शनिवार, 5 दिसंबर 2009

चौथा कोना
अखबार फीड बैक

से आगे...

प्रमोद तिवारी
पिछले दिनों मेरे अग्रज मित्र भ्राता अभिलाष अवस्थी का कानपुर आगमन हुआ. मुझे तो खबर नहीं लग सकी उन्होंने मुम्बई लौटकर मुझे अपने कानपुर प्रवास की जानकारी दी और हेलो कानपुर का सच्चा फीड भी दिया. भाई चूंकि मूलत: पत्रकार हैं इसलिए उनका कानपुर के पत्रकारों से भी खूब नाता है. उन्होंने हेलो कानपुर के बारे में दो मुख्य बातें बताईं. पहली-शहर में हेलो कानपुर के प्रकाशन की नियमितता आश्चर्यचकित करने वाली सफलता के रूप में स्थापित हो चुकी है. दूसरी-अगर हेलो कानपुर में प्रमोद तिवारी की बतौर लेखक अनुपस्थिति रहती है तो अखबार की धार में फर्क पड़ जाता है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मेरे पत्रकार दोस्तों ने मेरी तारीफ की है या अभिलाष जैसे संपादक ने कौशल को नकारा. इसमें कोई संदेह नहीं कि अब मैं पूरा का पूरा अखबार न ही लिखता हूं और न ही संपादित कर रहा हूं. मेरे साथ जो लोग हैं अब मैं अखबार को उनकी जिम्मेदारी पर भी छोड़ता हूं. ऐसा हेलो कानपुर हेलो को कानपुर बनाने के लिए आवश्यक है. पांचवां साल चल रहा है अखबार का. अब इसे अपनी पहचान से ही पहचाना जाना चाहिए. प्रमोद तिवारी की पहचान और हेलो कानपुर की पहचान अन्योन्याश्रित हो यह तो ठीक है लेकिन प्रमोद ही हेलो कानपुर और हेलो कानपुर ही प्रमोद जैसी स्थिति बहुत दिनों तक मेरी दृष्टि में अच्छी स्थिति नहीं है. समाचार पत्र में संपादक की छाप तो होनी चाहिए लेकिन संपादक ही कुल अखबार समझा जाये यह किसी विकासशील प्रतिष्ठान या समाचार पत्र के लिए अच्छा नहीं है.मैं अब इस कोशिश में हूं कि हेलो कानपुर-हेलो कानपुर बनें न कि प्रमोद टाइम्स. प्रमोद टाइम्स बनकर रह जाये. प्रमोद टाइम्स का वक्त गया. जो लोग मुझे केवल शराबी और बदमिजाज पत्रकार के रूप में प्रचारित कर अपनी-अपनी कुर्सियां गद्देदार कर रहे थे और बड़े सेवायोजकों के बीच मुझे अविश्वासी बनाने का सफल षडयंत्र कर रहे थे अब उनके मुंह सिल चुके हैं. सबने मान लिया कि मै जैसा प्रचारित था वैसा नहीं हूं. बल्कि जैसा 'जागरणÓ में था उससे भी ज्यादा प्रखर हूं हेलो कानपुर में. लेकिन अब मैं भी कब तक 'कमजर्फोंÓ को दिखाने के लिए अपनी जिन्दगी की रिदम पर बज्रपात करता रहूं. वैसे भी मैं हेलो कानपुर को अपनी अकेले की बपौती नहीं बनाना चाहता. मेरी आगे की यात्रा इस समाचार-पत्र का अपनी निजी छाप से पृथक एक सच्चे अखबार की छवि के साथ स्थापित करने के लिए होगी. इसके लिए मुझे काबिल और ईमानदार सहयोगियों की आवश्यकता पड़ेगी. और अब यह शहर की युवा और अनुभवी प्रतिभा पर निर्भर करेगा कि मेरा अगला चरण कितनी मजबूती से आगे बढ़ता है.1

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