के मूल से नहीं खरीदूंगा .यदि मेरा विश्वास विश्व के मानव में नहीं रहेगा तो मैं अन्दर से भूखा रहंूगा .मैं देश के प्रति राष्ट्रीयता को अपने ईश्वर को ढांकने नहीं दंूगा . यूरोप में जो राजनैतिक संस्कृति (स्भ्यता) पैदा हुई उसने दुनिया को जंगली पौधे की तरह ढकने की कोशिश की. अपनी अलगाववादी सोच से उसने अपने से भिन्न तमाम जातियों को हड़पने की कोशिश की .उन्होंने उनके तमाम साज के साधन और उनका भविष्य नष्ट किया या हड़प लिया .एक आदमखोर की तरह उसको भय था कि अन्य जातियँा उससे आगे न बढ़ जायें अतएव हमेशा उनको कमजोर बनाने की कोशिश की . टैगोर ने उनसे कहा क्या वे अपने आदर्शों का पालन कर रहे हैं? अपने लोगों के मन में दूसरों के प्रति क्रोध ,घृणा पैदा करके! ठीक है ऐसे लोगों को जागरूक करने की उनकी अज्ञानता मिटाने की परन्तु उनकी सीमायें अपने देश या जाति के बाहर पूरी मानव जाति के लिए होनी चाहिए. उनके लिए भी जिनकी सोच उनके विपरीत है .यदि सभी जातियँा या देश उनकी तरह सोचने लगें तो पूरे विश्व की सोच में समानता आ जाये और विश्व एक मशीन की तरह नीरस हो जायेगा.सोच हमेशा बदलती रहती है आवश्यकता है पूरी स्वतन्त्रता के साथ एक दूसरे के विचार का लेन- देन . हिंसा से तो हिंसा पैदा होती है जो एक बेवकूफी है. सोच की जबरदस्ती बदलने से सच को नहीं पाया जा सकता आतंक सच की मृत्यु कर देता है.उन्होंने कहा भारत हिन्दू का है मुसलमान का है या किसी और का है यह महत्वपूर्ण नहीं है, कोई जाति महत्वपूर्ण है अन्य जातियों से यह बेमानी है क्योंकि भगवान (ईश्वर) के बनाये हुए सभी मानव तमाम जातियों के हितों की रक्षा में जुटे हुए हैं. यही ईश्वर की स्थायी धरोहर है हमारा अहं सत्य और असत्य को समझने में भूल करता है. स्थायी सभ्यता की जगह अस्थाई सभ्यता का निर्माण कराना चाहता है .सरकार बार बार सादगी की बात करती है. सभी मंत्रालयों से कहती है खर्च कम करे बेफिजूली बिल्कुल न करे परन्तु सरकार के खर्चों में महसूस होने वाली कमी नहीं दिख रही है.मंत्रियों और अधिकारियों के भ्रमण के लिये धन राशि २००७-०८ की धनराशि के दुगनी करी दी ७५.५० करोड़ से १५१ करोड़. गैर योजना पर ५ करोड़ खर्च होते हैं ७२.३८८ करोड़ रूपय की सबसिडी (राहत) दी जाती है बड़ी राहत ६६.५३७ करोड़ २८२९ करोड़ ब्याज की ९५८ करोड़ डाक (पोस्टल) पर २०६४रू० अन्य प्रकार की सेवाओं पर आने वाली सबसिडी उसमें शामिल नहीं हैं. इस प्रकार की सेवाओं पर आने वाली सबसिडी उसमें शामिल नहीं है.सार्वजनिक उद्यम या संस्थाओं पर २७१२० करोड़ रूपय व्यय होते हैं ६८४ करोड़ गैर योजना ग्रंाट एवं कर्ज सरकार को नहीं मिलता . यह संस्थायें बाजार से ४१८१ करोड़ उगाहती होती हैं. टैक्स में राहत देने से २७८६६४४ करोड़ रूपये का बोझ पड़ता है .योजनाओं को ठीक से न बनाने और समय से न पूरा करने से ९५९१३ करोड़ की जगह १४२२.२२७ करोड़ का व्यय हुआ ४८ अधिक ८९७ में से २७६ योजनाओं में ऐसा हुआ ३०८ योजनायें समय से पूरी नहीं हुईं .-आवश्यक है सरकार का यह जानना कि वह -१-क्या करे और उसके लिए धन व्यय करे २-क्या न करे और उसके लिए धन व्यय करे ३-क्या न करे और उसके लिए धन व्यय न करे उसे प्रति वर्ष सभी कार्यक्रमों का लेखा -जोखा करना चाहिए और निर्णय लेना चाहिए कि कौन कौन से खर्चे बन्द करे जायें और इसकी प्रधानमंत्री के कार्यालय को जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए .आम जनता को भी यह विवरण उपलब्ध कराया जाये क्योंकि वह टैक्स दे रहे हैं और धन का व्यय उसके लिये किया जा रहा है.1(लेखक पूर्व स्वास्थ निदेशक हैें)

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