शनिवार, 6 फ़रवरी 2010



बांध बनाना

भी आवश्यक है...


बाढ़ से इतनी तबाही होती है कि देश में इसे कुछ आंकड़े आपकी आंखें खोल देंगे. हर वर्ष लगभग-१.१५३२ व्यक्ति मरते हैं.२.१०,००० जानवर मरते हैं.३.९३८ करोड़ रुपये की फसल, घर-बार इत्यादि नष्ट होती है.४.८० लाख हेक्टेयर भूमि में बाढ़ का पानी भर जाता है.५.३७ लाख हेक्टेयर पर खड़ी फसल नष्ट हो जाती है.६.४०० लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता है.७.३२० लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से बचाया जा सकता है.बाढ़ के क्या कारण हैं. एक मत है कि बाढ़ के कारण बड़े-बड़े बांध बनाकर उनमें अथाह पानी इक_ा करना है क्योंकि हम नदियों के स्वाभाविक बहाव को जो समुद्र की ओर होता है में बाधा डालते हैं या रोकते हैं. इसके कारण नदी में उल्टे बहाव का इतना दबाव होता है कि वे दोनों किनारे तोड़ कर बाढ़ पैदा कर देती है यदि समय से पूर्व बाधा में पानी बहाकर कम कर दिया जाये तो इस स्थिति से बचा जा सकता है. नदियों के दोनों किनारों पर तरह-तरह के निर्माण करके या नदियों में पाइप डालकर पानी खींचते हैं और बाढ़ को नियंत्रित करते हैं. इसी प्रकार पदी में नालों, फैक्ट्रियों का मैला या अन्य वस्तुएं (मूर्तियां, शव, कपड़े इत्यादि) बहाकर उसमें सिल्ट जमा होने देते हैं. जिससे उनकी गहराई कम होती है और बाढ़ की स्थिति जल्दी आ जाती है. विकास के नाम पर नदियों के किनारे मन्दिर, मेट्रो स्टेशन, फ्लाई ओवर, पार्किंग प्लेस, स्पोर्ट स्टेडियम या अन्य प्रकार की इमारतें बाढ़ को नियंत्रण देना है. अब तो बाडमेर(रेगिस्तान) में भी बाढ़ आ जाती है. देश का कोई भाग चाहे वह पहाड़ पर (हिमांचल, आसाम) के मैदान में, (उ०प्र०, बिहार, पं०बंगाल, हरियाणा) उत्तराखण्ड या पठार में (मध्य प्रदेश, झारखण्ड) रेगिस्तान (राजस्थान) शहर हो (दिल्ली), आंध्र प्रदेश हो कर्नाटक हो, उड़ीसा हो, बाढ़ पहुंच ही जाती है. हमीं ने बाढ़ के कारणों का निर्माण किया है. हमीं को उन्हें मिटाना होगा. जलवायु परिवर्तन भी इसका कारण है. नदियों को उनके किनारों को सुरक्षित रखना होगा अन्यथा हम बाढ़ की चपेट में आयेंगे.बांध बनाना भी आवश्यक है क्योंकि उनसे नहरें निकालकर सिंचाई का ऐसा प्रबंध करना होगा कि हमारी खेती मानसून की बारिस पर निर्भर न रहे परंतु बांधों में इक_े पानी की मात्रा का इस तरह प्रबंध करना होगा कि उनसे पानी छोडऩे पर बाढ़ आ जाये. हरिद्वार में गंगा नहर के लिए बांध बनाया है परंतु पूरी गंगा को नहीं रोका है. इससे थोड़ा-थोड़ा पानी निकलता रहता है. इस तरह नदियों में पानी भी रहेगा. नेपाल या पहाड़ों से निकलने वाली नदियों में बाढ़ आने की समस्या के लिए विशेषज्ञों की राय से योजना बनानी पड़ेगी. बांधों में भी अब पानी भरने के लिए उनमें प्लास्टिक या अन्य तरह के बहुत बड़े विशालकाय खोल बिछाते हैं जिनमें पानी की मात्रा पर नियंत्रण रखा जा सकता है और पानी बहाना नहीं पड़ता है. नदियों के किनारे पर्यटन स्थल या अन्य इमारतें बनेंगी ही परंतु वे कैसीे बनाई जाये उनसे नदी के बहाव में कोई रुकावट न हो और इनको भी हानि न हो. इसके लिए वास्तुकला विशेषज्ञों के द्वारा एक मॉडल निर्धारित किया जाये. नदियों में शव बहाना फैक्ट्रियों का दूषित पानी या मैला डालने पर रोक हो. जानवरों का नहलाना, मनुष्यों के नहाने या कपड़े धोने पर नियम बनें ताकि साबुन इत्यादि का उपयोग न हो. जिस गांव या शहर के पास से नदी जा रही हो वहां के नगर निगम, महापालिका, पालिका या ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी होनी चाहिए. नदी के देखभाल की उन्हें अधिकार होना चाहिए कि इसके लिए वे टैक्स लगाकर धन का प्रबंध कर सकें. यह अनुचित नहीं होगा क्योंकि तीर्थ स्थानों पर टोल टैक्स लगता है, राष्ट्रीय मार्गों पर लगता है. घरों में तो वाटर टैक्स देते हैं. पानी और हवा अमृत है परंतु यदि इनसे छेड़छाड़ करेंगे या दूषित करेंगे ते वे जहर बन जायेंगी.1 (लेखक पूर्व स्वास्थ्य निदेशक हैं)

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