सोमवार, 14 दिसंबर 2009

डॉक्टरों का प्रशिक्षण अधूरा रहेगा


बहुत देर हो चुकी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाये जाने वाले विषयों पर बदलाव न करने में इस बात पर ध्यान न देने में किस विषय पर अधिक ध्यान दें इसका आधार होना चाहिए कि जब डॉक्टर प्राथमिक और माध्यमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में बैठे वह उन तमाम बीमारियों और आकस्मिक क्षणों में प्रत्येक नागरिक का इलाज कर सके. अतएव प्रत्येंक मेडिकल कॉलेजों में एक 'फैमिली मेडिसिनÓ का विभाग अनिवार्य हो जो किसी भी विशेषज्ञ विभाग से कम न हो उसका स्थान बराबर का हो. वह सुनिश्चित कर सके उनके द्वारा जो पढ़ाया जा रहा है. वह डॉक्टरों को साक्ष्य बना सकेगा. उन रोगों का ९० प्रतिशत निदान करने में जो उन्हें प्राथमिक या माध्यमिक केन्द्रों में देखने पड़ते हैं. इन मेडिकल कॉलेजों में प्राथमिक और माध्यमिक चिकित्सा सेवाओं को अधिक से अधिक देने का प्रबंध होना चाहिए क्योंकि इसके बिना डॉक्टरों का प्रशिक्षण अधूरा रहेगा. पूरे प्रशिक्षण का २५ प्रतिशत समय इन सेवाओं में डॉक्टरों को लगाना अनिवार्य है. ऐसा तमाम देशों में हो रहा है. ऐसे डॉक्टर विशेषज्ञ बनने में भी किसी से पीछे नहीं पाये गये. हमें वर्तमान में समस्त प्राथमिक और माध्यमिक में कार्यरत डॉक्टरों को पुन: प्रशिक्षण दे उन्हें फैमिली मेडिसिन में योग्य और साक्ष्य बनाये उनका स्तर विशेषज्ञ के समान बनाये. वे अधिक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं. अच्छा तो होगा कि एक राष्ट्रीय प्रबंध समिति फैमिली मेडिसिन के लिए बनाये जैसा कि यूके, कैनाडा और ऑस्ट्रेलिया में है. रॉयल कॉलेजे ऑफ जनरल प्रैक्टिस के नाम से. देश भर में फैमिली मेडिसिन की संस्थाओं का जाल फैला दें सरकार ओर प्राइवेट गठजोड़ से. यह फेमिली मैडिसिन के विशेषज्ञ बनायें. परन्तु यह सब तभी सम्भव है जब आम जनता, राजनीतिज्ञ इसका महत्व समझे और चिकित्सक इस सामाजिक कत्र्तव्य को गले लगाये. मीडिया इस तरह का वातावरण बनाने में बहुत कुछ कर सकता है. हम प्रत्येक नागरिक के शरीर को स्वस्थ्य और सुनदर बना सकते हैं चेहरे पर मुस्कुराहट ला सकते हैं. गरीबी और अमीरी की दूरी मिटा सकते हैं. इस फैमिली मैडिसिन से.1


पाकिस्तान में राशन के लिए भगदड


दुनिया में कई देशों में भुखमरी से हजारों लोग मर रहे हैं परन्तु ऐसे देश भी हैं जहां खाना कूड़े में फेंका जा रहा है. पाकिस्तान में राशन के लिए भगदड़ में कई मौते हो गईं. केन्या, सेनेगल, कैमरून, मिस्र, हैती, बुर्किना, फासी आदि में भोजन के लिए दंगे हुए सोमालिया में तो सैकड़ों घर तबाह हो गये हैं. भारत में भी भुखमरी से लोग हर वर्ष ४१ लाख टन खाद्यान्न डिब्बों में बंद करके फेंक देते हैं कूड़े में. इतने खाद्यान्न से एक अरब लोगों को भुखमरी से बचाया जा सकता है. सभी विकसित देश के लोग जितना भोजन खाते हैं. उससे अधिक कूड़े में फेंक देते हैं और दो अन्य समस्यायें पैदा करते हैं. एक तो खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ाने में मदद करते हैं और दूसरी कूड़े की मात्रा बढ़ाते हैं और लैडफिल का आकार बढ़ता जा रहा है. अमरीका में १६० अरब किलो खाद्यान्न प्रतिवर्ष उपलब्ध होता है. जिसमें से ४५ अरब किलो कूड़े में फेंका जाता है. इस आदत को रोकने के लिए ऑस्ट्रिया, जर्मनी, नीदरलैंड, स्वीडेने और अमरीका के मैसाच्युसेट्स में पहले से ही प्रतिबंध लगा है. अब ब्रिटेन में भी ऐसे लोगों को दंडित किया जायेगा. भारत में तो खाना फेंकना हमेशा से पाप समझा गया है बचा हुआ खाना जानवर को खिलाने की प्रथा बहुत पुरानी है.1(लेखक पूर्व स्वास्थ्य निदेशक हैं)

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