सोमवार, 21 दिसंबर 2009


मोहन के बहाने

'दोहन-भागवत'

प्रमोद तिवारी
शादी-ब्याह के धूम-धड़ाके में एक क्रांतिकारी खबर आई और चुपचाच चली गई. जितना शोर इस खबर का होना चाहिए, नहीं हुआ. यह खबर आई थी भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व संयोजक एवं पूर्व एमएलसी तनवीर हैदर उस्मानी के बेटे के प्र्रीतिभोज के पाण्डाल से.जहां तनवीर ने बेटे और बहू के आशीष समारोह में आया कुल नकद व्यवहार संघ प्रमुख मोहन भागवत को यह कहते हुए समर्पित कर दिया कि-यह समाज से प्राप्त धन है, संघ इसे सेवा के माध्यम से समाज को वापस कर दे..! एक रसूक वाले राजनीतिक व पत्रकार का यह कदम उन तमाम 'लोभी बड़कोंÓ के लिए प्रेरणा का सबब बन सकता है जो पारिवारिक समारोहों में अपने पूरे के पूरे समाज का नकद दोहन कर लेते हैं.

तनवीर हैदर उस्मानी आज राजनीतिक हैं लेकिन इसके पहले वह खांटी पत्रकार थे, पत्रकारों और राजनीतिकों के यहां विभिन्न समारोहों में व्यवहार के नाम पर आया धन और उपहार हमेशा से चर्चा का विषय रहा है. सिर्फ नेता और पत्रकार ही नहीं अब इसमें अधिकारी और स्थापित गुण्डे (माफिया) भी शामिल हो चुके हैं. जिसके यहां जितना व्यवहार वह उतना ही बड़ा नेता, पत्रकार, अधिकारी या गुण्डा.व्यवहार का लेन-देन कोई सामाजिक नियम नहीं है बल्कि चलन है. चलन भी ऐसा है कि नियति सही हो तो पुण्य है वरना इससे बड़ा सार्वजनिक भ्रष्टाचार का जश्नी तमाशा कोई दूसरा नहीं हो सकता है. मुख्यमंत्री मायावती का जन्मदिन और जन्मदिन के नाम पर आने वाले चंदे ने क्या-क्या गुल खिलाये पूरा प्रदेश जानता है. एक इंजीनियर की हत्या हो गई. एक विधायक जेल भुगत रहा है. और जितने ही भ्रष्टाचारी जन्मदिन पर भारी-भरकम भेंटे चढ़ाकर विधायक, सांसद बन गए उन्होंने जनता को खुले आम लूट लिया. भारतीय जनता पार्टी में ही प्रदेश स्तर पर स्थापित एक शिखर पुरुष के यहां गत् वर्षोंमें उनकी बेटी की शादी हुई थी. शादी में शरीक लोगों का मानना था कि समारोह में जितना पैसा और उपहारी वस्तुएं आईं उससे एक शादी नहीं बल्कि पीढिय़ों की शादियों का इंतजाम हो सकता है. बेटी की शादी ने बाप को 'कुबेरÓ बना दिया. उन दिनों प्रदेश में भाजपा 'सत्ताÓ का पर्याय थी. अभी इसी सहालग में कानपुर में तैनात रहे एक वरिष्ठ आईपीएस की बेटी की शादी लखनऊ में हुई. कानपुर से बड़े-बड़े धन्ना सेठों का वहां जाना हुआ महंगे-कीमती उपहारों व लिफाफों के साथ. यहां शहर में सपा सरकार में तो एक पुलिस अधिकारी ऐसे तैनात रहे जिनके कार्यकाल में हर छ: माह में उनके गांव-घर में कोई न कोई शादी या भण्डारा जमा हुआ. महोदय अपने स्टॉफ से शहर के उद्यमियों की सूची बनवाकर रखे हुए थे. सबको आमंत्रित करते हैं. लोग काम-धंधा छोड़कर कहां जाते.इसलिए यहीं उनके निवास पर ही व्यवहार (नकद या सोना, चांदी) पहुंचा देते थे. इस अधिकारी के स्टॉफ वाले बाकायदा 'व्यवहारÓ का तकादा भी करते थे. 'व्यवहारÓ में क्या चाहिए यह फरमाइश भी होती थी. चूंकि यह अधिकारी अपने व्यवहार के कारण पैसे वालों में चर्चित रहा है इसलिए नाम खोलने की क्या जरूरत..! फिर यह कोई अकेला ऐसा अधिकारी तो था नहीं. अपने शहर में पत्रकारों के बीच भी समारोहों में आने वाला व्यवहार आपसी होड़ और हैसियत का मयार माना जाता है. कुछ पत्रकार तो हर वर्ष किसी न किसी बहाने 'कार्डÓ छपवाकर भीड़ जरूर जुटाते हैं. जन्मदिन के बहाने, मूलशांति, कर्णछेदन, नामकरण, यज्ञोपवीत, शादी के बहाने, नहीं और कुछ तो अपने जन्मदिन के हरी बहाने..उन्हें भोज करना ही करना है. और भोज स्थल पर व्यवहार (नकद) लिखने वालों की मेजें (काउंटर) लगनी ही लगनी है. कह सकते हैं कि यह एक वार्षिक आय का जरिया भी है. एक-दो नहीं दर्जनों उदाहरण हर वर्ष शहर के सामने आते हैं. जहां हजारों की भीड़ व्यवहार लिखाने में जुटती है. नेताओं के यहां तो आधा-आधा दर्जन टेबलें (काउंटर) व्यवहार लिखने वालों के लिए लगाई जाती है. भले ही भोज में भोजन की पर्याप्त व्यवस्था हो अथवा नहीं.'व्यवहारÓ लेना या देना कोई पाप या अपराध नहीं है. लेकिन 'व्यवहारÓ व्यवहार होता है. यह एक स्तर के संबंधों के बीच का लेन-देन है. बड़े खर्चीले अवसरों पर व्यवहार में आने वाले उपहार व रकमे बड़ी राहतें लेकर भी आती है. लेकिन जब बिन जान-पहचान अंधा धुंध कार्ड बटाई करके या चुन-चुनकर धनाड्यों को आमंत्रित करके चंदा या रंगदारी कर वसूली जैसी मुद्रा में समारोहों के पाण्डाल कैस और काइंड से भरे जाते हैं तो यह पद और प्रभाव का भ्रष्ट दोहन ही होता है. यह भ्रष्ट दोहन कालांतर में भ्रष्टाचार को महिमा मण्डित करता है.

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