शनिवार, 5 दिसंबर 2009

खरीबात

सरकार और न्यायालयों

के बीच का 'राजÓ!

प्रभाकर श्रीवास्तव

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई0ए0एस0) के वरिष्ठ अधिकारी एवं उत्तर प्रदेश शासन में प्रमुख सचिव (आवास) पद पर तैनात श्री हरमिंदर राज द्वारा स्वयं को गोली मार कर जान दे देने की स्तब्धकारी घटना से प्रदेश के सुचारू संचालन हेतु उत्तरदायी आई0ए0एस0 अधिकारियों एवं उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश में परिवर्तित होते देखने की दृढ़ इच्छा रखने वाले प्रबुद्वजनों में एक अजीब सी बेचैनी व्याप्त हो गई है. श्री हरमिंदर राज द्वारा आत्महत्या किये जाने के कारणों की जांच के लिये विपक्षी दलों द्वारा केन्द्रीय जांच एजेन्सी की मांग किया जाना किसी भी दृष्टिकोण से अनुचित तो नहीं है, विशेषकर तब जबकि सत्तारू ढ़ दल के प्रवक्ताओं एवं शीर्ष आकाओं द्वारा शायद सिर्फ शोक संवेदना व्यक्त करना ही कर्तव्यों की इतिश्री समझा जा रहा हो. बेहद दुर्भाग्यपूर्ण एवं शर्मनाक है सत्ता की प्रशासनिक नकेल अपने हाथ रखने वाले शीर्षस्थ अधिकारियों के लिये कि वे घटना का कोई प्रथम दृष्टया: कारण भी उजागर कर पाने में पूर्णत: निरुत्तर है. क्या संवेदनाओं का स्तर इतना गिर चुका है कि अपने समान समकक्ष अधिकारी की ऐसी रहस्यमयी मृत्यु पर भी घंटों तक अर्कमण्यता ओढ़ कर चुपचाप रहा जा सकता है और प्राथमिक अन्वेषण (कॉल डिटेल्स) आदि के लिये भी परिजनों की कार्यवाही हेतु गुहार लगाने या किसी प्रकार के आंदोलन की प्रतीक्षा की जा सकती है. इस प्रकार की घटना पर इतनी शिथिल कार्यवाही से सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि प्रदेश की जनता के सरेआम लुट जाने या कत्लेआम हो जाने से ऐसे जिम्मेदारों को तो रत्ती भर फर्क नहीं पड़ेगा. हमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अगर कोई बहुत जिम्मेदार सा व्यक्तित्व गंभीरतापूर्वक कहने लगे कि भाई यह तो विधि का विधान है, जिसकी मौत आ गई वो चला गया अब इसमें कोई क्या कर सकता है.आखिर सामाजिक-समरसता के आडम्बर के पीछे कौन है वे लोग जो राजनैतिक और आर्थिक रूप से लाभान्वित होने के लिये राष्ट्र की शीर्ष न्यायिक व्यवस्था को भी चुनौती देने का दुस्साहस करते हैं तथा क्यों अति-जिम्मेदार आई0ए0एस0 अधिकारी जहरीले सामाजिक-समरसता के रसायन में डूब कर भीगी बिल्ली बनते जा रहे हंै. किसी को आपत्ति नहीं है यदि लंबे समय तक शोषित रहे वर्ग को आरक्षण या अन्य अतिरिक्त सुविधाओं का लाभ दे कर उनका उत्थान किया जाये परन्तु ऐसी सुविधाओं का लाभ उठा कर जो परिवार समृद्वता का पर्याप्त स्तर प्राप्त कर चुके हैं उन परिवारों के एयरकण्डीशन्ड कमरों में रहने और कारो में घूमने वाले युवकों-युवतियों को सरकारी नौकरी में आंख बंद कर आरक्षण का लाभ सिर्फ इसलिये दिया जाते रहना कि कभी उनके पूर्वज शोषित समाज का अंग रहे थे, निश्चित रूप से सामाजिक-समरसता को दूषित कर जहरीला बना देना है. सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की चमचमाती थाली में जहरीले भोज्य पदार्थ परोसे जाने से कोई समरसता आने वाली नहीं है यह बात किसी को भी अच्छी तरह से समझ आ सकती है. आखिर लंबे समय से आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का लाभ दिये जाते रहने पर भी सम्पूर्ण शोषित वर्ग का उत्थान अभी तक क्यों नहीं हो सका है अभी भी शोषित वर्ग के कितने लोग नारकीय जीवन जीने को बाध्य हैं. क्या इस तरह की सांख्यिकी जुटाने और वास्तव में पात्र लोगों का समयबद्व उत्थान करने की कोई योजना क्रियान्वित किये जाने हेतु कोई अम्बेडकर-अनुयायी ईमानदारी से प्रयासरत है यदि नहीं तो क्यों नहीं यह कार्य करने वाला ही डा0 अम्बेडकर का सच्चा अनुयायी हो सकता है. संवैधानिक न्यायपालिका के निर्देशों की उपेक्षा करने वाला कुछ भी हो सकता है पर वो संविधान मर्मज्ञ डा0अम्बेडकर का सच्चा अनुयायी तो कतई नहीं है. अब कोई चारा शेष नहीं है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के लोकसेवकों आपको जागना ही होगा. यदि देश का सैनिक सीमा पर गोली खा कर जनता के प्रति फर्ज की अदायगी करता है तो फिर आपको तो सिर्फ महत्वहीन पद पर तैनात किये जाने का ही जोखिम है. वैसे भी सोने के पिंजरे में कैदी की भांति रहने से कच्ची झोपड़ी की स्वतंत्रता बहुत बेहतर होती है.1

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