शनिवार, 27 नवंबर 2010

बिहार विधानसभा चुनाव-2010
जोकरी के दिन गये..
विशेष संवाददाता
बिहार के चुनाव परिणाम उत्तर प्रदेश के लिए सबक हो सकते है। जिन दिनों बिहार जाति के मकडज़ाल में बुरीतरह कसमसा रहा था उत्तर प्रदेश साम्प्रदायिक उन्माद में राजनीतिक फैसले ले रहा था. बिहार साम्प्रदायिकता के मोर्चे पर उत्तर प्रदेश से हमेशा बेहतर रहा वहीं जातीय राजनीति के लिए एक चौथाई सदी तक अवसरवादियों की प्रयोगशाला बना रहा. जिसका फायदा लालू और राम विलास जैसे दोहरे-तिहरे चरित्र वालों ने खूब उठाया. भला हो नितीश कुमार का जिन्होंने राजनीतिक संवेदना से सर्वथा लबालब रहे बिहार के मर्म को समझा. कर्पूरी ठाकुर, जयप्रकाश नारायण और मण्डल की आत्मा को समझा. जातिगत उत्थान के लिए जाति की गणना जरूरी समझी न कि वोट के लिए और आज नतीजा सबके सामने है. २४३ सीटों वाली विधान सभा में २०६ का आंकड़ा छूकर नितीश और सुशील मोदी ने सभी को चौंका दिया और यह भी बता दिया कि गये दिन जाति और धर्म के नाम पर तमाशा करने के. पानी नाक के ऊपर जा पहुंचा है. अब काम से काम चलेगा. जुमलेबाजी और जोकरी के दिन गये. चुनाव जीतने के बाद नितीश कुमार ने कहा-'' बिहार अब जाति की राजनीति से आगे निकल चुका है. अब काम करने से ही काम चलेगा. हमारी जिम्मेदारी और बढ़ गई है. बिहार के लोगों ने हम पर विश्वास किया है. और हमें विश्वास पर खरा उतरना ही होगा.ÓÓ कायदे से अब बिहार के बाद उत्तर प्रदेश का नम्बर है. बिहार की तरह ही उत्तर प्रदेश को भी क्षेत्रीय क्षत्रपों विशेषकर मुलायम सिंह यादव और मायावती ने बरबाद कर दिया है. खुलेआम नौकरियों में सरकारों ने भ्रष्टाचार किया है. भर्तियों में मंत्रियों ने उगाहियां की हैं. ये रिश्वत देकर भर्ती लोग जब सरकारी सेवाओं में होंगे तो क्या दशा होगी आम सार्वजनिक सेवाओं की. लाखों की रिश्वत देकर भर्ती हुआ सिपाही वर्दी पहनकर लूट करेगा या लूट रोकेगा? बिहार अगर ताजा चुनाव परिणाम के बाद विकास की राजनीति की राह पर वापस लौट पड़ा है तो अब उत्तर प्रदेश ही सर्वथा जातीय पिछड़ेपन की राजनीति के दलदल में शेष रह गया है. यूपी को भी बिहार के बड़े भाई की भूमिका में लौटना होगा. लोग कहते हैं. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. लेकिन इतिहास गवाह है कि सकल परिवर्तन हमेशा एक व्यक्ति के अतिरिक्त जोखिम से ही संभव हुआ है. बिहार में यह काम नितीश कुमार ने कर दिखाया. उम्मीद करनी चाहिए कि उत्तर प्रदेश में भी विकास रथ लेकर कोई आगे आएगा जिसके पहिए के नीचे अगड़ा-पिछड़ा, दलित-सवर्ण सब राह की खाद बनजाएंगे . उत्तर प्रदेश की दशा वर्तमान में बिहार से कई गुना गई बीती है. यहां पार्टियां टिकट बेंचती हैं? सरकारें नौकरी बेंचती हैं? कोई भी सरकारी फाइल बिना रिश्वत के सरकती ही नहीं. यहां वही चोरी में लिप्त है जिस पर चोरी रोकने की जिम्मेदारी है. राजनीतिक विद्वेष से आम आदमी तक पहुंचने वाली राहत बीच में ही डकार ली जाती है. ऐसे में भगवान बुद्घ और जयप्रकाश नारायण की धरती ने देश को संदेश दिया है. बिहार में ढाई प्रतिशत की आबादी वाले कुर्मी जाति के नीतीश कुमार सर्वजात के नेता बन गये. जिला का जिला साफ हो गया. विरोधी दलों को सीट नहीं मिली. जाति की जाति ने नीतीश को वोट दिया. महिला सशक्तिकरण ने बिहार की ही नहीं देश की राजनीति बदल दी है. चुनावों से ठीक पहले हंग असेंबली की बात की जा रही थी. पटना में खद्दरधारी नेताओं की जबान नितीश के विरोध में थी. ये सारे जबान व्यक्तिगत हितों से ग्रसित थे. कई शहरों के कुछ प्रमुख अड्डों पर बैठकबाजी करने वाले खद्दरधारी नेता, नीतीश को गाली देते थे. बटाई बिल का बहाना लेकर. लेकिन बटाई बिल से पीडि़त लोगों ने भी वोट दिया. कहा बटाई बिल पता नहीं, पर रात को गांव में सो तो रहे है. खेती तो आराम से कर रहे है. चुनाव से ठीक पहले कुछ कांग्रेसी खुश थे, हंग असेंबली होगा. चलो इसी बहाने राष्ट्रपति शासन लागू होगा. ये वही लोग थे जिनके व्यक्तिगत हितों को नीतीश कुमार ने पूरा नहीं किया था. जिला या ब्लाक स्तर पर जिनकी दलाली नहीं चली थी. लेकिन इससे अलग आम जनता की सोच थी. उन्हें सुरक्षित जीवन चाहिए था. गांवों तक बढिया सड़क की जरूरत थी. बढिय़ा स्वास्थ्य सेवा चाहिए थी. नीतीश ने इसे कर दिखाया. अस्पतालों में दवाइयां मिलनी शुरू हो गई थीं. डाक्टर हास्पिटल में बैठने लगे थे. गांव तक सड़क बन गई थी. लोगों को गुंडागर्दी टैक्स से मुक्ति मिल गई थी. व्यापारी बिन भय के देर रात तक दुकान खोल सकता था. ट्रेन से उतर देर रात अपने घर जा सकता था. यह नीतीश कुमार के पहले पांच साल की उपलब्धि थी. बिहार का चुनाव परिणाम देश की राजनीति बदलेगा. राज्य की अस्मिता से अलग, जाति की अस्मिता से अलग विशुद्व चुनाव था विकास की राजनीति पर. भ्रष्टाचार मुद्दा था, पर 2 जी स्पेक्ट्रम, कामनवेल्थ ने बिहार के भ्रष्टाचार को पीछे ढकेल दिया था. आजादी के पचास साल बाद लोगों को गांवों में सड़क देखने को मिली थी. गांव की महिलाएं सुरक्षित घर से बाहर शौच के लिए निकल पा रही थीं. ये महिलाएं हर जाति की थी. क्या भूमिहार, क्या राजपूत, क्या कहार, क्या कोयरी, क्या कुर्मी, क्या दलित, क्या यादव. हर जाति की महिला की इज्जत आबरू बची. अब अगला लक्ष्य बिहार की जनता ने नीतीश को दे दिया है. बिहार की जनता पिछले पचास सालों से बिजली से मरहूम है. अगले पांच सालों में बेहतर बिजली, बेहतर शिक्षा और बेहतर रोजगार का प्रबंध नितीश कुमार करेंगे. यह जनता की उम्मीद है. बिहार के चुनाव परिणाम ने क्षेत्रीए दलों की प्रासंगिकता को बरकरार रखा है. भाजपा को बेशक बेहतर सीट मिली है. पर जद यू ने अपने प्रदर्शन को पहले से काफी बेहतर कर बता दिया है कि कांग्रेस का विकल्प के तौर पर अभी भी गैर कांग्रेसवादी राजनीति जिंदा है. दो दलीय प्रणाली से अलग क्षेत्रीय दल अभी जिंदा रहेंगे. नीतीश की मायावती और मुलायम सिंह के लिए सीख है. यह शिवसेना के लिए भी एक सीख है. ये उन सारे राजनीतिक दलों के लिए सीख है जो वंशवाद, गुंडाराज, पैसे के खेल से ग्रसित हैं. नीतीश की जीत बताती है कि उतर प्रदेश जैसे राज्य में अभी भी मायावती और मुलायम सिंह प्रसांगिक हो सकते हैं. बशर्ते वे सिर्फ विकास और जनता की बेहतरी के लिए बात करें. मायावती के लिए एक जबरजस्त सीख है. ढाई प्रतिशत की आबादी वाले कुर्मी नीतीश सर्वजात के नेता हो गए बिहार में. फिर मायावती क्यों नहीं सर्वजात की नेता हो सकती हैं. मायावती भी सर्वजात की नेता हो सकती हैं विकास की बात कर. मुलायम सिंह भी सर्वजात के नेता हो सकते हैं विकास की बात कर. पैसे के मोह और वंश का मोह ये नेता छोड़ें. जनता की मोह की बात करेंगे. जनता इन्हें हाथों हाथ उठाएगी.1

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