सोमवार, 21 दिसंबर 2009

राकेश जैन से मिली प्रेरणा-तनवीर


तनवीर हैदर उस्मानी कहते हैं कि समाज में जहां कहीं भी रचनात्मक पहल दिखाई दे उसका अनुसरण अवश्य करना चाहिए. विशेष रूप से राजनीतिकों को अवश्य ही क्योंकि उनके अचरण उदाहरण बनते हैं. लोग उसका अनुसरण करते हैं. मैंने यह प्रेरणा प्रांत प्रचारण एवं भाजपा के सहमंत्री (संगठन) राकेश जैन से ली. पिछले दिनों बागपत में श्री जैन की भतीजी की शादी में जाना हुआ था. वहां मैंने व्यवहार किया और वापस कानपुर लौट आया. शादी के कोई डेढ़ महीने बाद राकेश जी का कानपुर प्रवास हुआ. राकेश जी जब कानपुर आये तो उन्होंने मुझे एक धन्यवाद पत्र तथा उसमें वनवासी कल्याण में लगी एक संस्था की रशीद थी. पत्र पढ़कर मैं अभिभूत हो गया. जैन जी ने मेरे व्यवहार की राशि मय नाम व पते के वनवासी कल्याण के लिए संस्था को भेज दी थी. संस्था ने उक्त व्यवहार राशि की रशीद भेजी थी. मुझे लगा कि यह साधारण पहल नहीं मेरे बेटे अशद और बहू बसरा का निकाह तय था. मैंने तभी निश्चय कर लिया था कि अपने यहां वलीमे (प्रीतिभोज) में मुझे जो भी उपहार (नकद) मिलेगा उसे में समान हित में दान कर दूंगा.ईमानदारी की बात तो यह है कि मेरा निर्णय पूर्ण निश्चित था लेकिन उसका क्रियान्वयन अकस्मात ही हुआ. जब माननीय संघ चालक भागवत जी ने बेटे को शाल और बेटी को आशीर्वाद स्वरूप चुन्नी पहनाई तो मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठा. मैं मुसलिम समाज का बंदा हूं. मूलत: भावुक भी हूं. मैंने भी भागवत जी को सम्मान में शाल उठाई लेकिन मन भरा नहीं तो अचानक ही बहू, बेटे, मेरे और मेरी पत्नी के पास तब तक व्यवहार के जितने लिफाफे आये थे मैंने उन्हें बड़े झोले भरकर संघ प्रमुख को सौप दिया. संघ प्रमुख ने कहा कि यह क्या है तनवीर जी...?मेरे मुंह बरबस निकल पड़ा कि समाज ने मुझे जो दिया है मैं संघ के माध्यम से उसे पुन: समाज को लौटाना चाहता हूं. मैं हूं जरूर मुसलमान लेकिन मैं प्रारम्भ से ही संघ का सेवक रहा हूं. मुझे पता है संघ समाज हित में धन जैसा सदपयोग कर सकता है दूसरा कोई और नहीं...! न ही संस्था, न ही व्यक्ति.

मैं तो डर गयी थी

राकेश जैन की भतीजी की शादी में ंविधायिका प्रेमलता कटियार भी गई थी. उन्होंने बताया कि जैन साहब का लिफाफा जब मेरे पास आया और मैंने उसे खोला तो देखा कि यह तो रसीद उस पैसे की जो मैं उनकी भतीजी की शादी में व्यवहार में दे आई थी. फिर राकेश जी ने यह रशीद क्यों भेज दी. मेरा व्यवहार या आशीष (बेटी का) क्यों नहीं स्वीकार किया. सच पूछो तो मैं घबरा गई. मैंने बागपत गये अन्य साकियों से सम्पर्क किया तो पता चला कि राकेश जैन जी ने पूरा व्यवहार वनवासी कल्याण में लगी संस्था को भिजवा दिया. संस्था ने प्रत्येक व्यवहारी की रशीद बना दी. रशीद के साथ राकेश जी ने सभी को धन्यवाद पत्र भेज दिया. वाकई विलक्षण अनुकरणीय पहल है यह. तनवीर जी ने इसका अनुसरण कर और लोगों को भी विचार का अवसर दिया है.

'व्यवहार' कुप्रथा नहीं सहयोग है

सामाजिक चिंतन

बेटी की शादी में नकद या उपहार, व्यवहार के रूप में ग्रहण करने की परम्परा एक स्वस्थ्य सामाजिक चिंतन के बाद शुरू हुई थी. एक व्यक्ति पूरे जीवन अपने परिवार, नाते-रिश्तेदार और समाज में समय-समय व्यवहार करता हुआ आगे बढ़ता है. यह व्यवहार जब उसे अपने यहां समारोह में वापस मिलता है तो खर्च के वक्त धन की स्वाभाविक व्यवस्था हो जाती है. यह व्यवहार उसके लिए कितनी बड़ी राहत होती है. यह 'व्यवहारÓ के चलन की निरंतरता से प्रमाणित होता है. आज एक व्यक्ति किसी की बेटी की शादी में जैसा व्यवहार (खर्च) करता है प्रतिउत्तर मे उसे वैसा ही व्यवहार वापस मिलता है. व्यवहार का चलन कोई सामाजिक कुप्रथा नहीं है बल्कि यह सामाजिक सहयोग का पावन विधान है. गांवों में आज भी इसी व्यवहार की दम पर गरीबों की बेटियों के हाथ पीले होते हैं. लेकिन जिस परिपेक्ष्य में आपने यह सवाल पूछा है तो व्यवहार की व्यवहारिकता को समझना ही होगा. अब एक पुलिस अधिकारी अगर किसी माफिया सरगना से व्यवहार में पैसा या उपहार ले, कोई नेता ठेकेदारों और धनाड्यों से व्यवहार ने, कोई पत्रकार जरायम पेशेवरों से व्यवहार के नाम पर उपकृत हो तो इसे कतई व्यवहार नहीं कहा जा सकता है. यह पूर्णत: भ्रष्टाचारियों की भ्रष्टता का बेहयाई प्रदर्शन ही होगा.फिर व्यवहार दो समान स्तर के लोगों के बीच ही निभता है. जिससे आपकी जान-पहचान तक न हो उससे कैसा व्यवहार..? लेकिन आज बहुत से नेता, अफसर और बलशाली लोग समारोहों में व्यवहार को वसूली के रूप में लेते हैं, इसमें कोई शक नहीं.

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