शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

दीपावली विशेष
अंधियारों का ज्योति पर्व
विशेष संवाददाता
अनुस्का (दिव्या), चांदनी, वंदना, आरती, पूजा, शबीना, रागिनी ये सारे के सारे नाम हैं रोशनी के जिन्हें इसबार दीपावली में अपने घर-आंगन को जगमग करना था. लेकिन किसी पर तेजाब फेंक दिया गया, किसी का बलात्कार कर दिया गया, किसी को घर वालों ने फूंक दिया और किसी को 'मालÓ बना दिया गया बाजार का. फिर भी शहर की नारी शक्ति ज्योति वाली माताएं खुश हैं कि वे बच गईं लुटने से, पिटने से, फुंकने से.... चलो इसी खुशी में दिये जलाएं दीपावली मनाएं. वैसे भी रोशनी के लिए दिये को सर पर आग ढोनी पड़ती है. कोई जलता है तब ही प्रकाश फैलता है चाहे वह दिया हो या दिव्या, आरती हो या चांदनी. यह शहर भी सर पर आग ही धरे हुए है. अगर ऐसा न हो तो यहां कौन मनाये दीपावली? जिस शहर में लाखों की संख्या में चूल्हे ठंडे हुए हों, रोजी-रोटी के पावन मन्दिर कबाडिय़ों को सौंप दिए गए हों उस शहर में कैसी दीपावली? जिस शहर में बिना किसी गुनाह के कानून वाले किसी भी निर्दोष को सलाखों के पीछे डाल देते हों, गोली से उड़ा देते हों, घर के बाहर पाँव रखने के बाद सही-सलामत वापसी की उम्मीद न हो, रोशनी केे लिए तेल का टोटा हो, जगमग झालरों के लिए बिजली दुर्लभ हो, उस शहर में कैसी दीवाली? पिछली दीवाली से इस दीवाली के बीच में कुछ भी तो ऐसा नहीं घटा जिस पर दिये जलाए जाएं. मरीज इलाज कराने जाता है डॉक्टर उसे लूट लेता है. दरअसल जिस शहर में आदमी की जगह वोटर रहते हो वहां कोई त्योहार, कोई संस्कार, कोई परम्परा महज किसी जुलूस, प्रदर्शन, नारों और वादों के अलावा और हो भी क्या सकता है? फिर भी समय की छाती कोरी नहीं रहती, गलत-सही सीधा-टेड़ा, कुछ न कुछ तो उस पर अंकित होता ही है. इस वर्ष के ज्योति पर्व के सफे भी कोरे नहीं है. आइए कोशिश करें इन ज्योतित पृष्ठïों को पढऩे की. देखें वर्ष भर के ज्योति खण्ड में इस शहर ने ज्योति के कितने खण्ड किए और कितने खण्डों को कालजयी ज्योर्तिमय बनाया. तमाम राजनैतिक पार्टियां और उनकी केन्द्र व प्रदेश सरकारों के बीच मची उठापटक के बाद बने गंगा बैराज के साथ शहर को खुश होकर दीपावली मनाने का एक बहाना मिला था. बरसात के पानी ने इस बहाने पर भी पानी फेर दिया, सैकड़ों लोग ऐसे बेघर हुए जिन्हें अब तक घर नसीब नहीं हुआ है. घर ढूंढऩे की तलाश के बीच ये लोग कैसे जगमग करेंगे अपनी उजड़ चुकी बस्तियों को?शहर के हजारों-हजार मजदूरों के घरों में दीपावली की खुशियां बाँटने वाली दर्जनों मिलें तो अब बन्द हो चुकी हैं. बाकी रही सही छोटी बड़ी इण्डस्ट्रियां भी धीरे-धीरे शहर से बाहर जा रही हैं.अनगिनत लोग बेरोजगारी का अभिशाप झेल रहे हैं. पेट की आग बुझाने में जल रहे ये लोग भला दिये कैसे जलाएंगे? शहर ने पूरे साल स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और भ्रष्टाचार को झेला. न जाने कितने लोग डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी जानलेवा बीमारियों की भेंट चढ़ गए. इन बीमारियों से निपटने के बजाय स्वास्थ्य विभाग मरीजों के आँकड़े छुपाने में ही लगा रहा. बहुत से लोग तो इन बीमारियों की दवाओं और टीकों की कमी की वजह से ही भगवान को प्यारे हो गए. मगर हुआ क्या? जिन जूनियर डॉक्टरों को मरीजों और आए दिन होने वाले हादसों में घायल हुए लोगों का इलाज कर कुछ सीखना चाहिए था वो मरीजों, घायलों और तीमारदारों से गाली-गलौच करने और उन पर गुम्मे चलाने में ही मस्त रहे. जिन लोगों ने इन भविष्य के डॉक्टरों के खौफ को झेला क्या वो इस सबसे खुश होकर घरों में छुरछुरिया छुड़ाएंगे? शहर के अधिकांश बेसिक प्राइमरी स्कूल टूटी फटी छतों के नीचे चल रहे हैं. जो खाना शायद जानवर भी मन से न खाएं, ऐसा बेस्वाद खाना बच्चों को मिड डे मील में दिया जा रहा है. स्कूलों में शिक्षक तक नहीं हैं, जो भी हैं सरकारी सर्वे में व्यस्त रहते हैं. कन्याधन के लिए खासी कटा-जुज्झ मची है. जिन गरीब छात्राओं को पैसा मिलना चाहिए उन्हें नहीं मिला. बच्चों के अभिभावक इस बात से खुश होकर इस ज्योति पर्व में लइया गट्टा खाएंगे कि उनके बच्चे प्राइमरी स्कूलों की इन भुतही इमारतों से बचकर, मिड डे मील का सड़ा खाना खाकर बिना बीमार हुए हंस खेल रहे हैं.धड़ाधड़ हो रहे अपराधों को रोकने में नाकाम रही शहर की खिसियाई पुलिस ने शहर के चुके हुए अपराधियों के साथ दीपावली के पहले ही जम कर आतिशबाजी मनाई. पुलिस तो साल शुरू होने से पहले ही दीवाली मनाने की तैयारी में जुट गई थी. हेलमेट चेकिंग, प्रदूषण चेकिंग, वाहन चेकिंग के बहाने पुलिस के धुरंधर वीर जवानों ने खूब मोटा माल अन्दर किया. उन्हें लइया, खील, गट्टा खिलौना खरीदने की रत्ती भर चिन्ता नहीं है यह सब तो फ्री फोकट का मिलेगा ही. इस ज्योति पर्व में महंगे घरेलू सामान से पूरा घर जगमग जगमग होगा. फिर भी पढ़-लिख कर डॉक्टर इन्जीनियर बनने का सपना संजोए बच्चों के अभिभावकों की जेबें हल्की करने में लगे शहर के तमाम कोचिंग संचालकों में इस दीपावली का खास क्रेज है. लोगों की मेहनत की गाढ़ी कमाई चूसकर रईसजादे लाखों के पटाखों में आग लगा कर रोशनी का त्योहार मनाएंगे और कोचिंग पढऩे के लिए इनको हजारों रुपए देने वाले छात्र इस आतिशबाजी के धुएं की जलन आँखों मेें लिए किताबों के दिए जलाएंगे.दीपावली के मौके पर किसी को कार खरीदनी है, किसी को दुपहिया, कोई घर बनवाना चाहता है, कोई घर में रंग रोगन कराना चाहता है, किसी को रंगीन टीवी खरीदना है तो किसी को महंगा होम थिएटर सिस्टिम. इन सभी के लिए शहर में मौजूद राष्टï्रीय अन्तर्राष्टï्रीय बैंकों ने अन्धी उधारी बांट रखी है. ये फाइनेन्स कम्पनियां इसी खुशी में कि आधे से ज्यादा शहर इनका कर्जदार बन गया है, पटाखे छुड़ाएंगी. इन कम्पनियों के कर्जदार इस खुशी में अपना घर रोशन करेंगी कि चलो कर्ज से ही सही प्रतिज्ञा और बालिका वधू जैसे सीरियलों की दीवाली पूजा में वह भी शामिल होंगे. इसके लिए प्रतिज्ञा को विदेशी बैंकों का ऋणी होना चाहिए. अच्छा हो कि ब्याज भी देना शुरु कर दें. खैर कुछ भी हो शहर यह ज्योति पर्व तो मनाएगा ही और हम भी. लेकिन इस पावन पर्व पर हम ऐसे दिए जलाएंगे जिनकी रोशनी में तमाम अमावसी स्याह चेहरे अपना रंग रूप देख लें. हर साल की तरह इसबार भी कल्याणपुर थाना क्षेत्र में दीपावली के पहले का धमाका हुआ. स्वास्थ्य विभाग की एक इमारत में बारूदी दीपावली का सामान बनाते लोग हमेशा के लिए अंधेरे में खो गये. रोशनी चकनाचूर, लहूलुहान कराहती मिली त्योहार के ठीक पहले. जगमगाते शहर में जिधर देखो अंधेरा, धुप्प अंधेरा. पहली बार लगा, दिया रोशनी की जगह अंधेरा उगलता है, धुएं की जगह आंसू बहाता है.1

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