शनिवार, 20 फ़रवरी 2010


हजारों आदमी

भूख और

बीमारी

से मर रहे हैं


इन्होंने तीसरी दुनिया के देशों में क्या किया यह तो अब उजागर हो गया है इन्होंने कोरिया में, इंडोचायना में मध्य अमरीका में इराक में क्या किया सुहारतो, मोबूतो, पिनोचट अरजन्टायना, गीयटेमलान, ब्राजिम, दक्षिणी अफरीका, अंगोला, मोजामबीक या इजराइल में क्या किया. हिरोशिमा ,कौन्गो, बेयतनाम, चिली या अरब में क्या कर रहे है चीन, भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान मे इरान में क्या करना चाहिए. क्यूबा में या रूस में यूरोप के अन्य देशों में इनकी कार्यवाही क्या मानवहित वादी है अमरीका, फ्रांस, इटली, कनाडा, जापान, ब्राजील, जर्मनी, इजराइल इत्यादि मानवहित की दुहाई देकर करोड़ों लोगों के मानवाधिकार छीन रहे हैं. वे कहते हैं जो उनकी सोच है उनका स्वार्थ है वही मानवहितवाद है जो उनका विरोध करेगा उसको नष्ट करने का उनका अधिकार है. वे जानते हैं उनका उच्च स्तर का रहन सहन तीसरी दुनिया के देशो को विकसित न होने दिया जाये तभी तक है .यदि वे विकसित हो गये तो उनकी दादागिरी नहीं चलेगी. इसके लिये अब तो वे अन्तरिक्ष पर भी अपना अधिकार जमाना चाहते है और ऐसा कर रहे है प्रश्न उठता है कि तीसरी दुनिया के देश क्या करे वे विश्वीकरण के खिलाफ और विश्व में सबको न्याय के लिए कैसे आन्दोलन चलाये क्योंकि अमरीका और उनके भिन्न देश वही करेंगे जो एलैन्डे, कैस्ट्रो, मुसाद्दिक, लियूमोम्बा, अरबन्ज, गौलार्ट इत्यादि के साथ किया अर्थात आर्थिक प्रतिंबध, आन्तरिक अशान्ति सामाजिक, धर्मिक या जातिवाद फैलाकर और सेना द्वारा सरकार पलटा देंगे. उन्होंने निकारगुआ में सन्डनिस्ट्रा को इसी तरह हटाना कोन्ट्रास की मदद करके. तीसरी दुनिया की तमाम सेनाओं को अमरीका की मदद मिलती है. इस काम के लिए बेनीजुएला में हियूगोशावेज सामाजिक सुधारों को साम्राज्यवाद विरोधी मुहिम से जोड़कर अभी तक डटे हुए हंै. उदारवादी विचारधारा के अनुसार तीन तरह की सामाजिक व्यवस्था सम्भव है-१-सभी की सभी से लड़ाई २-एक व्यक्ति जो शक्ति से शांति स्थापित करे३-कानून पर आधारित जनतंत्र जो कम बुरा है तो मानवअधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए क्या करना चाहिए. पहली बात जो समझने की है हम विश्व की प्रत्येक समस्या का समाधान नहीं कर सकते हैं परन्तु हमें ध्यान में रखना होगा. विश्व के तमाम देशों के आपसी संबंध वे शक्तियां जो हमारी कार्यवाही निर्धारित करती है और वे स्थान जहां समस्यायें होती हैं परन्तु दो बातें स्पष्ट है एक हम चुपचाप नहीं बैठे रह सकते. दूसरी हमारा हस्तक्षेप कम से कम हो सेना का तो कभी नहीं. हमको यह भी नहीं सोचना चाहिए कि हम इन समस्याओं के लिए जिम्मेदार है पुरानी बातों को भुलाना होगा. हम तीसरी दुनिया के देशों को आर्थिक मदद कर सकते हैं उनके कर्ज माफ करके, कच्चे माल की उचित कीमत देकर दवाये इत्यादि सस्ती देकर. इन देशो में हजारों आदमी भूख से बीमारी से मर रहे हंै. प्रतिदिन केरल और क्युबा ने साबित कर दिया है. गरीबी में भी अच्छी स्वास्थ्य सेवायें दी जा सकती हैं. इन देशों में जनतंत्र के नाम पर लगाया जाने वाला धन मानवहित मे लगेगा. हस्तक्षेप के स्थान पर सहयोग करें कोई भी देश इसका विरेाध नहीं करेगा. सांस्कृतिक बदलाव को अहंकार से नहीं संवेदना से लाये. तीसरी दुनिया का संगीत, चित्र, कला, भोजन और उनके बनाने की विधियां इत्यादि पश्चिमी देशों में अधिक अपनायी जा रही है. उनको इन देशों के लोगों और नेताओं की राजनैतिक सोच और उनके आन्दोलनों का गहन अध्ययन करना होगा. मीडिया द्वारा दी जा रही सूचनाओं की वास्तविकता और सच्चाई परखना होगी. मीडिया को अन्तर्राष्ट्रीय नियमों और देशों की स्वतंत्रता का आदर करना होगा. अनैतिकता को मानवहित का जामा पहनाने से रोकना होगा. हमको दूसरे पक्ष या विरोधियों से बात करना चाहिए यदि हमारा निर्णय न्यायसंगत है और उनके हित में है सेना के हस्तक्षेप से तो जीने का ही अधिकार छिन जाता है अपनी सुविधाओं और स्वार्थ के लिए दूसरों के मानव अधिकार न छीनें.1(लेखक पूर्व स्वास्थ्य निदेशक हैं)

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