सोमवार, 28 दिसंबर 2009


सिग्मा ध्वस्त

लुट गये सत्तर करोड़

'साझे की हण्डिया चौराहे पर फूटती है.Ó यही हुआ. सिग्मा बनने के साथ ही हेलो कानपुर ने शहर को बताया था कि कैसे कोचिंग के सात महारथियों ने मेधावी छात्रों को लूटने का कुचक्र रचा है. जब देश और प्रदेश के बड़े अखबार और चैनल सिग्मा के बनने से कानपुर ही नहीं देश, प्रदेश के मेधावी छात्रों को समुद्र मन्थन से निकलने वाले अमृत सा बता कर यशोगान की झूठी गाथाएं सुना, दिखा, पढ़ा रहे थे तब हमने लिखा था 'सात लूटेंगे सत्तर करोड़.Ó हमारा कहा आज सच साबित हो गया. लालच, झूठ, मक्कारी, बेईमानी और दबंगई की नींव पर खड़ा किया गया सिग्मा का महल छ: माह के अन्दर ध्वस्त हो गया. आशीष विश्नोई कहते हैं विचार नहीं मिले.
काकादेव कोचिंग मण्डी में सब धनपिपासु ही हैं, ऐसा नहीं है यहां ऐसे सर भी हैं जिन्होंने चालीस-पचास या नबबे से ज्यादा के क्लास न लगाने का एलान कर रखा है. ऐसे सर भी जिन्होंने सिग्मा से भगाये गये छात्रों को न के बराबर फीस में अपने यहां एडमीशन दिया है. ऐसे सर भी हैं जिन्होंने, दूसरी कोचिंग में कोई टापिक न समझ पाने वाले छात्रों के लिये अपने यहां स्पेशल क्लास चलाये हैं. ऐसे सर भी है जो गरीब छात्रों को छात्रवृत्ति दे रहे हैं. ऐसी कोचिंग भी हैं जिन्होंने विज्ञापन के बड़े-बड़े दावों से तौबा कर रखी है. ऐसे सर भी हैं जो दलालों से दूर का भी वास्ता नहीं रखते हैं.इन्हीं ईमानदार मेहनती सरों के बल पर काकादेव कोचिंग मण्डी अभी बनी है बल्कि बढ़ रही हैं, अन्यथा दलाल, दबंग और धोखेबाजों ने तो कई बार सोने के अण्डे देने वाली इस मुर्गी को हलाल कर डालने की आत्मघाती साजिश की है.
मुख्य संवाददाता
नीयत अगर खराब हो तो नीति की बड़ी-बड़ी बातें अपना महत्व खो ही देती हैं. मेधा को तराशकर और परिपक्व व सुयोग्य बनाने की अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय उसे हताश करने का अक्षम्य अपराध सिग्मा के महागुरुओं ने किया. वह भी उन्हीं छात्रों के करियर की कीमत पर जिनको बनाने का ठेका लिया था. एक साल भी अपनी साझेदारी न चला कर इन्होंने दिखा दिया कि ये शिक्षक नहीं एकता कपूर के सीरियलों के महात्वाकांक्षी, लोभी कुटिल षडयन्त्री बिजनस टायकून हैं काकादेव कोचिंग मण्डी के नामचीन बड़े-बड़े सर. काकादेव की कोचिंग मण्डी की एक ही विशेषता है कि यहां सुविधानुसार इंजीनियरिंग की तैयारी के लिये फिजिक्स, कैमिस्ट्री और मैथ की कोचिंग किसी भी सर के यहां पढऩे के लिये स्वतंत्र हैं. कई मेधावी छात्र तो अपने किसी एक कमजोर विषय की ही कोचिंग पढ़ते हैं. अन्य विषय स्वयं तैयार करते हैं. याद करिए इसी वर्ष मई माह में अचानक कोचिंग के कुछ महारथियों की दिमागी सनक का कीड़ा बड़ी-बड़ी होडिगों और विज्ञापनों के माध्यम से काकादेव में छात्रों और अभिभावकों की छाती पर सिग्मा बनकर लौटने लगा था. सिग्मा उस सिंडीकेट का नाम था जिसमें काकादेव मण्डी के सर्वाधिक बिकाऊ डिमांडिंग और स्मार्ट सरों का गठजोड़ हुआ. सिग्मा बनाकर इन महारथियों ने एक मौखिक आदेश जारी किया था जो एक विषय हमारे यहां पढ़ रहा है उसे बाकी दो विषय भी हमारे यहां ही पढऩे पडेंगे. 'यू शुड बी आइदर इन सिग्मा आर आउट ऑफ सिग्माÓऐसे में हजारों छात्रों का भविष्य संकट में फंस गया था. क्योंकि सिग्मा बनाने तक हजारों छात्रों ने काकादेव में दस से पन्द्रह हजार फीस देकर अलग-अलग फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मैथ की कोचिंग ज्वाइन कर ली थीं. जो फिजिक्स, कैमिस्ट्री और मैथ एक विषय या दो विषय सिग्मा के बाहर की कोचिंग में पढ़ रहे थे उन पर दबाव पड़ा, सैकड़ों छात्रों को सिग्मा से बाहर की कोचिंग छोडऩी पड़ीं. खाने-पीने के उद्देश्य से बना सिग्मा वैसे तो बनते ही दरकने लगा था 'हेलो कानपुरÓ ने चेताया भी था. सिग्मा बनने के कुछ दिन बाद शुरू हो गया था. कुछ बड़े सरों कोलगने लगा कि मुनाफे का बड़ा हिस्सा बेवजह छुट भैठये सर ले जा रहे हैं. सिग्मा बना तो था दूसरे कोचिंग संचालकों को 'ढ़क्कनÓ करने के लिये, लेकिन बाद में उसके अन्दर ही छोटे-छोटे ग्रुप बनने लगे. और 'विधायक दलÓ की तरह प्रेशर पालिटिक्स शुरू हो गई. कई बार तो ऐसा हुआ कि नियत समय और तय ब्लाक में फिजिक्स के सर ने अपनी क्लास लेने के बजाय अपने ग्रुप के चहेते कैमिस्ट्री के टीचर की क्लास करवा दी और वही टापिक पढ़वा दिया जो वहीं पर कुछ मिनट बाद दूसरे सर को पढ़ाना था. यही नहीं निर्धारित समय से पहले ही क्लास खत्म कर छुट्टी कर दी.कुछ देर बाद पढ़ाने आने वाले कैमिस्ट्री के टीचर को वहां ताला मिला. इसतरह के अपमान से खीझ कर सबसे पहले कैमिस्ट्री के पंकज अग्रवाल ने घोषणा कर दी, जिसे पढऩा हो मेरे ब्लाक में आये, मैं कहीं पढ़ानेनहीं जाऊंगा.कांट-छांट के दूसरे दौर में कई सरों ने अपनी कक्षाएं निर्धारित समय के बाद छोडऩी शुरू कर दीं ताकि दूसरी कक्षाओं में छात्र समय से न पहुंच सकें. प्रभावित होने वाले सरों ने फिर आदेश किया कि मेरी कक्षा में लेट आने वालों को प्रवेश नहीं मिलेगा. यही नहीं बाद में स्थिति इतनी बिगड़ी कि अपने ही सब्जेक्ट के दूसरे टीचर के यहां जाने वाले छा. को अपने यहां घुसने से मना किया जानेलगा. इस तरह अगर कोई टापिक किसी छात्र का छूट गया था या उसे समझ में नहीं आ पाया था और दूसरे ब्लाक मं दूसरा टीचर पढ़ा रहा था तो चाहते हुए भी छात्र वहां पढ़कर अपनी प्राब्लम साल्व नहीं कर पाया. सिग्मा बनने से जो सबसे बड़ा फायदा था कि पन्द्रह सौ के बैच में पढऩे वाले छात्र-छात्राओं को दौड़ भाग कर सीट नहीं घुरनी पड़ेगी. वे एकजगह बैठेंगे और टीचर ब्लाक बदलकर पढ़ाने चले जाएंगे, ध्वस्त हो गया. और छात्रों की भाग दौड़ में मारा-मारी शुरू हो गयी.खराब बातप्रतिस्पर्धा, दुराग्रह और खुन्नस की खाई आपस में इतनी गहरी हो गई कि फिजिक्स के सर के ब्लाक से कैमिस्ट्री के, मैथ के सर के ब्लाक से फिजिक्स के और कैमिस्ट्री के ब्लाक से मैथ के टेस्ट पेपर छात्रों को दिये जाने लगे. ये टेस्ट पेपर बाहर के टीचरों ने बनाये थे और काफी टफ थे. छात्र इनको साल्व नहीं कर पाये तो छात्रों को एहसास कराया गया कि तुम देख लो, फलां सब्जेक्ट में तुमको कुछ आता ही नहीं है, क्या पढ़ाया गया है. छात्र-छात्रा जब अपने सब्जेक्ट टीचर के पास गये तो उन्होंने प्राब्लम साल्व करने के बजाय कहा कि अरे ये सब 'इरेलिवन्टÓ है, किस बेवकूफ ने दिये हैं? आपाधापी में बेचारे छात्र इतने कन्फ्यूज और डिप्रेश हो गये कि वे क्या पढ़ें, क्या न पढ़े, उन्हें कुछ आता भी है या नहीं कुछ समझ ही नहीं पाये आना बंद हो गया.एक ओर जब आई.आई.टी. सहित विभिनन तकनीकी संस्थान अपने छात्रों को एक्जाम में डिप्रेशन में जाने से रोकने के लिये काउन्सिलिंग करते हैं तो सिग्मा अपने ही छात्रों को कुल्हाड़ी बांटरहा है अपने करियर के पैरों पर मारने के लिये.भूत की लंगोटी'भागते भूत की लगोंटी भलीÓ कुछ ऐसी ही स्थिति में कोर्स में पिछड़ गये छात्रों को अपने बोर्ड एक्जाम की चिंता हो गई है कि अगर बोर्ड एक्जाम अच्छे नम्बरों से पास नहीं हुए तो किसी भी कीमत पर इन्जीनियरिंग में एडमीशन नहीं हो पायेगा. या फिर अभिभावक अगले वर्ष कोचिंग नहीं पढऩे देंगे. ऐसे बहुत से छात्र अब आस-पास या स्कूलों की बोर्ड कोचिंग ज्वाइन कर कम से कम इण्टर तो अच्छे नम्बरों से पास करने की प्रियार्टी दे रहे हैं.सिग्मा जिसका अर्थ ही जोडऩा है, जो बनने के साथ ही तोडऩे लगा था. पहले इसने मेधावी छात्रों को अपनी कोटरी में बन्द कर बाहरी टीचरों से उनका सम्पर्क तोड़ा. बाद में अपने ही टीचरों से उनका सम्पर्क तोडऩे लगा. अन्त में टीचरों ने अपने संबंध खत्म कर सिग्मा को तोड़ डाला है. सबसे पहले आशीष विश्नोई ने अपने ब्लाक से सिग्मा का बोर्ड उतार कर अपना 'आशीष विश्नोईÓ का बोर्ड टांग दिया है. उसके बाद अनीस श्रीवास्तव, पंकज अग्रवाल ने भी सिग्मा के बोर्ड अतार दिये. बाद में यही काम राज कुशवाह और संजय चौहान ने कर दिया. या तो बोर्ड काले कपड़े से टक दिये या उतार फेंके.साजिश जारीआज सिग्मा ध्वस्त दिख रहा है लेकिन अमर सिग्मा के अध्ययन शील और मेधावी छात्र अपने ही गुरुओं की बाधाओं के बाद अच्छा रिजल्ट ले आयें तो भविष्य में उसकी कुटिया में और छात्रों को फंसाने की योजना भी बना ली गई है. सिग्मा में शामिल एक बिल्डर टीचर ने दूसरे रसिक मिजाज टीचर के साथ मिलकर दिल्ली में सिग्मा ट्रेड का रजिस्ट्रेशन अपने नाम करवा लिया है. इसलिए अगर इन्जीनियरिंग परीक्षाओं के बाद सिग्मा फिर रंगरूप बदलकर मनमोहनी सूरत में हाजिर हो जाये तो कोई बड़ा आश्चर्य नहीं है.
आशीष विश्नोई कहते हैं-गणित की दुनिया में जाना पहचाना नाम सिग्मा में शामिल आशीष विश्नोई से जब हमने सिग्मा के टूटने और उससे छात्रों को होने वाली दिक्कतों के विषय में पूछा तो उनका जवाब था कि हमने प्रयास किया था कि छात्रों को ज्यादा अच्छी तरह से पढ़ाया जा सके. लेकिन आप जानते हैं जहां चार लोग होते हैं दिक्कतें आ ही जाती हैं. हमारे विचारों में सामान्ता न होने के कारण इसके खत्म होने की नौबत आ गयी फिर भी हमारा प्रयास है कि छात्रों को कोई दिक्कत न आये. सिग्मा के अन्य डायरेक्टरों से फोन न उठने के कारण बात-चीत न हो सकी.1

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