शनिवार, 20 नवंबर 2010

प्रथम पुरुष
आधुनिकता के पैमाने
डा. रमेश सिकरोरिया
म स्वयं को आधुनिक कहलाने के अधिकारी तभी हैं, जब हम वैसा आचरण करते हों. इसके लिये हम खुद को निम्नलिखित कसौटियों पर कस सकते हैं-१. सभी व्यक्ति बराबर हैं, उन्हें जातियों या समाज की बराबरी से न जोड़ें२. सभी जातियों/समाज को अपनी पहचान रखने का अधिकार है. उनकी संस्कृति को कायम रखने के लिए सरकार सहायता करे, परन्तु उनके धार्मिक क्रार्यक्रम या प्रचार के लिए नहीं.३. प्रत्येक जाति या समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति को सच्चा नागरिक होना चाहिये.४. चुनावों या अन्य माध्यम से संरक्षक या आश्रयदाता और उनके ग्राहक/अश्रित की व्यवस्था पैदा न होना, क्यू में खड़ा होना सभ्य न होने की निशानी है.५. भूत और परम्पराओं से मुक्त होकर विवेक को अपनाना जाया चाहिये.६. प्रतिष्ठानों, संस्थाओं और विभागों पर जन साधारण का पूरा विश्वास होना चाहिये. आस्पतालों के कुछ डाक्टर पर नहीं, स्कूलों के केवल कुछ शिक्षकों पर नहीं, बैंको में केवल मैनेजर पर नहीं, न्यायालयों में केवल कुछ जजों पर नहीं अपितु सभी पर विश्वास होना आवश्यक है.७. अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के अधिकारों में समानता होनी चाहिये.८. शिक्षा, स्वास्थ्य भोजन की सुरक्षा सबको मिलनी चाहिये.९. सहमति प्राप्त करने के लिए सोच बदलने का प्रयास होना चाहिये न कि बल का प्रयोग. अफवाहों पर विश्वास करने के पहले उसके प्रमाण मांगे.१०. अनजानों और जाने- पहचानों के साथ समान व्यवहार करें, गलत कार्य या दुव्र्यवहार पर चुप न रहे. विकलांगों के लिये अपशब्द का प्रयोग न करें. किसी को लूला, लंगड़ा, अन्धा, गूंगा न कहें, उन्हें सम्मान और पूरा अधिकार दें. बलात्कार की गई स्त्री को अपनायें और उसको पूरा सम्मानजनक जीवन दें. बलात्कारी को समाज का शत्रु समझें उसको अपने अपराध को महसूस कराये, घूस देना-घूस लेना बराबर के अपराध हंै. गरीबों के अपराध के कारण ढंूढ़े कि कही वे अपराध जिन्दा रहने के लिए मजबूरी में तो नहीं कर रहे है. बच्चों का शोषण न करें उनको अपने बच्चे जैसा जीवन दें.1

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