शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

भाजपा में उमा की वापसी तय

मोहन भागवत और नितिन गडकरी बुधवार की शाम की शाम नागपुर में थे. अगले दिन गुरुवार को उमा भारती आईं. दोनों से उमा भारती ने संघ मुख्यालय में मुलाकात की. हालांकि संघ और भाजपा ने मुलाकात की औपचारिक पुष्टि नहीं की. कानपुर में उमा भारती के परिवार सरीखे निकट सूत्रों की मानें तो भाजपा में उमा की वापसी करीब तय हो चुकी है.

विशेष संवाददाता

उमा भारती भाजपा में वापस आ रही हैं. गुरुवार को दिन में नागपुर में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत से उमा भारती की गुप्त मुलाकात के बाद उमा भारती की भाजपा में वापसी तय मानी जा रही है. हो सकता है उनकी वापसी की तिथि भी तय हो गयी हो. सूत्रों के अनुसार इंदौर में भाजपा कार्यकारिणी के आखिरी दिन उनकी वापसी की घोषणा होने की संभावना है.मोहन भागवत और नितिन गडकरी बुधवार की शाम की शाम नागपुर में थे. अगले दिन गुरुवार को उमा भारती आईं. दोनों से उमा भारती ने संघ मुख्यालय में मुलाकात की. हालांकि संघ और भाजपा ने मुलाकात की औपचारिक पुष्टि नहीं की. कानपुर में उमा भारती के परिवार सरीखे निकट सूत्रों की मानें तो भाजपा में उमा की वापसी करीब तय हो चुकी है. संभावना है कि 19 फरवरी तक उमा भाजपा में होगी. इसको लेकर औपचारिक रूप से इंदौर में होने वाली पार्टी के अधिवेशन में आम सहमति बनाई जाएगी. अधिवेशन के अंतिम दिन उमा को पार्टी में वापस लेने की घोषणा हो सकती है.वैसे भी भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कई बार यह संकेत दे चुके हैं कि किन्हीं वजहों से पार्टी से बाहर गए जनाधार वाले दिग्गज नेताओं की वह घर वापसी चाहते हैं. उमा भारती के साथ कल्याण सिंह का नाम जनाधार वाले नेताओं में आता है और उमा भारती तथा कल्याण सिंह में बनती भी खूब है इसलिए यह भी सम्भव है कि उमा की वापसी के बाद कल्याण सिंह के लिए भी भाजपा बानक बनायें. जहां तक कल्याण सिंह की मर्जी की बात है वह कह जरूर रहे हैं कि किसी भी कीमत पर अब भाजपा में वे वापस नहीं जायेंगे लेकिन राजनीति में इसतरह के बयानों के हमेशा की कई-कई अर्थ निकले हैं. इस बार भी अगर कहे के ठीक उल्टा घटित हो तो चौंकने की कोई बात नहीं. उमा भारती पहले भी गुपचुप तरीके से संघ मुख्यालय आ चुकी हैं. हालांकि तब भी उन्होंने कहा था कि वे वर्धा के एक गांव में पारिवारिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आई थीं. उसी दिन संसद में लिबरहान आयोग की रपट संसद में पेश हुई थी. उसमें उमा भारती का नाम था. तब उमा ने कहा था कि आयोग की रपट में नाम होने की खबर सुन कर वे नागपुर रुक गईं थी और अपना पक्ष रखने के लिए मीडिया से बातचीत की. तब भी सूत्रों ने कहा था कि वे गुपचुप तरीके से संघ मुख्यालय घूम आई थीं.पुरानी कहावत है-मरता क्या न करता? अपनी अलग पार्टी बनाकर उमा कुछ नहीं कर पाईं. भाजपा से अलग होने के बाद उनको अपने घटते वजूद का अहसास हो चुका है. पहले प्रह्लाद पटेल का सहारा था. अब उनका साथ भी पूरी तरह से छूट चुका है. लिहाजा, उमा भारती के सामने भाजपा में वापसी के आलावा दूसरा कोई विकल्प बचा भी नहीं है.

राष्ट्रद्रोहियों को पहले भी जाता रहा है पैसा

हेलो संवाददाता

नक्सली संगठनों को आर्थिक मदद कानपुर के लिए कोई चौंकाने वाली खबर नहीं है. बीती शताब्दी के अंतिम दशक में उल्फा उग्रवादियों को भी यहां से पैसा और 'बारूदÓ की आपूर्ति उजागर हुई थी. तब से अब तक एक बार नहीं कई बार पूर्वाेत्तर राज्य के चरमपंथियों को पैसा और बारूद की कनपुरिया आपूर्ति की खबरें आईं लेकिन जितनी रफ्तार से आईं उतनी ही रफ्तार से वापस हो गईं. क्योंकि पैसा देने वाले लोग कोई साधारण लोग नहीं थे साथ ही मजबूर भी थे.जिन दिनों पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था कानपुर सिख आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने वाले प्रमुख नगरों में शुमार किया जाता था. ऐसे ही मन्दिर-मस्जिद विवाद के दौरान साधु-संतो, मुल्ला-मौलानाओं, हिन्दु और मुस्लिम उग्रवादी संगठनों को शहर से भरपूर आर्थिक मदद मिली. मुस्लिम उग्र संगठनों के लिए तो हवाला के जरिएपाकिस्तान और दुबई में बैठे आतताइयों को पैसा पहुंचाया गया. यह कोई नई जानकारी नहीं है. देश की हर तरह की खुफिया को पता है और सुरक्षा एजेंसियां भी इस तथ्य से वाकिफ हैं.पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़े स्थानीय व्यापारियों का नक्सलियों को पैसा पहुंचाना ठीक वैसे ही सामान्य हो चला है जैसे व्यापार करते वक्त उन दिनों सेल्स टैक्स, कस्टम, पुलिस, लेबर डिपार्टमेंट और बिजली आदि विभागों को बंधी-बंधाई घूस दी जाती है. शहर में सिमी का तो कितना बड़ा संजाल निकला था? जिसका खामियाजा शहर ने दंगे के रूप में भोगा लेकिन बावजूद इसके आज दिन तक एक भी कारोबारी या पूंजीपति चिन्हित करके दंडित नहीं किया गया जिसने देश और समाज तोडऩे वाली ताकतों को मजबूत करने में आर्थिक मदद की.यह व्यापार की दुनिया भी खूब है. यह बड़े उद्यमी भी ऐसे ही बड़े नहीं हुए हैं. इन दिनों संकट में फंसे प्रवचनकारी बाबा के कनपुरिया उद्यमी एजेंट ने बाबा को नब्बे लाख की चोट दे दी. बाबा जी फिलहाल चोट सहलाने की भी स्थिति में नहीं हैं.

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