सोमवार, 28 दिसंबर 2009

खरीबात

शहर में आईसीयू

फिलहाल एक धोखा है

प्रमोद तिवारी

धीरे-धीरे दो साल हो गये हेलो कानपुर ने शहर में वेंटीलेटर की आवश्यकता, उपलब्धता और इसके बीच के बाजार की सही तस्वीर प्रस्तुत की थी. इसकी वजह बनी थी दवा व्यवसायी अनिल बाजपेयी की पत्नी पुनीता बाजपेयी की मौत. इसके बाद भी वेंटीलेटर के अभाव में मौतों का सिलसिला नहीं थमा और शासन प्रशासन ने भी कोई बहुत तवज्जो नहीं दी. अभी तीन माह पहले मशहूर शायर अंसार कम्बरी की बेटी मुन्नी की भी मौत वेंटीलेटर के अभाव में हो गई थी और हेलो कानपुर ने मुन्नी की मौत पर भी शहर में वेंटीलेटर के प्राण लेवा संकट की बात उठाई थी. २००७ में ही युवा पत्रकार सुशील पाण्डेय की मौत भी सच पूछा जाये तो वेंटीलेटर के अभाव में ही हुई थी. और इन दिनों अंतरराष्ट्रीय खतरा बने स्वाइन फ्लू के मरीजों ने शहर की वेंटीलेटर व्यवस्था को पुन: झकझोरा है. इस बार गनीमत यह है कि पत्थर हो चुकी व्यवस्था पर स्थानीय मीडिया के प्रहारों ने व्यवस्थापकों को वेंटीलेटर समस्या, कारण और निवारण पर अपनी स्थिति साफ करने को मजबूर किया है. हैलट अस्पताल में छप्पन बिस्तरों वाले आईसीयू विभाग का उद्घाटन हुए छ: महीने के आस पास होने को आये हैं लेकिन अभी तक इलाज नहीं शुरू हो सका है. एक अनुमान के तहत लगभग सौ मौतें तो इस शहर में वेंटीलेटर के लिए दौड़ते-भागते ही हो जाती हैं जिसमें करीब ५० से ६० मौतों का गवाह बनता है हैलट. हैलट के अलावा शहर में लगभग डेढ़ दर्जन नर्सिंग होम होंगे जो कि खुद को वेंटीलेटर से लैस बताते हैं. इनमें रीजेंसी, मधुराज, सरल, भार्गव, तुलसी, लीलामणि, एक्सल, केएमसी, कुलवंती, रामा, चांदनी, रतन कैंसर, पीपीएम और संजीवनी हॉस्पिटल व नर्सिंग होम आदि प्रमुख हैं. कुल मिलाकर पूरे शहर में गरीब और आम आदमी के लिए सरकारी सुविधा के नाम पर वेंटीलेटर की अगर कहीं सुविधा है तो वह एक मात्र हैलट. इसका सीधा सा मतलब है कि यह एक अनार और एक लाख बीमार की कहावत को भी बौना साबित करता है. फिर जो बाकी प्राइवेट व्यवस्थाएं हैं उनके वेंटीलेटरों पर शहर को आश्रित होना चाहिए लेकिन ये भी अपर्याप्त हैं और आधुनिक तकनीक तथा सुविधाओं से लैस नहीं है. शहर के कई नर्सिंग होमों का जब हेलो कानपुर ने जायजा लिया तो जो तस्वीर सामने आई उसके लिहाज से नर्सिंग होम वाले अपने भवन के किसी एक हिस्से में आईसीयू का बोर्ड तो टांग देते हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर के मालिक गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) के मानकों को पूरा नहीं करते. आम आदमी सिर्फ आईसीयू का बोर्ड देख कर समझता है कि मरीज के लिए आईसीयू का इंतजाम हो गया है लेकिन होता धोखा है. वास्तव में एक स्तरीय आईसीयू के लिए कमरे और बैड के एरिया का सुनिश्चित मानक होता है. मरीज की देखभाल के लिए एक नर्स चौबीस घण्टे उपलब्ध होनी चाहिए. आईसीयू कक्ष के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित डॉक्टर की मौजूदगी अनिवार्य होती है लेकिन ऐसी अनिवार्यताएं पूरी करता हुआ आईसीयू कहां मिलता है? एक तो आम आदमी को जानकारी का अभाव रहता है और दूसरा उसकी मजबूरी कि आखिर जाये तो कहां जाये. नर्सिंग होमों में एक बार को वेंटीलेटर की सुविधा न हो तब भी गनीमत है लेकिन जो अपने आपको अस्पताल कहते हैं उनके यहां तो वेंटीलेटर होना ही चाहिए. आईसीयू के इंतजाम अगर मानक के अनुरूप नहीं होते हैं तो इण्डियन सोसायटी ऑफ केयर मेडिसिन प्रमाण पत्र जारी नहीं करती. रीजेंसी जैसे अस्पताल को इस संस्था से लेबल थ्री का प्रमाण पत्र प्राप्त है. यह प्रमाण पत्र काफी जांच-पड़ताल के बाद जारी किया जाता है. बावजूद इसके अगर रीजेंसी जैसी एक-आध व्यवस्था को छोड़ दिया जाये तो बाकी अस्पतालों का हाल तो बहुत ही खराब है. निजी अस्पतालों से पहले सरकारी अस्पतालों को ही देख लें. हैलट के अलावा न तो उर्सला में, न केपीएम में और न ही जच्चा-बच्चा में आईसीयू की कोई सुविधा है. और जहां है भी उनके बारे में एक सीनियर डॉक्टर बताते हैं कि शहर के बहुत से नर्सिंग होमों ने सरकारी या दिल्ली-मुम्बई के बड़े प्राइवेट अस्पतालों के रिजेक्टेड और बड़े इंस्ट्रूमेंट नीलामी में खरीदकर अपने यहां आईसीयू स्थापित कर लिया. आईसीयू में काम करने वाले डॉक्टर के लिए क्रिटिकल केयर मेडिसिन का डिप्लोमा आवश्यक है यह डिप्लोमा एमडी मेडिसिन या एमडी एनेस्थीसिया के बाद ही किया जाता है. इसे कसौटी पर कसें तो पायेंगे कि कुछ को छोड़कर शेष नर्सिंग होम में ट्रेंड डॉक्टर तक नहीं हैं, कुछ में विजिटर डॉक्टर को छोड़कर चौबीस घण्टे केवल एमबीबीएस या बीएमएम डॉक्टर तैनात रहते हैं और वो भी बगैर ट्रेनिंग या अनुभव के. जब डॉक्टरों का यह हाल यह है तो ट्रेंड सिस्टर और ट्रेंड टैक्रीशियन का होना फिलहाल कपोल कल्पना है. नाम न छापने की शर्त पर शहर के टॉप यूरोलॉजिस्ट कहते हैं पीजीआई जैसे नीमचीन अस्पताल में डॉ० छाबड़ा जैसे न्यूरोसर्जन को ऑपरेशनों के बाद कोई सेपरेट आईसीयू की आवश्यकता क्यों नहीं पड़ती? क्योंकि वहां मरीज का लुटना तो सम्भव नहीं है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आईसीयू के नाम पर मरीजों के साथ क्या हो रहा है.1

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें