बुधवार, 3 फ़रवरी 2010


सी.ओ.खाता है...

पिछले हफ्ते एक खबर आंखों के नीचे से निकली. उसमें एक सी.ओ. साहब के होटल में खाने और भुगतान मांगने पर गुल्लक साथ ले जाने का विस्तृत वर्णन किया गया था. इस न्यूज का मुझ पर कोई असर नही पड़ा. आखिर आज के जमाने में खाता कौन नहीं है? बगैर दांत वालों की बात जुदा है. ये वो लोग हैं जहाँखाने का कोई जुगाड़ नहीं है. पुलिस के लोग तो जमाने से जीव खाने के लिए ही बने हैं, बिना खाये कोई रह भी नहीं सकता है. खाने के मामले में अपने शहर के केसा वाले अवस्थी जी ने कमाल कर दिया. बाबू होकर भी चीफ इंजीनियर की तरह खाया. हाँ यहां एक बात लिखने लायक जरूर है, कुछ लोगों को खाने का असर नहीें होता है. खाने के साथ चप-चप और चपड़-चपड़ की ध्वनियां निकालते हैं. बस यही लोग पकड़े जाते, खाने वाले जब-जब, खुदा गवाह है और इतिहास भी हमेशा पिलाकर रहे हैं सेल्स टैक्स आफिस के बगल वाला एक इंजीनियर ऐसे ही बच गया और आज भी उसी कुर्सी पे घरा हुआ है. अब इस समय खूब चबा-चबा के खा रहा है. जिससे बदहजमी भी न हो. अभी हाल में एक नेता जी ने बजट का साठ फीसदी अपने पेट में रख लिया. अब फूला हुआ पेट लिये सीबीआई के इर्द-गिर्द चक्कर खा रहे हंै. अब जमाना बहुत बदल गया है रेलगाडिय़ां आदमी खा रही हैं लेकिन आदमी रेलगाड़ी नहीं खा सकता. दरअसल खाने का अपना अलग मनोविज्ञान है. कुछ लोग दाल में नमक खाते हैं तो कुछ नमक में दाल. जब दाल थाली से बाहर चल रही हो तो केवल नमक खाना मजबूरी है. वैसे भी नमक से नमक नहीं खाया जा सकता. सी.ओ. साहब गुल्लक अपने साथ इसलिए ले गये कि खाने के बाद नकद दक्षिणा देने का पुराना दस्तूर है. होटल मालिक संस्कारी हंै. इसके लिये सी.ओ साहब बेचारे क्या कर सकते हैं?पत्नी (पति से) तुम मुझे कितना प्यार करते हो.पति-शाहजहां जितना.पत्नी-मेरे मरने के बाद ताजमहल बनवा देना. पति-मैने प्लाट खरीद लिया है, देरी तो तुम कर रही हो.1

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